जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति…

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जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति...
जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति...

किसी भी देश में जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुँच जाती है तो संसाधनों के साथ उसकी ग़ैर-अनुपातित वृद्धि होने लगती है। इसलिये इसमें स्थिरता लाना ज़रूरी होता है। संसाधन एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत में विकास की गति की अपेक्षा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। संसाधनों के साथ क्षेत्रीय असंतुलन भी तेज़ी से बढ़ रहा है। जनसांख्यिकीय संक्रमणों के माध्यम से जनसंख्या की आयु संरचना बदलती है। विश्व स्तर पर देश अपनी जनसंख्या संरचना के संबंध में भिन्न होते हैं। क्या उनकी आबादी सिकुड़ रही,बढ़ रही या स्थिर है। जापान,जर्मनी और कई अन्य यूरोपीय देशों जैसे विकसित देशों में जनसंख्या की उम्र बढ़ने और जनसंख्या में कमी प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताएँ बन गई हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि 2047 तक वृद्ध लोगों की संख्या विश्व में बच्चों की संख्या से अधिक हो जाएगी। यह भी अनुमान है कि 2040 तक लगभग हर तीसरा व्यक्ति 65 वर्ष से अधिक आयु का होगा।भारत में कामकाजी उम्र की आबादी बढ़ रही है। जिसे डिपेंडेंसी रेशियो को कम करने के लिए भुनाया जा सकता है।इसे डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है। यह भारत के लिए एक ऐसा अवसर है जिसका सही तरीके से पूंजीकरण किया जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी हद तक लाभान्वित करेगा। इस लाभांश का उपयोग करने के लिए महत्वपूर्ण कारक लोगों की शिक्षा,रोजगार और स्वास्थ्य की स्थिति हैं। इस प्रकार जनसांख्यिकी को विकासात्मक मुद्दों से जोड़ते हैं। जनसांख्यिकीय लाभांश के दोहन के लिए महिला कार्यबल की भागीदारी और महिला सशक्तिकरण भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति…

संक्रमण सिद्धांत ने उत्तरजीविता दर और जन्म दर के बीच संबंध को भी चित्रित किया है। जैसे-जैसे अधिक संख्या में बच्चे वयस्कता या वृद्धावस्था तक जीवित रहते हैं। जनसंख्या में जन्म दर गिरना शुरू हो जाती है और समग्र जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट शुरू हो जाती है। उच्च शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर के कारण जन्म दर के शुरुआती उच्च स्तर मौजूद थे। ऐसी स्थिति में परिवारों ने बड़ी संख्या में जन्मों को प्राथमिकता दी ताकि उनमें से कम से कम कुछ वयस्क होने तक जीवित रहें। साथ ही गरीबी का स्तर उच्च था और बाल श्रम प्रचलित था। ऐसी खराब परिस्थितियों में बच्चों को मददगार माना जाता था क्योंकि वे जल्द ही परिवार के श्रम कार्य में शामिल होंगे और परिवार को अतिरिक्त आय प्रदान करेंगे। यह कहना गलत होगा कि गरीबी बड़े परिवारों का परिणाम है लेकिन यह इसके विपरीत है कि बड़े परिवार गरीबी के परिणाम हैं। जनसंख्या का आकार और प्रजनन क्षमता सामाजिक-आर्थिक निर्धारक हैं। शिक्षा और उर्वरता के बीच एक घुमावदार संबंध मौजूद है। यह देखा गया कि मध्य विद्यालयी शिक्षा प्राप्त महिलाओं में अशिक्षित महिलाओं की तुलना में उच्च प्रजनन क्षमता थी लेकिन उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं में न्यूनतम प्रजनन स्तर था। जीवन स्तर और उर्वरता के बीच एक घुमावदार संबंध है। सबसे कम आय वर्ग और सबसे अमीर आय वर्ग में भी प्रजनन क्षमता सबसे कम है।

प्रजनन क्षमता एक निश्चित बिंदु तक आय में वृद्धि के साथ बढ़ती है। इसके बाद आगे की आय में वृद्धि के साथ इसमें गिरावट शुरू हो जाती है। विभिन्न अध्ययनों में परिवारों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ परिवार के आकार के अलग-अलग संबंध पाए गए हैं, जिसमें व्यवसाय का प्रकार एक जटिल कारक है। श्रमिक और जमींदार वर्ग के बच्चों की संख्या अधिक होती है और सेवा वर्ग के बच्चों की संख्या कम होती है। अधिक जनसंख्या के आकार से संबंधित तर्क यह है कि यह संसाधनों पर बोझ है। लेकिन 1990 में उच्चतम आय वाले देशों में रहने वाली दुनिया की 20% आबादी द्वारा अनुमानित 86% संसाधनों का उपभोग किया गया था। दुनिया की सबसे गरीब 20% आबादी वैश्विक संसाधनों का केवल 1.3% उपभोग करती है। साथ ही सबसे अमीर चतुर्थक सबसे गरीब चतुर्थक की तुलना में 150 गुना अधिक संसाधनों का उपभोग करता है। 29 संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत से 50 गुना अधिक है। यदि हम ऊर्जा बचत के मामले में जन्म नियंत्रण को युक्तिसंगत बनाते हैं, तो अमेरिका में एक जन्म की रोकथाम भारत में 50 जन्मों की रोकथाम के रूप में प्रभावी होगी। जनसंख्या वृद्धि का लंबे समय में आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गरीबी अधिक जनसंख्या का परिणाम नहीं है बल्कि अधिक जनसंख्या गरीबी का परिणाम है। इस प्रकार हमें अपनी सारी शक्ति जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में लगाने के बजाय गरीबी उन्मूलन और विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए। अंतत: दंपति को परंपरा,धर्म,चर्च,कानून या राज्य के बजाय यह तय करना चाहिए कि वे कितने बच्चे पैदा करना चाहते हैं।

भारत के समक्ष तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है भारत एक लोकतांत्रिक देश है। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास करने चाहिये। किसी देश में युवा तथा कार्यशील जनसंख्या की अधिकता तथा उससे होने वाले आर्थिक लाभ को जनसांख्यिकीय लाभांश के रूप में देखा जाता है। विश्व में सर्वाधिक युवाओं की जनसंख्या भारत में है। भारतीय आबादी का उपयोग भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में किया जाए तो यह भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करेगा। किंतु यदि शिक्षा गुणवत्ता परक न हो, रोज़गार के अवसर सीमित हों, स्वास्थ्य एवं आर्थिक सुरक्षा के साधन उपलब्ध न हों तो यह बड़ी कार्यशील आबादी एक अभिशाप का रूप धारण कर सकती है। जनसंख्या विस्फोट की स्थिति किसी भी देश के विकास में बाधक होती है। यह एक इस तरह की वृद्धि है जिस पर विकासशील देशों को गर्व करने की बजाय शर्म आती है। जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति…