रोहिणी आयोग और ओबीसी उप-श्रेणीकरण चर्चा में क्यों….?

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लौटनराम निषाद

…..केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के उप-श्रेणीकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये रोहिणी आयोग के कार्यकाल को बार बार 6-6 महीना के लिए बढ़ाती जा रही है।जिसका मकसद अतिपिछड़ों में मुद्दे को गर्म कर पिछड़ा-अतिपिछड़ा के मध्य नफरत का बीज बोना है।रोहिणी आयोग का गठन अक्तूबर 2017 में संविधान के अनुच्छेद-340 के तहत किया गया था। उस समय आयोग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये 12 सप्ताह का समय दिया गया था, हालाँकि इसके बाद से कई बार आयोग के कार्यकाल में विस्तार किया जा चुका है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, भारत का राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच करने तथा उनकी दशा में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान के लिये एक आदेश के माध्यम से आयोग की नियुक्ति/गठन कर सकता है।

प्रमुख बिंदु-

ओबीसी के उप-श्रेणीकरण के लिये समिति की आवश्यकता:

समानता सुनिश्चित करने के लिये –

इस आयोग का गठन केंद्रीय ओबीसी सूची में मौजूद 5000 जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने हेतु किया गया था।
नियम के मुताबिक, अन्य पिछड़ा वर्ग को केंद्र सरकार के तहत नौकरियों और शिक्षा में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है।
उप-श्रेणीकरण की आवश्यकता इस धारणा से उत्पन्न होती है कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल कुछ ही संपन्न समुदायों को 27 प्रतिशत आरक्षण का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।
उप-श्रेणीकरण से केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अवसरों का अधिक समान वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की सिफारिशें:-
ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) ने ओबीसी को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों जैसी तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किये जाने की सिफारिश की थी।
ओबीसी आरक्षण के लाभ का अधिकांश हिस्सा प्रायः प्रभावशाली ओबीसी समूहों द्वारा प्राप्त किया जा रहा है, इसलिये ओबीसी के भीतर अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिये उप-कोटे को मान्यता देना अति आवश्यक है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के पास सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की शिकायतों और उनसे संबंधित कल्याणकारी उपायों के क्रियान्वयन की जाँच करने का अधिकार है।
आयोग के विचारार्थ विषय
असमानता की जाँच करना:
केंद्रीय OBC सूची में शामिल जातियों या समुदायों के बीच आरक्षण के लाभों के असमान वितरण तथा उनकी सीमा की जाँच करना।
मापदंडों का निर्धारण: ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये वैज्ञानिक तरीके से एक आवश्यक तंत्र और मापदंडों का निर्धारण करना।
वर्गीकरण: उप-वर्गीकरण के दायरे में आने वाली जातियों या समुदायों या उप-जातियों की पहचान करना और उन्हें उनकी संबंधित उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करना।
मौजूदा त्रुटियों को समाप्त करना:
ओबीसी की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी प्रकार की पुनरावृत्ति, अस्पष्टता, विसंगति तथा वर्तनी या मौजूदा त्रुटियों को समाप्त करना।
ओबीसी की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी प्रकार की पुनरावृत्ति, अस्पष्टता, विसंगति तथा वर्तनी या प्रतिलेखन की त्रुटी में सुधार करने के संदर्भ में सलाह देना।
समिति के समक्ष चुनौतियाँ-

आँकड़ों की कमी:- केंद्र सरकार की नौकरियों और विश्वविद्यालय में प्रवेश में विभिन्न ओबीसी समुदायों के प्रतिनिधित्त्व तथा उन समुदायों की आबादी की तुलना करने के लिये आवश्यक डेटा की उपलब्धता अपर्याप्त है।
सर्वेक्षण में देरी:- वर्ष 2021 की जनगणना ओबीसी से संबंधित डेटा एकत्र करने को लेकर घोषणा की गई थी, हालाँकि इस संबंध में अभी तक कोई आम सहमति नहीं बन पाई है।वैसे केन्द्र सरकार ओबीसी की जनगणना कराने से कतरा रही है।पिछलर स्तर में गृह राज्यमंत्री नित्यानन्द राय ने संसद में साफतौर पर कहा कि तकनीकी कारणों से ओबीसी की जनगणना सम्भव नहीं है।
आयोग द्वारा अब तक की गई जाँच-वर्ष 2018 में, आयोग ने पिछले पाँच वर्ष में ओबीसी कोटा के तहत दी गई केंद्र सरकार की 1.3 लाख नौकरियों का विश्लेषण किया था।

आयोग ने पूर्ववर्ती तीन वर्षों में विश्वविद्यालयों,आइआइटी,एनआईआईटी, आईआईएम और एआईआईएमएस समेत विभिन्न केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में ओबीसी प्रवेशों से संबंधित आँकड़ों का विश्लेषण किया था। आयोग के मुताबिक,ओबीसी के लिये आरक्षित सभी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों की सीटों का 97 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी के रूप में वर्गीकृत सभी उप-श्रेणियों के केवल 25 प्रतिशत हिस्से को प्राप्त हुआ।

उपरोक्त नौकरियों और सीटों का 24.95 प्रतिशत हिस्सा केवल 10 ओबीसी समुदायों को प्राप्त हुआ।

नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में 983 ओबीसी समुदायों (कुल का 37%) का प्रतिनिधित्व शून्य है।
विभिन्न भर्तियों एवं प्रवेश में 994 ओबीसी उप-जातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68% का प्रतिनिधित्व है।
वर्ष 2019 के मध्य में आयोग ने यह सूचित किया कि उसकी मसौदा रिपोर्ट (उप-वर्गीकरण पर) तैयार है। व्यापक रूप से यह माना जाता है कि इस रिपोर्ट के वृहद् राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं और इसे न्यायिक समीक्षा का सामना भी करना पड़ सकता है, इसलिये इसे अभी तक जारी नहीं किया गया है।
(केंद्र सरकार में ओबीसी भर्ती (वर्ष 2020 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा NCBC को प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर)
42 मंत्रालयों/विभागों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व इस प्रकार है-
1.केंद्र सरकार की सेवाओं के तहत ग्रुप A में 16.51 %
2.केंद्र सरकार की सेवाओं के तहत ग्रुप B में 13.38 %
3.ग्रुप C में 21.25 % (सफाई कर्मचारियों को छोड़कर)
4.ग्रुप D में 17.72 % (सफाई कर्मचारी)
NFS के संबंध में- NCBC द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, ओबीसी के लिये आरक्षित कई पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों की भर्ती की गई क्योंकि ओबीसी उम्मीदवारों को “NFS” यानी None Found Suitable (कोई भी उपयुक्त नहीं मिला) घोषित किया गया था।
क्रीमी लेयर में संशोधन:- ओबीसी के लिये क्रीमी लेयर हेतु आय सीमा में संशोधन भी अभी तक विचाराधीन है।


नोट:- हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण हेतु अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण पर भी इसी प्रकार की कानूनी बहस को फिर से चर्चा में ला दिया है, जिसे आमतौर पर एससी और एसटी के लिये “कोटा के अंतर्गत कोटा” (Quota within Quota) कहा जाता है।इस सम्बंध में सामाजिक न्याय के सरोकारों से जुड़े सामाजिक न्याय चिंतक लौटनराम निषाद का कहना है कि रोहिणी आयोग के गठन का मकसद वंचित वर्ग को सामाजिक न्याय देना नही,बल्कि राजनीतिक लाभ के पिछड़ों में नफरत पैदा कर इनकी एकता को खंडित करना है।उन्होंने कहा कि ओबीसी को 3 नहीं 4 उपश्रेणियों में बाँटा जाए,पहले इनका प्रमाणिक जनसंख्या का आंकड़ा इकट्ठा करने के लिए इनकी जनगणना कराई जाए।मण्डल कमीशन ने सेन्सस-1931 के आधार पर 52.10% ओबीसी जनसंख्या का अनुमान किया था।मण्डल कमीशन की सिफारिश लागू होने के बाद 1999 व बाद के वर्षों में मोढ़ घाँची, कोर्चा, कुरुबा,कलवार,लिंगायत,बोक्कालिगा, जाट आदि सहित सैकड़ों जातियों को ओबीसी में शामिल करने के बाद ओबीसी की संख्या लगभग 60% हो गयी होगी।सही आँकड़े के लिए केन्द्र सरकार उपवर्गीकरण से पूर्व सेन्सस-2021 में ओबीसी की जनगणना कराये व एससी, एसटी की तरह ओबीसी को भी जनसंख्या अनुपात में आरक्षण कोटा दे,अन्यथा उपवर्गीकरण का नुकसान के सिवाय वंचित वर्ग को कोई लाभ नहीं होगा।संविधान के अनुच्छेद-15(4) व 16(4) में भी ऐसी भी मंशा समुचित प्रतिनिधित्व के लिए अभिव्यक्त की गई है।