क्या अखिलेश की बदलेगी छवि….?

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उत्तर प्रदेश का चुनावी मैदान राजनीतिक दलों के लिए जंग बन गया है। राजनीतिक दल और राजनेता चुनावी झोली से नित्य नए जुमले निकाल कर रहे हैं। निजी हमले भी किए जा रहे हैं और 30-35 साल पुराने गड़े मुर्दे भी उखाड़े जा रहे हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है। लेकिन सत्ता और सिंहासन की लालच में सब कुछ जायज है।

समाजवादी पार्टी इन दिनों भाजपा से गैर-यादव ओबीसी नेताओं को अपने पाले में करने में जुटी है। अखिलेश की कोशिश ओबीसी वोट बैंक को वापस लाने की दिशा में है। पार्टी को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश के 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता उनके पक्ष में वोट करेंगे। आपतको बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में बयान दिया था कि यह चुनाव 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत के बीच की लड़ाई है।2017 के विधानसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी भाजपा से हार गई, तब भी अखिलेश यादव की पार्टी को 66 प्रतिशत यादव वोट मिले। लेकिन गैर यादव ओबीसी जाति वर्ग में बीजेपी को करीब 60 फीसदी वोट मिले।  गैर-जाटव दलित वोटों के लिए भी बदलाव समान था। मायावती की बसपा को अभी भी 86 फीसदी जाटव और 43 फीसदी गैर-जाटव दलित वोट मिले, लेकिन बीजेपी को 31 फीसदी गैर-जाटव वोट मिले।

पांच बार के विधायक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पडरौना से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर पिछले तीन चुनाव जीते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य का राजनीतिक जीवन 1980 के दशक में युवा लोक दल के साथ शुरू हुआ था। वह 1996 में बसपा में शामिल होने से पहले जनता दल के साथ भी कुछ समय के लिए काम किए थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी छवि एक मजबूत गैर यादव ओबीसी नेता के तौर पर है। मौर्य ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के साथ भी बतौर मंत्री काम किया। दिलचस्प बात यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य 2019 से बीजेपी सांसद हैं।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्विटर के जरिए तीनों ‘बागी’ मंत्रियों का अपनी पार्टी में स्वागत किया है। इन तीनों पूर्व मंत्रियों के लिए ट्वीट में सम्मान के भाव थे। अखिलेश ने अपने संदेश में “सामाजिक न्याय” की बात कही है। स्वामी प्रसाद मौर्या, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी ने योगी सरकार से इस्तीफा यह कहते हुए दिया कि उत्तर प्रदेश में दलितों, पिछड़े वर्गों, बेरोजगार युवाओं, किसानों और छोटे और मध्यम व्यापारियों की उपेक्षा की जा रही है। दोनों के इस्तीफे का लहजा लगभग एक जैसा ही था। हालांकि,ट्विटर पर लोगों ने इसके लिए मजे भी लिए। इसके अलावा आज एक और मंत्री धर्म सिंह सैनी ने भी इस्तीफा दे दिया।

भगवती शरण सागर – कानपुर नगर जिले के बिल्हौर से भाजपा विधायक रहे भगवती सागर चार बार विधायक रहे हैं। वह 1993 में भोगनीपुर, 1996 में बिल्हौर और 2007 में मौरानीपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे। 2012 में पार्टी से निकाले जाने से पहले सागर बसपा के साथ थे। इसके बाद उन्होंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया।

रोशनलाल वर्मा – रोशनलाल वर्मा उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के तिलहर से तीन बार के भाजपा विधायक हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में वर्मा ने कांग्रेस के पूर्व नेता जितिन प्रसाद को हराया था, जो अब भाजपा के साथ हैं। भाजपा छोड़ने का कारण पूछने पर रोशनलाल वर्मा ने कहा, “यह निर्णय एक दिन में नहीं लिया गया, क्योंकि मैं गरीबों की सेवा के लिए भाजपा में शामिल हुआ था। पार्टी ने किसानों, दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों की उपेक्षा की है।”

बृजेश प्रजापति– स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी के रूप में देखे जाने वाले बृजेश कुमार प्रजापति  उत्तर प्रदेश के बांदा में तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक हैं। उन्होंने मंगलवार को भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। प्रजापति कानून के जानकार हैं। भाजपा के टिकट पर वह 2017 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने 2010 और 2012 के बीच उत्तर प्रदेश पिछड़ा आयोग के सदस्य के रूप में भी काम किया है। पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा को लिखे पत्र में बृजेश कुमार प्रजापति ने लिखा कि पिछड़ी जातियों, दलितों, मुसलमानों और छोटे व्यापारियों के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार की “अज्ञानता” ने उन्हें यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया।

दारा सिंह चौहान – उत्तर प्रदेश सरकार में वन, पर्यावरण और पशुपालन मंत्री दारा सिंह चौहान ने 1996 में बसपा के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। बाद में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और सपा के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के लिए चुने गए। चौहान 2009 के आम चुनावों से पहले बसपा में लौट आए और उन्हें लोकसभा में बसपा संसदीय दल का नेता भी नियुक्त किया गया। दारा सिंह चौहान 2015 में भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें पार्टी के ओबीसी मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने मऊ जिले के मधुबन निर्वाचन क्षेत्र से 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा और एक सहज अंतर से जीत हासिल की थी।

मुकेश वर्मा – मुकेश वर्मा 2017 में बीजेपी के टिकट पर पहली बार विधायक बने थे। वर्मा फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। पेशे से चिकित्सक वर्मा निषाद समुदाय से हैं।

विनय शाक्य- उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के बिधूना विधानसभा क्षेत्र से पहली बार भाजपा विधायक विनय शाक्य ने समाजवादी पार्टी में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद शाक्य की बेटी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें दावा किया गया कि उनके पिता का “अपहरण” किया गया था। विधायक ने बाद में संवाददाताओं से कहा कि उनकी बेटी का दावा गलत है।

बाला प्रसाद अवस्थी- बाला प्रसाद अवस्थी तीन बार के विधायक हैं। उन्होंने 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में लखीमपुर जिले के धौरहरा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। भाजपा से जुड़े होने से पहले अवस्थी मोहम्मदी विधानसभा क्षेत्र से बसपा विधायक थे।

अवतार सिंह भड़ाना- उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक अवतार सिंह भड़ाना जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल में शामिल हो गए हैं, जो समाजवादी पार्टी का सहयोगी है। भड़ाना एक गुर्जर नेता हैं, जिन्होंने 2016 में भाजपा में प्रवेश किया। कांग्रेस के साथ अपने समय के दौरान, अवतार सिंह भड़ाना चार बार लोकसभा के लिए चुने गए, उत्तर प्रदेश में मेरठ और हरियाणा में फरीदाबाद का प्रतिनिधित्व किया।

धर्म सिंह सैनी- योगी आदित्यनाथ सरकार में एक और मंत्री, धर्म सिंह सैनी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के नकुड़ से चार बार विधायक हैं। सैनी 2016 में भाजपा में शामिल होने से पहले बसपा में थे।

1990 के दशक की शुरुआत में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार में सामाजिक न्याय की पकड़ थी, जिसमें अखिलेश यादव के पिता और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का उदय हुआ। उन्होंने उत्तर प्रदेश के चुनावों में ओबीसी को वोट बैंक के रूप में प्रमुखता दी। अतीत की कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग ने समाजवादी पार्टी के ओबीसी-मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दलित वोट बैंक को रास्ता दिया।उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ ‘ब्राह्मणों में गुस्सा’ है। भगवा पार्टी के लिए इसे एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा था। चुनावों की घोषणा के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले तीन मंत्रियों ने दो दिनों में योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश बीजेपी में ‘विद्रोह’ की चर्चा शुरू हो गई है।

भीड़ से कुछ नहीं होता, सरकार तो हमारी ही बनेगी’ ये खींस निपोरता बयान आप लगातार सुन रहे होंगे, कभी डबल इंजन वाली सरकार के किसी डिप्टी के मुंह से, मंत्री के मुंह से तो कभी भाजपा के बड़े नेता के मुंह से, कभी स्तरहीनता के नए नैरेटिव गढ़ते मूर्ख लोगों के मुंह से।लेकिन प्रधानमंत्री की जनसभाओं से लेकर मुख्यमंत्री की सभाओं में खाली पड़ीं कुर्सियां भगवा ब्रिगेड के माथे पर बल डाल चुकी हैं। यहां बात हो रही है उत्तर प्रदेश की,समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की समाजवादी विजय रथ यात्रा में उमड़ते अपार जनसमूह की, भगवा कुनबे की सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से मैदान भरने की, कुर्सियां भरने की।भीड़ से कुछ नहीं होता, कहने वाले भाजपाई और महंत जी की सरकार भाजपा की रैलियों में लोग लाए जाएं, इसके लिए सारे घोड़े खोल चुकी है।सभी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी भगवा ब्रिगेड की आदमी जुटाओ परियोजना में पूरी मेहनत से काम करने में जुटे हुए हैं।