विश्व कल्याण का यज्ञ है योग

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कुलदीप यादव

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस किसी तरह के मतभेद अथवा भेदभाव के कारण उपजी अवधारणा नहीं। यह तो मात्र सार्वभौमिक कल्याण और विश्व शांति के लिए किया जाने वाला एक शुद्ध यज्ञ (योग) है। इसमें सभी को अवश्य सम्मिलित होना चाहिए तभी कल्याण होगा।अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाना तब ही सार्थक होगा जब योग को ज्ञान-विज्ञान की साधारण समझ से अलग एक वैदिक व आध्यात्मिक सूत्र के रूप में जाना,समझा और अपनाया जाएगा। योग करने वाले यह न सोचें कि यह व्यायाम उन्हें व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा में मानवीयता के सिद्धांतों की अनदेखी करने या जलवायु के प्रतिकूल उत्पादन करने की मशीनी शक्ति देता रहेगा।योग द्वारा हम स्वयं का प्राकृतिक से साक्षात्कार करते हैं। इस आत्मिक भावमुद्रा में हमें मात्र इसलिए नहीं रमना कि यह हमें आधुनिक विकारों के मध्य शांत व संतुलित होने की शक्ति दे, अपितु योग का विचार और अभ्यास सांसारिक बातों, जिज्ञासाओं और लोभ लिप्साओं से पूरी तरह मुक्त होने की प्रेरणा पर आधारित है।

योग सही तरीके से जीवन जीने का विज्ञान है और इसलिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए यह हमारे जीवन से जुड़े मानसिक भौतिक भावनात्मक आध्यात्मिक और आत्मिक आज सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है, इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज इसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है, सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर योग शरीर मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है।

भारत की सांस्कृतिक श्रेष्ठता को स्वास्थ्य वृद्धि के एक महत्वपूर्ण आयाम अर्थात योग के रूप में पूरे विश्व में स्थापित करना अपने आप में बहुत ही श्रमसाध्य कार्य था। यह संपन्न हुआ और आज संपूर्ण विश्व योग से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में जागरूक हुआ है। निश्चित ही इससे भारत का सर्वांगीण विकास होगा। सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से तो हमारा देश विश्व स्तर पर जाना ही जाएगा। साथ ही योग की शिक्षा से भारत को व्यापारिक सेवा क्षेत्र भी प्राप्त होगा, जो आने वाले वर्षों में करोड़ों-अरबों रुपये के कारोबार और रोजगार का सृजन करेगा। अभी तक तो भारतीय यौगिक क्रियाएं किसी आधुनिक अकादमिक अनुशासन के पूर्ण नियंत्रण में कभी नहीं रहीं,लेकिन अब देश-विदेश में योग को विद्यालयी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का प्रयास चल रहा है। मूल वैदिक मान्यताओं के अनुसार योग शिक्षा का कोई औपचारिक ढांचा नहीं है। योग की शक्तियों का विकास मानव में नैसर्गिक रूप में होता है। आज संपूर्ण विश्व आधुनिकता और यंत्रजनित विकास की दो कठिन सहस्राब्दियों से जूझता हुआ प्राकृतिक रूप से अनियंत्रित हो चुका है। विश्व को प्राकृतिक नियंत्रण की अवधारणा के अनुरूप संचालित करने की आवश्यकता ने ही वैश्विक प्रतिनिधियों को भारतीय वेदों की जीवनचर्या अपनाने को विवश किया है। वर्तमान मनुष्य जीवन में बढ़ते मानवीय विकारों से मुक्त होने के लिए जितने आधुनिक उपाय अपनाए गए, सभी विफल रहे। इसीलिए आज योग जैसी वैदिक स्वास्थ्य वृद्धि रीति विश्व स्तर पर अपनाई जाने लगी है।

योग का प्रचार-प्रसार किसी व्यक्ति,राष्ट्र,संस्थान या किसी पद्वति का प्रचार-प्रसार नहीं है। योग तो जगत कल्याण के नियोजन के लिए मानव मन को सशक्त तथा प्रशस्त करने का दैवीय माध्यम है। योग एक निश्चित शारीरिक मुद्रा में बैठकर श्वासों के शांत, संतुलित और संगठित संचालन तक ही सीमित नहीं। न ही प्रतिदिन इस तरह के अभ्यास से स्वयं को व्यापारिक व पूंजीगत जगत के लिए योग्य और प्रतिस्पर्द्धी बनाने तक ही योग का महत्व है। सत्य बात तो यह है कि योग की गहराइयों में समाकर मानव को बाह्य जगत की मिथ्या गतिविधियों के प्रति अरुचि हो जाती है। योग की जड़ों से जुड़ने के बाद यही भावनात्मक अंश आज के दंभी मानव में थोड़े-थोड़े रोपित होने चाहिए। यही उपाय है जिससे विनाश के ढेर पर बैठी दुनिया को शनैः.शनैः वापस प्राकृतिक जीवन की ओर मोड़ा जा सकता है।

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