अमीरों की बेलगाम सीढ़ी….!

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जब विश्व के 05 अमीर देशों की लिस्ट प्रकाशित की जाती है तो उसमें से भारत या भारत का एक व्यक्ति जरूर होता है लेकिन फिर भी भारत को गरीब देश कहा जाता है आखिर ऐसा क्यों..? आज हम जहां आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं वही हमारे देश में कुछ लोगों को आज भी भूखे पेट सोना पड़ रहा हैआखिर ऐसी असमानता क्यों हो रही है..? इसमें क्या सरकार दोषी है या फिर जनता इस पर विमर्श करना सामाजिक दृष्टि से बहुत ही आवश्यक है।

जावेद अनीस

भारत जैसे मुल्क में एक तरफ तो भूख से बेहाल लोगों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ अरबपतियों की संख्या और दौलत भी बेलगाम तेजी से बढ़ती जा रही है। जनवरी 2021 में ऑक्सफैम द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट ‘द इनइक्वैलिटी वायरस’ बताती है कि किस तरह से भारत के लोगों पर महामारी के साथ आर्थिक असमानता के वायरस की मार पड़ी है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड लॉकडाउन के दौरान भारत के अरबपतियों की संपत्ति में 35 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है वहीँ दूसरी तरफ कोविड के चलते देश के 84 फीसदी परिवारों को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा है। रिपोर्ट बताती है कि महामारी के दौरान मुकेश अंबानी को एक घंटे में जितनी आमदनी हुई, उतनी कमाई करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार साल लग जाएंगे। यही नहीं भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया है। देश में धनवानों को लेकर जारी की जाने वाली आईआईएफएल वेल्थ हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2021 के अनुसार पिछले एक दशक के दौरान भारत में अरबपतियों की संख्या में दस गुना की बढ़ोतरी हुयी है। 2001 में देश में केवल 100 अरबपति थे जबकि 2021 में इनकी संख्या 1,007 तक पहुंच गई है।

जैसा कि इस साल के शुरुआत में जापान के प्रतिष्ठित आर्थिक अखबार निक्केई एशिया में प्रकाशित एक लेख में रूपा सुब्रमण्यम ने बताया था भारत बहुत तेजी से गैंगस्टर पूंजीपतियों के देश में बदलता जा रहा है। आज दो गुजराती कारोबारियों अंबानी और अडानी का एकतरफा डंका बज रहा है, हर दिन उनकी संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हो रही है। यह भी ऐसा अद्भुत संयोग है कि भारत सरकार जो भी नीति बना रही है उसका सबसे अधिक फायदा इन दो कारोबारियों को हो रहा है, हालांकि इनके अलावा भी दो-चार कारोबारी हैं, जिनको कुछ लाभ हुआ है लेकिन इन दो कारोबारियों की कमाई असीमित है।

हाल ही में भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ0 अरविंद सुब्रह्मण्यन ने भी अंबानी और अडानी की ‘अभूतपूर्व पहुंच’ का जिक्र करते हुए इसे ‘वैश्विक पूंजीवाद के इतिहास में अनूठी घटना’ बताया है। आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2019 के दौरान मुकेश अंबानी की नेटवर्थ में 130.58 प्रतिशत और गौतम अदाणी की नेटवर्थ में 114.77 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। लेकिन यह तो महज 2019 तक के आंकड़े हैं। ब्लूमबर्ग बिलिनेयर इंडेक्स 2021 के मुताबिक मुकेश अंबानी की दौलत 84 अरब डॉलर से ज्यादा हो गई है और वे दुनिया के 12वें सबसे अमीर व्यक्ति बन गए है, इस साल अंबानी की दौलत में 7.62 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। गौतम अडानी उनके ठीक पीछे हैं और उनकी संपत्ति बढ़कर 77 अरब डॉलर के पार हो गई है और वे दुनिया के 14वें सबसे अमीर शख्स हैं, इस साल उनकी संपत्ति में 43.2 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक दोनों एक सौ अरब डॉलर की संपत्ति वाले दुनिया के चुनिंदा कारोबारियों की सूची में शामिल होने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

भारत के शीर्ष कारोबारियों की इस तरक्की के साथ गहरी असमानता भी नत्थी है। उदारीकरण के बाद से ही भारत को उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति माना जाता रहा है। इस दौरान भारत ने आर्थिक रूप से काफी तरक्की भी की है लेकिन जीडीपी के साथ आर्थिक असमानताएं भी बढ़ी हैं जिसकी झलक हमें साल दर साल भूख और कुपोषण से जुड़े आकड़ों में देखने को मिलती है। ऐसा इसलिये हुआ है क्योंकि हम अपने आर्थिक विकास का फायदा सामाजिक और मानव विकास को देने में नाकाम साबित हुये हैं। उदारीकरण के बाद आई चमक के बावजूद आज भी देश की बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहने को मजबूर हैं, जीडीपी के ग्रोथ के अनुरूप सभी की आय नहीं बढ़ी है। भारत की यह असमानता केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि कम आय के साथ देश की बड़ी आबादी स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे मूलभूत जरूरतों की पहुंच के दायरे से भी बाहर है। साल 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में भारत को 189 देशों में 131वां स्थान प्राप्त हुआ है। 2019 में भारत दो पायदान उपर 129वें स्थान पर था। गौरतलब है कि यह रैंकिंग देशों के जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और आमदनी के सूचकांक के आधार पर तय की जाती है। जिस देश में असमानता अधिक होगी उस देश रैंकिंग नीचे होती है।

यह भी समझाना जरूरी है कि भारत में भूख और कुपोषण की समस्या को देखते हुये खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 एक सीमित हल पेश करता ही है, उपरोक्त चारों हकदारियां खाद्य असुरक्षा की व्यापकता को पूरी तरह से संबोधित करने के लिये नाकाफी हैं और ये भूख और कुपोषण के मूल कारणों का हल पेश नही करती हैं। [/responsivevoice]

जावेद अनीस स्वतंत्र पत्रकार हैं और भोपाल में रहते हैं।