तीन दर्जन ट्रेड यूनियनों ने 11 को एक दिवसीय हड़ताल का लिया फैसला

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अजय सिंह

लखनऊ। सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों में 18 ट्रेड यूनियनों और संघों के संयुक्त मोर्चा में लगभग 50000 कर्मचारी और अधिकारी हैं, इसके सभी घटकों ने 30 जून 2022 को साथी गिरीश खुराना, राष्ट्रीय संयोजक द्वारा आहूत एक वेबिनार बैठक की और सभी कम्पनियों के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशकों के समक्ष बुधवार, 6 जुलाई को आधे दिन का धरना  व भोजनावकाश में प्रदर्शन के साथ 11 जुलाई को एक दिवसीय हड़ताल पर भी जाने का निर्णय लिया ।यह धरना जोन के आधार पर सभी क्षेत्रीय कार्यालयों में भी क्षेत्रीय प्रमुख के समक्ष भोजनावकाश में प्रदर्शन सहित आयोजित किया जाएगा।संयुक्त मोर्चा के घटक 11 जुलाई 2022 को फिर से परिस्थितियों की समीक्षा करने और आगे के संघर्ष कार्यक्रम यथा हड़ताल / अनिश्चित हड़ताल पर निर्णय करने के लिए बैठक करेंगे।

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी), अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए), एलआईसी कर्मचारी संघ, ट्रेड यूनियनों के विश्व संघ और कई जन संगठन अगस्त 2017 से लंबित वेतन संशोधन व अन्य जायज माँगो के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के सामान्य बीमा कर्मचारियों का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं और प्रेस विज्ञप्ति जारी कर साधारण बीमा कर्मचारियों और अधिकारियों के चल रहे आंदोलन के साथ एकजुटता व्यक्त की है।

जिप्सा प्रबंधन 22 जून की बैठक में वर्तमान तिथि से 7% वृद्धि या वर्तमान तिथि से 5% वृद्धि और 01.08.2017 से 2% बकाया की पेशकश  रखी। सभी यूनियनों और संघों ने एक स्वर में जिप्सा प्रबंधन के वेतन संशोधन के इस अपमानजनक और असम्मानजनक प्रस्ताव को खारिज कर दिया और एलआईसी के बराबर वेतन संशोधन करके बीमा क्षेत्र में वेतन समानता की मांग की।यह रिकॉर्ड की बात है कि दिनांक 04.04.2019 को तत्कालीन जिप्सा अध्यक्ष श्री गिरिजा कुमार और अन्य सीएमडी ने आश्वासन दिया कि जब भी वेतन संशोधन को अंतिम रूप दिया जाएगा यह 01.08.2017 से प्रभावी होगा और एलआईसीआई से बेहतर होगा।सरकारी साधारण बीमा कंपनियां शुरू से ही भारत सरकार को भारी लाभांश दे रही हैं और सामाजिक उत्थान की सभी सरकारी योजनाओं को पूरे समर्पण के साथ आगे बढ़ा रही हैं। पिछले पांच वर्षों में सभी चार सरकारी कंपनियों द्वारा प्रीमियम पर उत्पन्न और भुगतान की गई जीएसटी राशि लगभग रू0 57,000 करोड़, सरकार को प्राप्त हुई है ।

कोविड 19 की महामारी के समय में भी कर्मचारियों ने पिछले 2 वर्षों में कोरोना योद्धाओं के रूप में अर्थव्यवस्था और समाज की सेवा की और इस दौरान 500 से अधिक कर्मचारी व उनके परिवार के सदस्यों की कोविड से मौत हो गई । कर्मचारी और अधिकारी प्रतिकूल परिस्थितियों में काम कर रहे हैं क्योंकि डीएफएस और नियामक निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों की तुलना में सरकारी कंपनियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं। निजी क्षेत्र की अनैतिक प्रथाओं और उन्हें नियंत्रित करने में नियामक की विफलता व्यावसायिक हितों और प्रदर्शन के लिए हानिकारक रही है । इस सबके बावजूद प्रबंधन और डीएफएस ने पिछले 59 महीने से लंबित वेतन संशोधन व अन्य जायज मांगों के प्रति अपनी अत्यधिक असंवेदनशीलता दिखाई है।

सरकारी साधारण बीमा कंपनियां हमेशा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे आयुष्मान भारत, पीएम फसल बीमा योजना, कोरोना कवच नीति, सीएसआर, ग्रामीण और फसल बीमा और ऐसी कई अन्य नीतियों की ध्वजवाहक रही हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा में मात्र रु.12/- के प्रीमियम रु. 2 लाख खर्च को कवर कर रही हैं जो योजना को संचालित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। पीएसजीआई कंपनियां आम आदमी, किसानों और नागरिकों को बहुत कम प्रीमियम पर बीमा सेवाएं दे रही हैं और लगभग 50000 कर्मचारियों और 5 लाख से अधिक एजेंट बलों के साथ 50 करोड़ से अधिक नागरिकों की सेवा कर रही हैं।

यह भी उल्लेखनीय है कि कर्मचारी एवं अधिकारी निम्नलिखित मांगों को लेकर पिछले 3 वर्षों से अपना आंदोलन कर रहे हैं

  1. 01.08.2017 से लंबित वेतन संशोधन का तत्काल समाधान
  2. एनपीएस कर्मचारियों के लिए पीएफ के लिए कंपनी के योगदान में 14% की वृद्धि।
  3. बिना किसी सीमा के 30% की दर से पारिवारिक पेंशन में सुधार।
  4. 1995 योजना के तहत सभी के लिए पेंशन और पेंशन का अद्यतनीकरण।
  5. निजीकरण का विरोध और 2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय श्री अरुण जेटली जी द्वारा किए गए बजट प्रस्तावों के अनुरूप 3 कंपनियों के विलय की मांग।

संयुक्त मोर्चा 11.07.2022 को फिर से सभी घटकों की बैठक करेगा ताकि पुनः परिस्थितियों की समीक्षा करके आगे की कार्रवाई तय की जा सके।