आंकड़ों का झूठ एवं सरकारी दिवालियापन…जिम्मेदार कौन….?

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कोरोना महामारी में लोगों ने सरकार से आंकड़ों की पारदर्शिता की आवश्यकता स्पष्ट की थी। ऐसा इसलिए जरूरी है कि आँकड़ों से ही पता लगता है रू बीमारी का फैलाव क्या है, संक्रमण ज्यादा कहाँ है, किन जगहों को सील करना चाहिए या फिर कहाँ टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए। इस पर अमल नहीं हुआ।

जिम्मेदार कौन….?

विशेषज्ञों का मानना है कि पहली लहर के दौरान आंकड़ों को सार्वजनिक न करना दूसरी लहर में इतनी भयावह स्थिति पैदा होने का एक बड़ा कारण था। जागरूकता का साधन बनाने की बजाय सरकार ने आँकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बना डाला। इसके कुछ नमूने देखिए रू

सरकार ने शुरू से ही कोरोना वायरस से हुई मौतों एवं कोरोना संक्रमण की संख्या को जनसँख्या के अनुपात में दिखाया मगर टेस्टिंग के आंकड़ों की टोटल संख्या बताई।

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आज भी वैक्सीनेशन के आँकड़ों की टोटल संख्या दी जा रही है आबादी का अनुपात नहीं। और उसमें पहली व दूसरी डोज को एक में ही जोड़कर बताया जा रहा है। ये आंकड़ों की बाजीगरी है।

कोरोना वायरस से जुड़े तमाम आंकड़ों को केवल सरकारी चैम्बरों में कैद रखा गया एवं वैज्ञानिकों द्वारा पत्र लिखकर इन आकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग के बावजूद भी ये नहीं किया गया।

उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों ने टेस्टिंग के आंकड़ों में भारी हेरफेर की। सरकार ने कुल टेस्टों की संख्या में आर.ट.ी.पी.सी.आर. एवं एंटीजन टेस्ट के आंकड़ों को अलग-अलग करके नहीं बताया (उप्र में एंटीजन टेस्ट एवं आर.ट.ी.पी.सी.आर. के बीच 65रू35 का अनुपात था)। इसके चलते टोटल संख्या में तो टेस्ट ज्यादा दिखे लेकिन वायरस का पता लगाने की एंटीजन टेस्ट की सीमित क्षमता के चलते वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का सही अंदाजा नहीं लग सका।
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दिव्य भास्कर अखबार के हिसाब से दूसरी लहर के दौरान गुजरात में 71 दिनों में 1,24000 मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए गए। मगर गुजरात सरकार ने मात्र 4218 कोविड मौतें बताईं। गुजरात के 4 शहरों में जारी हुए मृत्यु प्रमाणपत्रों एवं सरकार के हिसाब से कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं-

अहमदाबाद      
जारी मृत्यु प्रमाण पत्र   13593                                     सरकारी मौतों के आंकड़े 2126

सूरत                
जारी मृत्यु प्रमाण पत्र 8851                                   सरकारी मौतों के आंकड़े 1074

राजकोट          
जारी मृत्यु प्रमाण पत्र 10887                                   सरकारी आंकड़े 208

बड़ोदा            
जारी मृत्यु प्रमाण पत्र   7722                                     सरकारी आंकड़े   189

खबरों के अनुसार उप्र के 27 जिलों में लगभग 1100 किमी की दूरी में गंगा किनारे 2000 शव मिले। इनको सरकारी रजिस्टर में जगह नहीं मिली। जब प्रयागराज जैसे शहरों में गंगा के किनारे दफनाए गए शव टीवी में आने लगे तो उप्र सरकार ने तत्काल ‘सफाई अभियान’ चलाकर कब्रों के निशान मिटाते हुए उन पर पड़ी चादरें उतरवा लीं। मृत देहों से अंतिम संस्कार की निशानी को भी कैसे छीना गया इसे पूरे देश ने देखा।

एक खबर के अनुसार उप्र के छः शहरों वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर झांसी एवं मेरठ में सरकारी आंकड़ों में कोरोना से हुई मौतों एवं श्मशानों के आंकड़ों में अंतर मिला।

30 अप्रैल – 5 मई,
वाराणसी            
सरकारी आंकड़ा- 73    
श्मशान ध्कब्रिस्तान के आँकड़े- 413

25 अप्रैल – 5 मई,
गोरखपुर                      
सरकारी आंकड़ा-     28  
श्मशानध् कब्रिस्तान का आंकड़ा-   626            

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25 अप्रैल – 5 मई,
लखनऊ                    
सरकारी आंकड़ा – 316                
श्मशानध्कब्रिस्तान- 1375

25 अप्रैल – 5 मई,
कानपुर                    
सरकारी आंकड़ा –   260                                  
शमशानध्कब्रिस्तान-     955

25 अप्रैल दृ 5 मई,
झांसी                        
सरकारी आंकड़ा-     118                          
श्मशान कब्रिस्तान-           808

25 अप्रैल दृ 5 मई,
मेरठ                          
सरकारी आंकड़ा-   55                    
शमशानध्कब्रिस्तान- 265

सरकार आंकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बनाना चाहती है या कोरोना को शिकस्त देने का एक अहम हथियार….?

इसलिए जनता सरकार से कुछ सवाल पूछे जाने जरुरी हैं-

आखिर ’क्यों वैज्ञानिकों  द्वारा बार-बार मांगने के बावजूद कोरोना वायरस के बर्ताव एवं बारीक अध्ययन से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया? जबकि इन आँकड़ों को सार्वजनिक करने से वायरस की गति और फैलाव की जानकारी ठीक तरह से होती और हजारों जानें बच सकती थीं’?

केंद्र सरकार ’आंकड़ों को अपनी छवि बचाने के माध्यम की तरह क्यों प्रस्तुत करती है? क्या इनके नेताओं की छवि, लाखों देशवासियों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है? सही आंकड़ें अधिकतम भारतीयों को इस वायरस के प्रभाव से बचा सकते हैं। आखिर क्यों सरकार ने आंकड़ों को प्रोपेगंडा का माध्यम बनाया न कि प्रोटेक्शन का’?