भैया कोरोना फिर चढ़ा चला आ रहा है । समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर दुई दुई बार ठुकवाने का फायदा क्या रहा । स्कूल कॉलेज धड़ल्ले से बन्द हो रहे हैं । ऊपर वाले तो अपने लिए 50-50 भी लागू कर लिए ।लेकिन भैया एक बात कान खोल के सुन औ दिमाग खोल के समझ लीजिए । ये जो चुनावी रैलियाँ हैं वो बेधड़क, बेख़ौफ़ चलेंगीं । असल में ये जो कोरोना है उसको चुनाव से बहुत एलर्जी है । पॉलिटिक्स से तो सख्त नफरत है । इसीलिए तो ये रैलियों के आस पास भी नहीं फटकता ।
इंडिया भले डिजिटल बना जा रहा हो लेकिन रैलियाँ जब तक फिजिकल न हों मजा नहीं आता । मल्लब वो वाली फीलिंग नहीं आती । शादी बारातों में तो सौ पचास की पाबंदी लगा ही दिए हैं रैलियों में भी दो चार लाख के नीचे की भीड़ सख्त मना है । औ मजाल है कि इतनी भीड़ में कउनो नेता मास्क तक लगाये हो । हीरो का चेहरा ही न दिखे तो पिच्चर काहे की ।जिनकी रैलियों में हजारों की भीड़ भी मुश्किल से जुट पाती है वो जनहित में सबसे पहले आगे आये हैं । बोले हैं रैली नहीं करेंगे । अब उनको कउन समझाये कि उनके रैलियाँ करने न करने से कउनो असर नहीं पड़ने वाला ।
बाकी दुनिया चाहे इधर की उधर हो जाये लेकिन चुनाव तो होंगे । अब कोरोना का क्या है आज है कल चला जायेगा । लेकिन चुनाव न हुए तो बेचारी जनता का क्या होगा । वइसे जनता अपना ख्याल खुद ही रखे तो ही अच्छा वरना जिनके चक्कर में ये कोरोना से पंगा ले रहे हैं उनके खुद के बेड एम्स में रिज़र्व होते हैं ।तो भइया इन नेताओं को रैली रैली खेलने दीजिये लेकिन अपना ख्याल रखिये । चलते हैं ।