विश्व पर्यावरण दिवस, हमेशा के लिए सोने से पहले जाग जाओ!

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विश्व पर्यावरण दिवस के प्रति फैलायेगे सबको ज्ञान,तभी तो पूरे विश्व में हमारा देश भारत बनेगा महान

बच्चो, बूढों, युवाओ में जागरूकता फैलाये,सभी मिलकर विश्व पर्यावरण दिवस मनाये

चलो इस धरती को रहने योग्य बनाये,सभी मिलकर विश्व पर्यावरण दिवस मनाये।।

चलो इस धरती को रहने योग्य बनाये,सभी मिलकर विश्व पर्यावरण दिवस मनाये

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस  मनाया जाता है। यह दिन पर्यावरण के ज्वलंत मुद्दों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने और इस दिशा में उचित कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख साधन है।देखा जाए तो ये दिन हमारे भविष्य के बारे में है। अगर हमारा पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे। इसलिए Earth Day के साथ-साथ यह दिन बाकी सभी दिनों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बाकी दिन तभी मनाये जा सकते हैं जब उन्हें मनाने के लिए हम बचे रहें और विश्व पर्यावरण दिवस हमे बचाने की दिशा में एक बेहद ज़रूरी कदम है।

पेड़-पौधों के फलों से निकले पराग कण, फंगस तथा छोटे जीवाणुओं के स्पोरस, ज्वालामुखी पहाड़ों से निकलने वाली हानिकारक गैसें, कच्छ भूमि (दल-दल) से निकलने वाली हाईड्रोकार्बन, आंधी, तूफान, फसलों के अवशेषों को जलाने एवं जंगलों की आग व सूर्य जैसे कई अन्य ग्रहों से निकलने वाली कई हानिकारक गैसें तथा कास्मिक इत्यादि किरणें भी प्रदूषण फैलाती हैं।

  पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति अधिक से अधिक लोग जागरुक हों, इस उद्देश्य को लेकर ही सन् 1974 से प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। वैसे सोचा जाए तो पर्यावरण के प्रति सचेत होने की सीख पूरे विश्व को साल 2020 से कोरोना महामारी के प्रकोप से अच्छे से मिल गई है।

जितना खाना पूरा इंग्लैंड खाता है उतना हम भारतीय बर्बाद कर देते हैं।

जिनता खाना हो उतना ही लें बच जाता है तो कोशिश करें कि बाद में उसे consume कर लिए जाए। अन्न की बर्बादी ना करें। जितना अधिक हम अन्न उगाते हैं उतना ही अधिक प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता है।

वातावरण सुरक्षा-मानव जाति का श्रेष्ठ कर्तव्य

मानवप्रजाति द्वारा फैलने वाले प्रदूषण:-

• दिन प्रतिदिन वनों (पेड़-पौधों) को काटा जा रहा है तथा इस प्रकार के और भी कई प्रदूषक पदार्थों के प्रयोग से मानव वातावरण को प्रदूषित किए जा रहा है।

• धातू संशोधन- खनिज पदार्थों को धातू रूप में ढालने से धूल-झाड़, भाप तथा धुएं से निकलने वाले फ्लोराईड, सल्फाईड, सीसा, करोमियम, निक्कल, आरसैनिक, मरकरी इत्यादि वस्तुओं से भी वायु प्रदूषण फैलता है।

• रासायनिक उद्योग- खेतों में रसायनिक खाद: कीड़ों, हानिकारक कीटों व खरपतवार को मारने की दवाईयां (कीटनाशकों), रबर, प्लास्टिक, सीमेंट तथा औजार बनाने से निकलने वाले प्रदूषित उत्पाद कार्बनडाईआॅक्साईड, कार्बन मोनोआॅक्साईड, नाईट्रोजन आॅक्साईड, सल्फरआॅक्साईड, अमोनिया, क्लोरीन इत्यादि गैसें।

• औषधियां तथा सजावट सामग्री बनाने से फैलने वाले मलिन पदार्थ।

• वैल्डिंग: पत्थर रगड़ाई व पीसाई करना, रत्न बनाना।

• मोटर-गाडियां, जैट, हवाई जहाज, कारखानों इत्यादि से निकलने वाला धुआं। यह लगभग 80 प्रतिशत प्रदूषण का कारण हैं।

• खुले में शौच करना प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है।

• सी.एफ.सी. (क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन) जैट गैस से निकलती है तथा ग्लोबल वार्मिंग पैदा करती है।

वातावरण बचाव में मानजाति का योगदान:-

• प्रदूषण बढ़ाने के सभी हानिकारक कारकों पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए इनकी रोकथाम के उचित उपाय सुनिश्चित करने चाहिएं। पृथ्वी को स्वच्छ, उज्जवल तथा विकास-कृत बनाना होगा।

• गाड़ियों का प्रयोग कम किया जाए, बहुत पूरानी गाड़ियों पर प्रतिबन्ध लग जाना चाहिए। डीजल व पैट्रोल के स्थान पर सीएनजी गैस का प्रयोग किया जाए अथवा सुर्य ऊर्जा तथा बैटरी से आधुनिक गाड़ियां चलाई जाएं।

• रसोई घरों में लकड़ी व कायले के स्थान पर प्राकृतिक गैस अथवा वायो गैंस को बढ़ावा देना चाहिए।

• बिजली पैदा करने के लिए थर्मल प्लांट के स्थान पर परमाणु -ऊर्जा, सौर-ऊर्जा तथा पवन -ऊर्जा के स्त्रोत विकसित किए जाएं।

• पेड़-पौधे अथिक लगाए जाएं और उनका सरंक्षण किया जाए।

• जंगलों की आग का बचाव किया जाए।

• खेतों में खरपतवार में कभी आग नहीं लगाएं, बल्कि उससे खाद बनाई जाए।

• खेतों में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाईयों को त्याग कर जीवाणुओं द्वारा तैयार की गई बायो-फर्टीलाईजर व बायो-पैस्टीसाईड का प्रयोग किया जाए।

• मल, मैल पाखाना मलमार्ग (टॉयलेट शीट), तलाब, नहरों, झीलों, नदियों की नियमित ढंग से सफाई पर पूरा ध्यान दिया जाए।

• फैक्ट्रियों में ऊंची चिमनियां होनी चाहिए, इनमें छानने के उपक्रम, जमाव तथा तलछटीय स्थितियां लगवाई जाएं, ताकि सुक्ष्मकण तथा गैसें निकलने के आसार कम किये जा सकें।

• सरकार द्वारा सभी प्रकार के औद्योगिक संस्थानों का समयानुसार परीक्षण करवाया जाए ताकि प्रदूषण पर नियंत्रण रहे।

• ‘इलाज से परहेज अच्छा है।’ मलीनता रोकने से ही कई प्रकार की बीमारियों से बचाव संभव है।

आज धरती माँ रो रही है क्योंकि-

  • मनुष्यों की वजह से आज जीव-जंतुओं के विलुप्त होने की दर जितना होनी चाहिए थी उससे 1000 गुना अधिक है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि – 20,000 से अधिक जीव-जंतु हमेशा के लिए विलुप्त होने की कगार पर हैं।