क्या राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से जनता को किए गए वादे को लागू किया जा सकता है या नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला करेगा।

?इलाहाबाद हाईकोर्ट इस पर फैसला करेगा कि क्या राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से जनता को किए गए वादे को लागू किया जा सकता है या नहीं।

⚫ जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ सूरज सिंह और अन्य द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा के आधार पर 5 लाख मुआवजे की मांग करने वाली याचिका पर विचार कर रही थी।

?यूपी सीएम की ओर से जुलाई 2019 में लखनऊ से दिल्ली की बस में यात्रा करते समय कुछ लोगों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद घोषणा की गई थी। 29 यात्रियों की मौत हो गई थी, जिनमें से 13 जिला लखनऊ के थे।

?अब दुर्घटना में मारे गए लोगों के आश्रितों और राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा 5 लाख मुआवजे का आश्वासन दिया गया था, उनके पक्ष में राशि के वितरण के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

?कोर्ट ने नोट किया कि समाचार पत्रों में घोषणा की गई थी। हालांकि, राज्य के किसी अन्य आधिकारिक दस्तावेज में इसे अधिसूचित नहीं किया गया था, जिसके आधार पर याचिकाकर्ताओं को अधिकार प्राप्त हो सकता है।

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा जनता से किए गए वादे पर विचार करने की आवश्यकता है।

?कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा कि क्या राज्य द्वारा मृतक के आश्रितों या परिवार के सदस्यों को ऐसे किसी यात्री के जीवन के नुकसान के लिए राज्य द्वारा ऐसा कोई मुआवजा देने की घोषणा की गई थी।

इसके साथ ही मामले को अब 18.07.2022 से शुरू होने वाले सप्ताह में ताजा के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

?संबंधित समाचारों में, पिछले साल जुलाई में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि मुख्यमंत्री द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया गया वादा या आश्वासन एक लागू करने योग्य वादे के बराबर है और एक मुख्यमंत्री से इस तरह के वादे को प्रभावी करने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग करने की उम्मीद की जाती है। हालांकि बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आदेश पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी थी।

?मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने COVID-19 महामारी के बीच रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी के आरोपी एक व्यक्ति की हिरासत को बरकरार रखते हुए जुलाई 2021 में कहा था कि मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया पोस्ट की तुलना किसी मुख्यमंत्री के प्रशासनिक आदेश / निर्देश से नहीं की जा सकती है।

⚪ जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस अनिल वर्मा की खंडपीठ ने आगे कहा था कि यह जरूरी नहीं है कि एक सरकारी अधिकारी के हर सोशल मीडिया पोस्ट को प्रशासनिक आदेश के रूप में देखा/पढ़ा जाए और उसका पालन किया जाए।

⏹️इसी तरह, पिछले साल नवंबर में, तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा था कि किसी सत्तारूढ़ दल या मुख्यमंत्री या यहां तक कि महामहिम राज्यपाल द्वारा दिया गया आश्वासन देश का कानून नहीं है।

▶️ यह दावा तत्कालीन चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ए.राजशेखर रेड्डी की पीठ ने सरकारी नौकरियों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 58 या 60 वर्ष से बढ़ाकर 61 वर्ष करने के राज्य सरकार के फैसले को पूर्वव्यापी कार्यान्वयन की मांग वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए किया था।

केस टाइटल – सूरज सिंह एंड अन्य बनाम यू.पी. [WRIT – C No. – 4138 of 2022]