ठंड के मौसम में योगासन से गर्मी

188

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”इस समाचार को सुने”]

जनेश्वर मिश्रा योग परिवार

योगगुरू के0डी0 मिश्रा


मानव शरीर बदलते मौसम के साथ अलग-अलग प्रतिक्रिया करता है.कुछ लोगों को सर्दियों की शुरुआत में ही बहुत ज्यादा ठंड लगने लगती है,वहीं, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें शुरुआती ठंड का कोई असर नहीं होता. इन्हें इतनी कम सर्दी लगती है कि अगर यह लोग स्वेटर पहना शुरू कर दें, तो इनके शरीर पर खुजली होने लग जाती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह होता है कि इनका शरीर अंदर से गरम होता है.ऐसे में इन्हें कम सर्दी लगती है। वही, कई लोगों को गरम कपड़े पहनने के बाद भी अंदर से कंपकंपी होने लग जाती है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि कुछ योगासनों को करके शरीर को भीतर से भी गरम रखा जाए। इसके लिए दो आसन बहुत महत्वपूर्ण हैं.

ठंड का महीना शुरू हो चुका है. ऐसे में उत्तर भारत में ठंड तेज होने लगी है. मौसम के साथ खुद को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी रहता होता है. इस मौसम में खुद को हेल्दी रखने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं. लोग अलग-अलग तरह के सूप और हर्बल टी भी ट्राई करते हैं. लेकिन, क्या आपको पता हैं कि सर्दियों में आप खुद को फिट रखने के लिए तरह-तरह के योग आसन ट्राई कर सकते हैं. यह ना केवल वजन कम करने में मदद करता है बल्कि शरीर में गर्माहट लाने में मदद करता है.यह शरीर को नेचुरली गर्म रखने में मदद करेंगे.

नौकासन – नौकासन को बोट पोज के नाम से जाना जाता है. इसे करने के लिए सबसे पहले आप दोनों पैरों को फैलाएं और ऊपर की तरफ उठाएं. इसके बाद पैरों की मदद से 45 डिग्री के कोण पैर फर्श से रहें. इसके बाद कमर को ऊपर की तरफ उठाएं. इसके बाद हाथ सीधा फैलाएं. ध्यान रखें कि आपकी पोजीशन n उल्टे A जैसी होनी चाहिए.इस आसन की अंतिम अवस्था में हमारे शरीर की आकृति नौका समान दिखाई देती है, इसी कारण इसे नौकासन कहते है.इस आसन की गिनती पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसनों में मानी जाती है.

कपालभाति – कपालभाति को करने के लिए सबसे पहले वज्रासन या पद्मासन में बैठ जाएं,इसके बाद अपने दोनों हाथों से चित्त मुद्रा बनाएं. अब इसे अपने दोनों घुटनों पर रखें. गहरी सांस अंदर की ओर लें और झटके से सांस छोड़ते हुए पेट को अंदर की ओर खींचें.ऐसा कुछ मिनट तक लगातार करते रहें, एक बार में 40-50 बार इस क्रिया को दोहरा सकते हैं.

कपालभाति प्राणायाम कैसे करें? इसका जबाब अब हम यहाँ देंगे कपालभाति प्राणायाम विधि के द्वारा। कपालभाति प्राणायाम विधि को हम बहुत ही सरल ढंग से एक सूचीबद्ध तरीके से आपको बतलायेंगे, जो निम्ननुसार है :-

अपने आँखों को बंद करके ध्यान मुद्रा में बैठ जाये और पूरे शरीर को बिलकुल ढ़ीला छोड़ दे. अपने दोनों ही नोस्ट्रिल्स से साँस ले जिससे की आपका पेट फूल जाएगा और आपके पेट की पेशियों को सिकोड़ते हुए साँस को निष्कासित कर दे. अगली बार जब आप साँस लेंगे तो पेट की पेशियाँ स्वतः ही फ़ैल जाएंगे.ध्यान दे कि श्वसन की प्रक्रिया करते समय आप किसी भी तरह से  बलपूर्वक साँस न ले.इस प्रक्रिया को पहले तो आस्ते-आस्ते शुरू करे , फिर कुछ दिनों के अंतराल पर इस प्रक्रिया में तेजी लाये.याद रखे, इस क्रिया को करते समय आपके पेट को फूलना और सिकुड़ना बहुत ही आवश्यक है. कपालभाति प्राणायाम के प्रारम्भ के दिनों में कपालभाति प्राणायाम को 25 से 30 बार ही करे, कुछ दिनों बाद धीरे धीरे करके इसे बढ़ाकर 150 से 200 तक कर दे. आप कपालभाति प्राणायाम को बढ़ाकर 450 से 500 बार तक भी कर सकते है.

शवासन – शवासन को कॉर्प्स पोज भी कहा जाता है. इस आसन में शरीर को आराम देना होता है और शरीर पर ध्यान केंद्रित करना होता है. इस पर आपको सिर से पैरों की उंगलियों तक ध्यान केंद्रित करना होता है. इससे शरीर की सारा स्ट्रेस निकल जाता है. कोशिश करें की इस पोजीशन में कम से कम 10 मिनट रहें. यह शरीर के साथ-साथ मन को भी शांत करने में मदद करता है.शवासन एक बहुत सरल लेकिन प्रभावी योग आसन है, आमतौर पर इसे योग अभ्यास के अंत में किया जाता है. इस आसन का अभ्यास अपने शरीर, दिमाग और आत्मा को आराम देने के लिए, अपनी कमर के बल सीधा लेट कर किया जाता है.इस आसन में हमारा शरीर स्थिर स्थिति में रहता है और उसमे कोई हलचल नहीं होती जिससे ये मृत शरीर की तरह दिखता है, यही कारण है कि इस आसन को शवासन कहा जाता है. तनाव मुक्त मस्तिष्क, शांत मन और स्वस्थ शरीर पाने के लिए रोजाना 10 मिनट शवासन जरूर करें.

दिल की बीमारी से ग्रसित लोगों को सर्दियों के मौसम में विशेष सावधानी रखनी की जरूरत होती है क्योंकि कई अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि सर्दी के मौसम में दिल का दौरा आने का खतरा ज्यादा होता है. ऐसे में यदि आप यहां दिए गए योग टिप्स या योगासन करेंगे तो किसी भी खतरे से बच सकते हैं. सर्दियों के मौसम में तापमान कम होने के कारण शरीर में रक्त वाहिकाएं संकुचित होने लगती है, जिसके परिणाम स्वरूप ब्लड प्रेशर के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का खतरा बना रहता है. ऐसी परिस्थिति में सर्दियों में दिल के रोगियों को आहार में सावधानी रखने साथ व्यायाम और योग की मदद भी जरूर लेना चाहिए। योग, प्राणायाम व ध्यान की तकनीकों के जरिए हार्ट अटैक के खतरे को बहुत कम किया जा सकता है.

वशिष्ठासन – वशिष्ठासन को साइड प्लैंक पोज़ के नाम से भी जाना जाता है. इसे करने के लिए सबसे पहले आप जमीन पर योगा मैट बिछाएं और पैर सीधा करके बैठ जाएं. इसके बाद इसके बाद हाथ की ताकत की मदद से आप शरीर को अपनी तरफ उठाएं और शरीर 45 डिग्री कोण पर हो. इके बाद दूसरा पैर हवा में सीधा उठाएं और दूसरे पैर को फर्श पर टिका कर संपर्क करें. 20 सेकंड बाद पोज बदलें.

वशिष्ठासन योग आसन आपको पहले करने थोड़ा कठिन लग सकता है, लेकिन लगातार अभ्यास के बाद आप इस योग को आसानी से कर सकते हैं. आप वशिष्ठासन योग करने के लिए निम्न स्टेप्स को करें. वशिष्ठासन योग करने के लिए आप सबसे पहले एक योगा मैट को बिछा कर उस पर सीधे खड़े हो जाएं. अब आप अपनी कमर के यहाँ से झुक कर दोनों हाथों को फर्श पर रख लें. आप इस स्थिति में अधोमुख श्वान आसन योग कर रहे व्यक्ति की तरह दिखाई देंगे. फिर आप अपने दोनों पैरों को पीछे की ओर सीधा करते जाएं और पैरों को पूरी तरह से सीधा कर लें. इस मुद्रा में आप एक पुश-अप करनेवाले व्यक्ति की तरह दिखाई देंगे. आपके पूरे शरीर का वजन दोनों हाथों और पैरों की उँगलियों पर होगा. इसके बाद अपने दाएं हाथ पर पूरे शरीर का वजन लेकर आयें और बाएं हाथ को ऊपर उठाएं. फिर आप बाएं पैर को दाएं पर के ऊपर रखें, इसमें भी आपके बाएं पैर का भार दाएं पैर के ऊपर होगा. अब साँस को अन्दर लेते हुयें बाएं हाथ को ऊपर की ओर पूरी तरह से सीधा करे जिससे कि आपके दोनों हाथ एक सीधी रेखा में हो जाए. ध्यान रखें कि वशिष्ठासन योग में आपके पैर, ऊपर का शरीर और सिर एक सीधी रेखा में रहें. कुछ सेकंड के लिए आप इस स्थिति में रहें और फिर साँस को छोड़ते हुयें, बाएं हाथ को नीचे लाएं. बाएं पैर को नीचे करके अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाएं.

शीर्षासन- शीर्षासन के हेड स्टैंड भी कहा जाता है. इस योग को करने के लिए आप दीवार का सहारा भी लें सकते हैं. सबसे पहले अपनी कोहनियों को फर्श पर टिकाएं और सिर बीच में डाल दें. इसके बाद शरीर के नीचले शरीर खीचें और इसके बाद शरीर को दीवार के साथ सटा दें. इसके बाद खुद को संतुलित रखें और फिर दिवार को छोड़ खुद को संतुलित रखने की कोशिश करें. इसी पोजिशन में कम से कम 5 मिनट रहें.

शीर्षासन करने से पहले मैट या फिर नरम तौलिया बिछा लें,इसके बाद वज्रासन में बैठ जाएं. सिर को ज़मीन पर टिका दें और दोनों हाथों को जमीन पर टिका कर शरीर को बैलेंस करने की कोशिश करें. इस दौरान दोनों हाथ की उंगलियों को आपस में कसकर जोड़ कर रखें और सिर को उनके बीच में रख कर पैर को धीरे धीरे आगे लाए और उपर उठाने की कोशिश करें. शुरुआत में थोड़ी कठिनाई होगी पैरों को उपर उठाने के लिए इसलिए आप किसी दीवार या किसी सहयोगी की मदद ले सकते है. आप पैर को एक-एक कर उपर उठाए और उसे सीधा करने की कोशिश करें. शीर्षासन के दौरान जमीन और पीठ 90 डिग्री के एंगल में होना चाहिए. जब पैर और पीठ एक दम सीधे हो जाए तो शरीर का वजह धीरे धीरे हाथ से सिर पर ला दें.शुरुआत में इसे 30 सेकंड करने का प्रयत्न करें और बाद में अभ्यास के आधार पर इसे बढ़ाते चले जाएं.

अग्निसार आसन – इस प्राणायाम का अभ्यास खड़े होकर, बैठकर या लेटकर किया जा सकता है, इसे करने के लिए सबसे पहले बैठकर दोनों हाथों को घुटनों के ऊपर रखें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए पेट को अंदर की ओर खींचे. सांस को जितनी देर रोक सकें, रोकने की कोशिश करें. पेट को नाभि पर से बार-बार झटके से अंदर खीचें और ढीला छोड़े.

अग्निसार प्राणायाम करने के लिए सबसे पहले आपको पद्मासन की स्थिति में बैठ जाना हैपुश-अप करने यानी कि सामान्य बैठने की स्थिति जिसमें घुटने मोड़कर बैठा जाता है, उस स्थिति में आपको बैठ जाना है,और आपको अपनी आंखों को थोड़ा सा बंद करके लंबी सांस लेकर के मन को एकाग्र करना हैपुश-अप करने आपको धीमे-धीमे करके लंबी सांस छोड़नी है, और लंबी सांस छोड़ने के बाद में आपको कुछ क्षणों तक अपनी सांस को रोक देना है, जिसे बहिर्मुख भी कहा जाता है. अब आपको अपने दोनों हाथों से अपने दोनों घुटनों को पकड़ना है और अपने पेट को थोड़ा सिकोड़ना है। और इतना सिकुड़ना है कि आपकी नाभि आपके पेट के अंदर की गहराई को छूने लगे या फिर छूने की कोशिश करें. अब श्वास वापस लेने से पहले आपको अपने शरीर को सामान्य स्थिति में लाना है, यानी कि आप को फिर से अपने हाथों को सामान्य स्थिति में रखना है, और अपने पेट पर पड़ रहे दबाव को कम करना है. इसके बाद भी आपको धीरे-धीरे करके लंबी सांस लेनी है। इस पूरी प्रक्रिया को एक अग्निसार प्राणायाम कहा जाता है. 10 बार अग्निसार प्राणायाम करने के चक्र को एक चक्र कहा जाता है. जब भी आप अग्निसार प्राणायाम करने की कोशिश करें तब आपको कम से कम पांच चक्र से इसकी शुरुआत करनी चाहिए. इसके बाद भी आप चक्रों के अंदर प्रक्रियाओं की संख्या बढ़ा सकते हैं. ध्यान रखें कि गर्मियों में इसकी संख्या कम रखें, और सर्दियों में इसकी संख्या 10 से बढ़ाकर 25 तक भी कर सकते हैं. हर चक्र के बाद में आपको 1 मिनट का ब्रेक लेना अनिवार्य है.

[/Responsivevoice]