शाहनवाज़ आलम

प्रस्तावना से समाजवाद और सेकुलर शब्द हटाने की क़ानूनी कोशिश निंदनीय आरएसएस के एजेंडा वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अति सक्रिय क्यों क्या केशवानंद भारती और एसआर बोम्मई केस के फैसले को बाधा मानती है सरकार अम्बेडकर को गलत तरीके से उद्धरित कर रही है भाजपा, बाबा साहब हमेशा समाजवाद के पक्ष में थे

लखनऊ।
भारत के संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और सेकुलर शब्द हटाने की मांग वाली भाजपा नेता सुब्रमणियन स्वामी की  याचिका की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के तैयार हो जाने को अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने भारतीय राज व्यवस्था के चरित्र को बदलने की नियत से की गयी राजनीतिक पहल बताया है। उन्होंने कहा कि यह आरएसएस के एजेंडे को लागू करने की क़ानूनी कोशिश है।

कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि 26 जनवरी 2015 को ही मोदी सरकार ने अखबारों में प्रस्तावना के 42 वें संविधान संशोधन से पहले के प्रारूप को विज्ञापित करवाया था जिसमें समाजवाद और सेकुलर शब्द नहीं था। इसीतरह 19 मार्च 2020 को राज्य सभा में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने प्राइवेट मेम्बर बिल लाकर संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद शब्द हटाने की मांग की थी। उसके बाद 3 दिसंबर 2021 को भी राज्य सभा में भाजपा सांसद केजे अल्फोंस से संघ ने प्रस्तावना से सेकुलर शब्द हटाने की मांग वाला प्राइवेट मेंबर बिल पेश कटवाया जिसे उप सभापति ने स्वीकार भी कर लिया जो असंवैधानिक था। क्योंकि केशवानन्द भारती और एसआर बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं हो सकता यहाँ तक कि संसद भी कोई बदलाव नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा इन दोनों फैसलों को अपने उद्देश्यों में बाधा मानती है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 6 दिसंबर 2021 को जम्मू और कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल ने भी सार्वजनिक तौर पर कहा कि संविधान में सेकुलर शब्द होना कलंक है और इससे भारत की छवि खराब होती है। जिस पर 24 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के हर ज़िले से अल्पसंख्यक कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेज कर पंकज मित्तल के खिलाफ़ संविधान की अवमानना करने पर कार्यवाई की मांग की लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई एक्शन नहीं लिया गया। जबकि इस पर स्वतः संज्ञान लिया जाना चाहिए था।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इसी राजनीतिक नियत से भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय की याचिका पर पूजा स्थल अधिनियम 1991 को भी बदलने की कोशिश की जा रही है। जिसपर 8 सितंबर को सुनवाई की संभावना है। उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों है कि कश्मीर से 370 हटाने और सीएए-एनआरसी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है और आरएसएस के एजेंडा के अनुरूप याचिकायों पर सुप्रीम कोर्ट बहुत ज़्यादा तेज़ी से सुनवाई कर रहा है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि दलितों, पिछड़ों और कमज़ोर तबकों को मिले संवैधानिक अधिकारों को खत्म करने और देश की संपत्ति को निजी उद्योगपतियों को बेचने के लिए भाजपा संविधान से समाजवाद शब्द हटाना चाहती है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि ऐसा वो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को गलत तरीके से उद्धरित कर के करने की कोशिश कर रही है। जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा के पूर्व अवतार जनसंघ ने इंदिरा गांधी जी द्वारा समाजवादी दृष्टिकोण से दलितों को दिये गए भूमि के पट्टे का विरोध किया था।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि गुजरात जनसंहार मामलों में अमित शाह के वकील रहे मौजूदा मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल को लेकर आम लोगों में यह धारणा है कि भारत के धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी चरित्र को बदलते हुए आरएसएस के हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को मजबूत करने वाले क़दम उठाये जा सकते हैं। आम लोगों में ऐसी धारणा बनना लोकतंत्र और न्यायालय की गरिमा के अनुरूप नहीं है।

शाहनवाज़ आलम
चेयरमैन अल्पसंख्यक विभाग