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राजू यादव

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक का पत्र जब से मीडिया में वायरल हुआ तब से अधिकारियों और मंत्रियों के मतभेद जगजाहिर हो चुके। आज विभागों में ट्रांसफर को लेकर बहुत सारी कशमकश डिजिटल माध्यम से सामने आ रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विभागों की स्थिति ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी हस्तक्षेप करना पड़ा और उन्होंने अपने मंत्रियों के पेंच टाइट करते हुए कहा कि मंत्री अपने अधिकारियों कर्मचारियों पर अत्यधिक विश्वास ना करें। बिना पूरी पत्रावली को पढ़े उस पर हस्ताक्षर ना करें, इससे साफ जाहिर है कि उत्तर प्रदेश में अधिकारियों और मंत्रियों के बीच विश्वास की कमी आई है। यह बात मुख्यमंत्री स्वयं कहते हैं तो यह बात बिल्कुल पुख्ता हो जाती है कि प्रदेश में कहीं ना कहीं कुछ संदेहास्पद जरूर हो रहा है। अधिकारियों और मंत्रियों के पत्र डिजिटल माध्यम से जो बाहर आते हैं उसके लिए भी कहीं न कहीं सरकार ही दोषी साबित होती है, क्योंकि सरकार ने आउटसोर्सिंग और सेवा विस्तार पर ज्यादा विश्वास कर स्थाई कर्मचारियों को नजर अंदाज कर रहे हैं उसका असर यह है कि चीजें बाहर आ रही हैं। उत्तर प्रदेश में अधिकारियों का सेवा विस्तार कहीं ना कहीं विभाग के काम-काज और विकास में भी रोड़ा बन रहा है इस पर सरकार को ही निर्णय लेना है कि हम सेवा विस्तार करें या ना करें या फिर अपने स्थाई कर्मचारियों पर विश्वास कर आगे का प्रगति मार्ग अपनाते हुए आगे बढ़े।

जलशक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने प्रदेश सरकार के अधिकारियों पर दलितों के अपमान और विभाग में हुए तबादलों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस्तीफा भेजा है। दिनेश खटीक के इस्तीफे से भाजपा में लखनऊ से दिल्ली तक सत्ता के गलियारों में हलचल मची हुई है। सरकार और संगठन के प्रमुख लोग डैमेज कंट्रोल में जुटे रहे।दिनेश खटीक का आरोप है कि दलित होने के कारण विभाग में उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।शपथ के 100 दिनों से भी ज्यादा समय होने के बाद भी हमें कोई कार्य नहीं दिया गया है।मंत्री दिनेश खटीक ने अपनी ही सरकार के जलशक्ति विभाग में तबादला सत्र-2022 में बड़ा भ्रष्टाचार और वसूली का आरोप लगाया है। उन्होंने तबादले को लेकर अधिकारियों से सूचना मांगी लेकिन उपलब्ध नहीं कराई गई। उनका आरोप है कि विभागाध्यक्ष ने बात सुने बिना ही फोन काट कर जनप्रतिनिधि और राज्यमंत्री का लगातार अपमान किया जाता रहा है।

दिनेश खटीक ने आरोप लगाया है कि दलित समाज का राज्यमंत्री होने के कारण जलशक्ति विभाग में उनके आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। उन्होंने आरोप लगाया है कि किसी बैठक की सूचना भी नहीं दी जाती है। विभाग की योजनाएं और उनकी प्रगति की सूचना भी नहीं दी जाती है। उनका कहना है कि अधिकारी मानते हैं कि केवल गाड़ी उपलब्ध कराना ही राज्यमंत्री का अधिकार है।

प्रदेश सरकार के अधिकारी लगातार दलितों का अपमान कर रहे है। उनका कहना है कि मैं खुद दलित समाज से हैं, ऐसे में समाज के लोग उनसे समस्याओं के समाधान और न्याय की अपेक्षा रखते हैं। जब हम अधिकारियों से दलितों पर हो रहे अत्याचार पर बात करते हैं तो अधिकारी उस पर कार्रवाई नहीं करते हैं। इससे वह ही नहीं बल्कि पूरा दलित समाज अपमानित हो रहा है।उनका कहना है कि विभाग में अधिकारियों की ओर से तवज्जो नहीं मिलने, दलितों को उचित मान सम्मान नहीं मिलने, नमामि गंगे परियोजना में नियमों की अनदेखी और तबादलों में भ्रष्टाचार एवं वसूली,दलित विभाग में दलित समाज के राज्यमंत्री का कोई अस्तित्व नहीं होने से उनका राज्यमंत्री के रूप में काम करना दलित समाज के लिए बेकार है। ऐसे उन्हें पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं बनता है।

योगी सरकार के कई दिग्गज मंत्री अपने महकमे के अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को बदलने की सिफारिश कर चुके हैं। तमाम मंत्री तो पार्टी के शीर्ष नेताओं तक नौकरशाही के कारण आ रही दिक्कतों को रख चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।प्रदेश सरकार में मंत्रियों और नौकरशाही के बीच चल रही खींचतान सतह पर आ गई है। कई विभागों में मंत्रियों और आला अधिकारियों में तालमेल की कमी के कारण विभागीय कामकाज पर भी असर पड़ रहा है। कई दिग्गज मंत्री अपने महकमे के अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को बदलने की सिफारिश कर चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।

  • जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह की भी विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव व सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिन अनिल गर्ग से नहीं पट रही है। वे दोनों को बदलने का आग्रह कर चुके हैं।
  • चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और विभाग के अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद की खींचतान जगजाहिर हो चुकी है।
  • ऊर्जा एवं नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा की भी यूपी पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष एम देवराज से ठनी हुई है। देवराज की कार्यशैली को लेकर स्वयं नौकरशाह रहे शर्मा लखनऊ से दिल्ली तक शिकायतें कर चुके हैं।
  • लोक निर्माण विभाग के मंत्री जितिन प्रसाद का विभाग के प्रमुख सचिव नरेंद्र भूषण से तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। जितिन ने तबादलों में भूषण की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं और विभाग के कामकाज पर भी कई बार नाराजगी जता चुके हैं।
  • उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह और बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह भी विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं हैं।
  • आबकारी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नितिन अग्रवाल के विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी से नहीं बन रही है। नितिन ने भी सरकार और संगठन में अपनी पीड़ा का इजहार किया है।

उत्तर प्रदेश के अभी और भी मंत्री हैं जो अपने अधिकारियों की शिकायत करना चाहते हैं लेकिन वह अपनी भावनाओं को दबाए हुए बैठे कि कहीं उनकी कुर्सी ना चली जाए या बाबा जी उनसे नाराज ना हो जाए। अब लोकतंत्र में यह नई विडंबना चली है कि जनप्रतिनिधियों को भी अधिकारियों के आगे नतमस्तक होना पड़ रहा है। योगी सरकार पूरे प्रदेश में कमिश्नरेट लागू कर देगी तो इन मंत्रियों का क्या हश्र होगा यह तो भविष्य के गर्भ में ही रहेगा जब नतीजा आएगा तब इस पर चर्चा की जाएगी।

नमामि गंगे योजना में समय-समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन, इस बार भाजपा के ही मंत्री ने यह आरोप लगाकर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस योजना को लेकर कई जिलों में कई बार जांच शुरू करने की भी मांग की गई तो प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखे गए।जल शक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने इस योजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। उधर, इस योजना में गड़बड़झाले के पहले भी गंभीर आरोप लगे हैं। 24 मई को सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा ने विधानसभा के प्रश्न प्रहर में पूछा कि 2017 से 2022 के बीच नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति में कितनी राशि का व्यय किया गया? उन्होंने आरोप लगाया कि इस योजना में 17411 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है। आम आदमी पाटी के सांसद संजय सिंह ने तो इस योजना में तीस हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन में थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के नाम पर करोड़ों का खेल किया गया। हालांकि इस बाबत परियोजना के प्रमुख सचिव ने उन्हें लीगल नोटिस भी भेजा। इसके अलावा घाटों के निर्माण में गड़बड़ी, सीवरेज प्रोजेक्ट में धन की बंदरबांट, घटिया पाइप की आपूर्ति, बढ़े दामों पर टेंडर करना, हर घर जल योजना में भी घोटाले के समय-समय पर लगे आरोप लगते रहे।

मुख्यमंत्री की ओर से समय-समय पर राज्यमंत्रियों को कार्य के बंटवारे के निर्देश के बाद भी प्रदेश सरकार के आधा दर्जन से ज्यादा कैबिनेट मंत्रियों और राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने राज्य मंत्रियों को कार्य आवंटन नहीं किया है। मंत्री एवं अधिकारी मस्त हैं राज्य मंत्री एवं जनता त्रस्त है।सरकार गठन के 100 दिनों से अधिक समय होने के बाद भी कार्य का बंटवारा न होने से राज्यमंत्री आहत हैं। वहीं, कुछ राज्यमंत्रियों को जो काम मिला है, वह उससे संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने सरकार और संगठन में उचित स्तर पर इस पर असंतोष भी जताया है। योगी सरकार के 53 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में 20 राज्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्री ने अपने साथ संबद्ध राज्यमंत्रियों को कार्य आवंटित कर दिए हैं और समय-समय पर बतौर प्रतिनिधि क्षेत्रों में भी भेजते हैं। लेकिन सरकार में कैबिनेट मंत्रियों और राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) से संबद्ध किए गए करीब आधा दर्जन से अधिक राज्यमंत्रियों को कामकाज का बंटवारा नहीं हुआ है।

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सरकार के कुछ गिने-चुने मंत्री ही कार्यों से संतुष्ट हैं। योगी सरकार पार्ट -२ में कई बड़े मंत्री मंत्री पद तो पा चुके हैं लेकिन मनमोहक विभाग ना मिलने के कारण अंदर ही अंदर असंतुष्ट है यह दृश्य तो बड़े मंत्रियों का है। राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बने भी कुछ मंत्री अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। सरकार में सबसे बड़ी दुर्दशा राज्य मंत्रियों की हो रही है उन्हें गाड़ी बंगला ऑफिस तो मिल गया है लेकिन विभाग में कार्य नहीं मिल रहा है जिसकी वजह से वह जन सेवा करने में अपने आप को असमर्थ पा रहे हैं और किसी चाहने वाले की मदद भी नहीं कर पा रहे हैं। अब देखना यह है कि इस दर्द को लेकर वह कितने सहनशील हो सकते हैं। योगी के प्रथम कार्यकाल में विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विधानसभा में धरना दिया था और दूसरे कार्यकाल के प्रारंभ होते ही अब मंत्रियों ने अपनी पीड़ा को जन सामान्य के सामने बताना प्रारंभ कर दिया। यहां तक कि कुछ मंत्रियों के इस्तीफे की खबर भी सोशल मीडिया पर काफी जोरों से प्रचलित हो रही है।योगी सरकार के ज्यादातर राज्यमंत्रियों को केवल निरीक्षण, विधानसभा-विधान परिषद के सवालों व जनता के पत्रों का जवाब देने जैसे काम दिए गए हैं। विभागीय बैठकों में न बुलाना, विभागीय आदेश-निर्देश की सूचना न देना और तबादलों की सिफारिश पर सुनवाई न होना भी इनकी समस्या है।

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