आज होगा चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव का आगाज

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4 फरवरी 1922 को चौरीचौरा में 44 लोग मारे गए। उनमें पुलिस वाले भी थे, सत्याग्रही भी। इसके बाद वहां बने स्मारकों में पुलिस वालों को भी शहीद बताया गया, सत्याग्रहियों को भी। प्रधानमंत्री गुरुवार को जब चौरीचौरा शताब्दी महोत्सव को संबोधित करेंगे तो क्या वह इतिहास की इस अबूझ पहेली को हल करेंगे…?

4 फरवरी 1922 का दिन भी ऐसा ही एक खास दिन था। चौरीचौरा से सटे भोपा बाजार में कुछ सत्याग्रही जुलूस लेकर जा रहे थे। चौरीचौरा थाने के सामने इस जुलूस को थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने रोक दिया। तीखी बहस के बीच किसी पुलिस वाले ने सत्याग्रही की टोपी पर बूट रख दिया। भीड़ भड़क गई। पुलिस ने फायर झोंक दिया। 11 लाशें वहीं गिर गईं, कइयों को गोलियां लगीं। आक्रोशित भीड़ ने जवाबी हमला किया तो पुलिसकर्मी भागकर थाने में छिप गए। भीड़ ने थाना फूंक दिया।

23 पुलिसकर्मी जिंदा जला दिए गए। अंग्रेजी हुकूमत ने इसे कुचलने के लिए तमाम मुकदमे चलाए और पांच महीने बाद 19 लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। थाने के भीतर एक स्मारक बनाया गया, जिसमें ‘शहीद’ हुए 23 पुलिसकर्मियों के नाम अंकित हैं। उस घटना के दिन और उस कथित साजिश के इल्जाम में फांसी पर चढ़ाए गए लोग चूंकि अंग्रेजी हुकूमत की नजर में आतंकवादी थे, लिहाजा वे इतिहास में उस वक्त जगह नहीं पा सके। लेकिन यह तो इतिहास का एक अध्याय था।

वक्त ने करवट ली। देश आजाद हुआ। जो अंग्रेजी राज में आतंकवादी थे, अब कृतज्ञ राष्ट्र उन शहीदों की स्मृति में वंदन कर रहा था। चौरीचौरा के उन शहीदों की याद की जाने लगी, लेकिन उनके स्मारक की शिला रखने में 60 साल गुजर गए। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1982 में इसकी आधारशिला रखी थी, जिसका लोकार्पण एक अन्य प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने 1993 में किया। हर साल यहां शहीदों की याद में स्मृति सभाएं और अन्य आयोजन होते हैं। यह इतिहास का दूसरा अध्याय है।

मगर इन दो अध्यायों के बीच एक अबूझ पहेली है। एक सवाल है कि क्या एक ही जगह पर, एक ही घटना में, एक दूसरे के खिलाफ खड़े दोनों पक्षों को हम ‘शहीद’ मान सकते हैं? 1924 में अंग्रेज अफसर विलियम मौरिस का बनवाया गया स्मारक सही है या रेलवे स्टेशन के पास प्रधानमंत्री द्वारा लोकार्पित स्मारक इतिहास की सचाई बयान करता है?

आज़ादी के बाद ऐसे मौके भी आये जब लोगों ने इस पुलिस स्मारक के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार किया। पूर्वांचल में शिक्षा की बड़ी अलख जगाने वाले बाबा राघव दास ने तो बाकायदा छेनी हथौड़ी लेकर इसे तोड़ना भी शुरू किया था जिस पर उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ। 1990 तक इस स्मारक पर भी अगरबत्तियां वगैरह जलाई जाती रहीं।

चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव का आज भव्य आगाज होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महोत्सव का वर्चुअल उद्घाटन करके डाक टिकट जारी करेंगे।  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में महोत्सव की शुरूआत होगी। इसी सिलसिले में मुख्यमंत्री बुधवार को ही गोरखपुर आ गए। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल वर्चुअल जुड़ेंगी। यह महोत्सव पूरे साल चलेगा। अलग-अलग दिन कार्यक्रम होंगे। प्रधानमंत्री का संबोधन भी होगा।

 चौरी-चौरा घटना के 100 साल पूरे होने के अवसर पर बृहस्पतिवार से साल भर तक गोरखपुर समेत प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। चौरीचौरा शहीदों के सम्मान में यह अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पहला मौका है जब समूचा प्रदेश शहीदों को सम्मान देने के लिए एक साथ आगे बढ़ा है। महोत्सव की तैयारियां बुधवार देर रात तक पूरी कर ली गईं। पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी व प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम देर रात तक शहीद स्थल पर डटे रहे। 

चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव के मुख्य समारोह के दौरान चार फरवरी को चौरीचौरा कांड के शहीदों के परिजनों को भी सम्मानित किया जाएगा। प्रशासन की तरफ से 99 लोग चिह्नित किए गए हैं। सभी शहीदों की तीसरी पीढ़ी के लोग हैं। कुछ को मुख्यमंत्री खुद मोमेंटो देकर सम्मानित करेंगे, जबकि बाकी लोगों को कार्यक्रम स्थल पर मौजूद अन्य मंत्री सम्मानित करेंगे। लंबे समय बाद अपने पूर्वजों की शहादत को इतने वृहद स्तर पर मिल रहे सम्मान से न केवल उनके परिजन बल्कि चौरीचौरा की पूरी जनता गौरवान्वित महसूस कर रही।