डॉ0सत्य प्रकाश सिंह

हिंदुत्व क्या है, जीवन में पूर्णता का सतत प्रयास, अपनी श्रेष्ठतम संभावनाओं की अभिव्यक्ति, परम तत्व की खोज, परम प्रेम, व करुणा, परमात्मा को समर्पण ही हिंदुत्व है, हिंदुत्व ही भारत की अस्मिता संस्कृति और पहचान है, सनातन हिंदू धर्म ही भारत है और भारत सनातन हिंदू धर्म है। अनगिनत युगों से मिले संस्कारों से यहां संस्कृति का जन्म हुआ है, जिसका आधार ही सनातन धर्म है। यदि यह संस्कृति और धर्म नष्ट हो गए तो राष्ट्र भारत ही नष्ट हो जाएगा और भारत नष्ट हुआ तो सृष्टि भी नष्ट हो जाएगी क्योंकि सृष्टि को संचालित करने वाली आदिशक्ति है सनातन धर्म! परमात्मा की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारत में ही हुई है, भारत एक प्रकाश स्तंभ की तरह संपूर्ण सृष्टि का मार्गदर्शन कर रहा है जिसका प्रकाश पुंज हिंदुत्व , भारत में नहीं रहा तो मनुष्य जाति आपस में लड़कर नष्ट हो जाएगी। जीवन के सारे सद्गुण और जो भी सर्वश्रेष्ठ है वह भारत की देन है वही हिंदुत्व है

भारत देश में हिन्दू, हिन्दू धर्म, हिन्दू दर्शन, हिन्दुत्व, हिन्दुवाद पर चिंतन-चर्चा व विचार-विमर्श की एक लंबी परंपरा रही है। हिन्दुत्व पर विचारों का आदान-प्रदान, तर्क-प्रतितर्क अनंत व असीम रहा है। परिभाषाओं को स्थापित-विस्थापित करने का क्रम निरंतर प्रवाहित होता रहा है। अपनी-अपनी समझ व दृष्टि से हिन्दुत्व के विविध आयामों को लिपिबद्ध व शब्दबद्ध करने का प्रयास भी सनातन काल से चला आ रहा है। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानंद, वीर सावरकर, महर्षि अरविन्द, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ० लोहिया, डॉ० हेडगेवार, श्रीगुरुजी आदि महानायकों ने हिन्दुत्व पर अपने दृष्टिकोण को समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया है। किसी की दृष्टि में ‘हिन्दुत्व’ शब्द नहीं वरन विचार है तो किसी के अनुसार यह जीवन जीने की शैली है। किसी के अनुसार यह अनेक युगों का विकासफल है तो किसी के अनुसार सिंधु नदी के तट पर विकसित सभ्यता और विभिन्न धर्मों का समुच्चय। वीर सावरकर के अनुसार एक ही रक्त, एक ही संस्कृति, समान प्रथाओं और विधियों, एक ही इतिहास के योग से ही हिन्दुत्व बना है।

आसिंधु सिंधु पर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिंदुरिति स्मृतः।।

अर्थात्

प्रत्येक व्यक्ति जो सिंधु से समुद्र तक फैली भारतभूमि को – साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है। ‘पितृभू’ और ‘पुण्यभू’ शब्दों के विशिष्ट अर्थ हैं। पितृभू का अर्थ है अपने पूर्वजों की कर्मभूमि और पुण्यभू का अर्थ है – जो जिस दर्शन को मानते हैं, उस दर्शन का प्रतिपादन करने वाले दार्शनिकों के कार्य, निवास एवं संस्कृति द्वारा बनी पवित्र भूमि।”

हिंदू संस्कृति ,सर्वे भवंतू सुखिन: व वसुधैव कुटुंबकम है जो अन्य धर्मों में नहीं मिलती ,तभी तक है जब हिंदू बहुसंख्यक बहुमत में है हिंदुओं के अल्पमत में आते ही यह देश भारत नहीं रहेगा और हम सब का हाल वही होगा जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं का हुआ है।हमे अपने ही घर में अपने ही मंदिरों और देवालय को आजाद कराने के लिए वर्षों तक मुकदमे लड़ रहे हैं क्यों? यहां तक हमारे देवी देवताओं की जन्मस्थली जिनके हजारों साक्ष्य हमें ही क्यों देने पड़ते हैं ?हम ही हिंदुत्व पर प्रहार सहने को क्यों विवश हैं? सनातन धर्म ही भारत का भविष्य है व विश्व का भविष्य है ।सनातन धर्म ही भारत की राजनीति क्यों नहीं हो सकती? क्या हम हिंदुत्व के विनाश के कगार पर खड़े हैं?

ऐसा ही चिंतन सन् 1994 में न्यायमूर्ति भरूचा और न्यायमूर्ति अहमदी ने प्रस्तुत करते हुए कहा था “सामान्यतः हिन्दुत्व एक जीवन-दर्शन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। यह सहिष्णु है। इस्लाम, ईसाई, पारसी, यहूदी, बौद्ध, जैन, सिख आदि मत के लोग इसीलिए इस देश में संरक्षण प्राप्त कर सके।” विचारों की विविधता ही हिन्दुत्व का आधार है और हिन्दुत्व हमारी राष्ट्रीयता का आधार। इसकी मूल प्रकृति आध्यात्मिक है, अहिंसात्मक है। परमात्मचिंतन इसकी अमरता का स्रोत है। प्रस्तुत पुस्तिका ‘हिन्दुत्व आंदोलन – क्या, क्यों और कैसे?’ के लेखक डॉ० सत्य प्रकाश सिंह ने उचित ही लिखा है कि हिन्दुत्व एक सांस्कृतिक आंदोलन है और इसका आधार मानवतावाद है तथा हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का रास्ता मानवतावाद की मंजिल पर जाकर समाप्त होता है। वह हिन्दुत्व दर्शन को और स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि हिन्दुत्व आंदोलन इस दर्शन में विश्वास करता है कि समस्त मानवीय प्रयास सद्जीवन के लिए होने चाहिए और जो भी मानवीय कार्य सद्जीवन में सहायक नहीं है, उसे मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। डॉ० सत्य प्रकाश के इस चिन्तन को उन्हीं के शब्दों में समझा जा सकता है “हिन्दुत्व आन्दोलन अल्पसंख्यक समुदायों के पृथक अस्तित्व एवं पहचान को पूर्ण मान्यता देता है तथा इनकी पूजा-पद्धतियों के प्रति पूर्ण आदरभाव रखता है परन्तु यह अल्पसंख्यकवाद के खिलाफ है क्योंकि इससे पृथकतावाद को बढ़ावा मिलता है जो राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए अहितकर है।हिंदुत्व भारत की आत्मा है, यहाँ की नदियों के नाम, पहाड़ों और द्वीपों के नाम शहरों के नाम सब के सब सूरज की प्रथम किरण धरती पर आने से लेकर आज तक इसी स्वर्गिक सत्य का उद्घोष करती रही है।