सांस्कृतिक प्रेरणा देता उत्तर प्रदेश

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हृदयनारायण दीक्षित


उत्तर प्रदेश प्राचीन काल से ही प्रश्न और जिज्ञासा का क्षेत्र रहा है। तब सृष्टि रहस्य की जिज्ञासा के प्रश्न थे। कर्मयोग, ज्ञान और भक्ति की त्रिवेणी थी। सुख, दुख, ज्ञान, मुक्ति, भक्ति की जिज्ञासा थी। जीवन जगत् के सभी प्रश्नों के उत्तर थे। सो यह प्रदेश उत्तर प्रदेश था। लेकिन पीछे पांच साल के पहले कुछ समय तक यहां प्रश्नों का चरित्र बदल गया था। तुष्टीकरण ने ’संस्कृति सत्य’ को धकिया दिया था। अपराध बढ़े। निराशा बढ़ी। माफिया बढ़े। सदाचरण रोता रहा। कानून माफिया की गिरफ्त में था। प्रश्न डरावने थे। सत्ता डरा रही थी। फिर सत्ता में आये योगी आदित्यनाथ। लोकमंगल की शपथ लेकर उन्होंने कानून व्यवस्था की स्थापना की। उन्होंने विकास कार्य व समृद्धि का नया इतिहास रचा। संन्यास और सत्ता के संयोग ने प्रदेश को आनंदवर्द्धन बनाया है। प्रदेश के पास अब सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। उत्तर प्रदेश अब वस्तुतः समृद्ध और संकल्पबद्ध उत्तर प्रदेश है। आशा, महत्वाकांक्षा और सांस्कृतिक गतिशीलता की उड़ान भरता प्रदेश। यहां श्रीराम की अयोध्या हैं।


श्री राम अखिल लोकदायक विश्रामा है। मर्यादा पुरूषोत्तम। वाल्मीकि की रामायण शील और आचार-विचार की दिव्यता का महाकाव्य है। रामकथा का प्रस्थान बिन्दु लोकमंगल है। वाल्मीकि शुरूआत में ही जिज्ञासा करते हैं। को-अस्मिन साम्प्रतं लोके गुणवान – इस लोक में श्रेष्ठ गुणवान और शक्ति सम्पन्न कौन है? उन्हें उत्तर मिलता है “श्रीराम इसी लोक में हैं और लोकोत्तर भी हैं। वह पुरूष भी हैं और पुरूषोत्तम भी। इतिहास के मध्यकाल में तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखी। तब भारतीय समाज उद्विग्न था। धर्मपालन कठिन था। तुलसीदास ने ऋग्वेद से लेकर मध्यकाल तक की धर्म धारणा को अपने सृजन का विषय बनाया। लिखा, “जब-जब होई धरम की हानी/बाढ़हिं असुर अभिमानी/तब-तब प्रभु धरि मनुज शरीरा।” तुलसी की अनुभूति में धर्म आचरण प्रथम है। उसकी हानि परम सत्ता को भी उद्वेलित करती है। परम सत्ता धर्म रक्षा के लिए मनुष्य शरीर धारण करती है। रामचरित मानस के अनुसार एक समय धर्म की हानि से पृथ्वी पर असुर बढ़े। पृथ्वी आहत हुई। सभी देव शक्तियॉं ब्रह्म के पास पहॅुची। तुलसी के अनुसार पृथ्वी ने रोकर कष्ट बताया – निज संताप सुनाएसि रोई। शिव ने पार्वती को बताया कि देवताओं के साथ वह भी ब्रह्म के पास गये थे। तभी आकाश से आश्वासन आया। हे पृथ्वी धैर्य धारण करो। मैं स्वयं यहां जन्म लूंगा और तुम्हारा संताप व असुरों को नष्ट करूॅंगा। रामचरित मानस इतिहास है। सरल-तरल काव्य है और अपनी लोकप्रियता व आस्था में धर्मशास्त्र भी है। रामचरित मानस ने छोटे-छोटे गांवों तक प्रभाव डाले। धर्म की रक्षा की।


उत्तर प्रदेश में मथुरा सप्त महापुरियों में गिनी जाती है। यहीं वृन्दावन है। लगभग चार हजार मंदिर और सरोवर हैं। गोविन्ददेव मन्दिर का स्थापत्य भव्य है। इसी मन्दिर के सामने द्रविणशैली में श्वेत पत्थर का रंगनाथ मन्दिर है। यहीं गोवर्धन है, बरसाना कृष्ण की प्रिय राधा का जन्म स्थान है। इसी क्षेत्र में दाऊजी का मन्दिर है। दुनिया की किसी संस्कृति में नचता गाता देवता नहीं है, लेकिन कृष्ण ने ब्रजभूमि में गीत संगीत की धारा बहायी। कृष्ण स्वयं वंशीवादक थे। संगीत के जीवमान प्रतिरूप भी थे। कृष्ण ने (10/35) गीता में स्वयं को वृहत्साम और गायत्री छंद बताया, ’’हे पार्थ गायन करने वाली श्रुतियों में मैं वृहत्साम हूॅ और छंदों में गायत्री छंद हूॅू।’’ काव्य और संगीत ही विष्णु के वाहन है। वल्लभ सम्प्रदाय में उपासना का माध्यम संगीत है। भक्ति काव्य गीत संगीत संस्कृति और धर्म के वाहक रहे हैं। कृष्ण की लीलाभूमि मथुरा वृन्दावन में संगीत प्रधान देव उपासना लोकप्रिय हुई। यहीं कृष्ण लीला गान सम्प्रदाय के रूप में अष्टछाप कवियों की स्थापना हुई। अष्टछाप के कवियों में सूरदास, नंददास, कुम्भनदास, गोविन्दस्वामी आदि के नाम उल्लेखनीय है। भक्त स्वयं कविता लिखते थे और संगीत भी गाते थे। सूरदास स्वयं गायक भक्त थे। स्वामी हरिदास को राग रागिनियॉं सिद्ध थी, ब्रजक्षेत्र के दर्शन में काव्य और संगीत के ही दर्शन हैं। भारत का मान व्रज में रमता है।


परम चेतना सूक्ष्म रूप में उतरती है और स्थूल रूप में प्रकट होकर भक्तों को आनन्दित करती है। कविता भजन का स्वरूप नहीं होता। वह अरूप होकर भी सुनायी पड़ता है। संगीत उससे भी सूक्ष्म है। संगीत का अर्थ नहीं होता। कविता का अर्थ होता है। श्री कृष्ण की बांसुरी और संतों के ऐसे ही संगीत उपकरण लोगों को आनन्दित करते थे। यह सब उत्तर प्रदेश में घटित हो रहा था और अभी भी गीत गायन वादन और नृत्य के रूप में हमारी संस्कृति धारा में प्रवाहित है।लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने इस क्षेत्र के विकास की कोई योजना नहीं बनायी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पूरे क्षेत्र को विकसित करनेके लिए उत्तर प्रदेश ब्रजतीर्थ विकास परिषद का गठन किया है। व्रज क्षेत्र विकसित हो रहा है। करोड़ों रूपए की तमाम अन्य योजनाओं पर काम चल रहा है। बृज विकास परिषद सक्रिय है। समूचे ब्रज क्षेत्र का रूपान्तरण हो रहा है। व्रज में उल्लास है। मुख्यमंत्री स्वयं सभी योजनाओं की निगरानी कर रहे हैं।


ब्रज क्षेत्र भारतीय संस्कृति और धर्म का विशिष्ट केन्द्र रहा है। ब्रज क्षेत्र का तीर्थाटन आश्चर्यजनक परिवर्तन लाता है। पूरे देश के कृष्ण भक्त इन योजनाओं की प्रसंशा कर रहे हैं। पर्यटन सामान्य यात्रा है और तीर्थाटन इससे भिन्न है। हम तीर्थ से आत्मिक आनन्द लेकर लौटते हैं, लेकिन पर्यटन से लौटते समय हमारी आन्तरिक ऊर्जा में आनन्द नहीं होता। ब्रज क्षेत्र में दोनों का आनन्द है। यहां के तीर्थाटन में मन राधे-राधे हो जाता है। बृज विकास परिषद दोनों समूहों को आश्वस्ति और आनन्द देने का काम कर रही है। संतों ने इस क्षेत्र को अपनी मधुर वाणी से मधुमय बनाया है। यह सांस्कृति कर्म है, धर्म कर्म है। इससे सारी दुनिया में बृज क्षेत्र का आकर्षण बढ़ रहा है। संतों ने गाया भी है ’’उद्धव मोहि बृज बिसरत नाही।”


उत्तर प्रदेश अखिल भारतीय आकर्षण है। यह सामान्य राज्य नहीं। यह मानव जिजीवीषा का धर्मक्षेत्र, कर्मक्षेत्र है। यह एक मधुमय काव्य है। एक अंतहीन कविता। गर्व करने योग्य जीवंत इतिहास। प्रणाम करने योग्य भूगोल। वैदिक ऋचाओं के सामगान की धरती। विश्व वरणीय संस्कृति का उद्गम। श्रीराम कथा का सृजन वाल्मीकि ने यहीं किया। व्यास ने वेद ज्ञान का सुव्यवस्थित विभाजन यहीं किया। विश्व की अति प्राचीन नगरी वाराणसी का मुद, मोद, प्रमोद और शिव उल्लास यहां है। काशी, मथुरा और श्रीराम की अयोध्या यहां है। यही ध्यान, उपासना, यज्ञ की पुण्य भूमि प्रयाग। गंगा, यमुना, सरस्वती का तीर्थराज मिलन संगम भारत के प्राणों में रचा-बसा है। प्रदेश अनेक प्रश्नोत्तरों की भूमि। महाभारत के यक्ष प्रश्न यहीं रचे गए थे। प्रश्नकर्ता था यक्ष। उत्तरदाता धर्मराज युधिष्ठिर। प्रश्न था, “कः पंथा-जीवन मार्ग क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया वेद वचन भिन्न.भिन्न। ऋषि अनेक। तर्क अपर्याप्त। धर्म तत्व गुहा में है। इसलिए श्रेष्ठजनों द्वारा अपनाया गया मार्ग ही उचित है – ’महाजनो येन गतः स पंथा’।