भाजपा के भविष्य होंगे योगी

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त्तर प्रदेश के इतिहास में योगी आदित्यनाथ ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जो पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा मुख्यमंत्री चुने गए हैं।योगी आदित्यनाथ ने कई धारणाओं को खंडित किया। यूपी में बीजेपी के किसी मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा न करना,तीस साल से किसी मुख्यमंत्री का दोबारा जीत कर न आना, नोएडा आने वाले का फिर मुख्यमंत्री नहीं बनना वगैरह-वगैरह। तमाम चुनौतियों के बावजूद उन्होंने एक बड़ी जीत हासिल की है। उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास को लेकर कई प्रचलित मान्यताओं को खंडित किया है। राज्य में 1985 के बाद से कोई पार्टी दोबारा सत्ता में नहीं आ पाई थी। योगी के नेतृत्व में बीजेपी ने ये इतिहास बदल दिया है। दूसरी बार सत्ता में आने वाली बीजेपी 37 साल में यूपी की पहली पार्टी है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने इतिहास रच दिया। गुरुवार 10 मार्च 2022 सियासत में उस तारीख के रूप में दर्ज हो गई है, जब भाजपा ने प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की अगुवाई में 37 साल बाद लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने का करिश्मा कर दिखाया। यह दिन (गुरुवार) मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के सियासी सफर में नई इबारत लिखने वाला दिन साबित हुआ है।पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की मतगणना के वक्त जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) खोली गईं तो यूपी की सियासत में नई इबारत लिखने और कई मिथक तोड़ने वाले दावे निकले। यह भी पता चला कि मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने 37 साल बाद भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश की सत्ता पर लगातार दूसरी बार काबिज करने का इतिहास बना दिया है। 37 साल पहले कांग्रेस ने बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी ने निर्धारित पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करते हुए फिर से भाजपा की सत्ता में वापसी कराते हुए पार्टी को ऐतिहासिक तोहफा दिया है। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ उत्तर प्रदेश में भाजपा के ऐसे पहले नेता हो गए हैं जो लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे।

प्रदेश में ऐसी उपलब्धि डॉ0 संपूर्णानंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती भी नहीं हासिल कर सकीं। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास के अनुसार प्रदेश में 1951-52 के बाद से अब तक डॉ. संपूर्णानंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती मुख्यमंत्री बने, लेकिन इन्हें यह मौका दो अलग-अलग विधानसभाओं के लिए मिला। मुलायम सिंह यादव तीन बार और मायावती चार बार यूपी की सीएम बनीं, पर इन नेताओं ने भी वह उपलब्धि हासिल नहीं की जो मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के खाते में दर्ज हो गई है।

योगी की फितरत दरअसल नम्बर एक पर रहना है। करीब ढाई दशक पहले जब वह उत्तर भारत की प्रमुख पीठों में शुमार गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बने तभी से वह देश के रसूखदार लोगों में शामिल हैं। इसके बाद से तो उनके नाम रिकार्ड जुड़ते गये। मसलन,1998 में जब वह पहली बार सांसद चुने गये, तब वह सबसे कम उम्र के सांसद थे। 42 की उम्र में एक ही क्षेत्र से लगातार 05 बार सांसद बनने का रिकॉर्ड भी उनके ही नाम है। मुख्यमंत्री बनने के पहले सिर्फ 42 वर्ष की आयु में एक ही सीट से लगातार पांच बार चुने जाने वाले वह देश के इकलौते सांसद रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में टूट गया नोएडा का मिथक मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बने इस इतिहास के साथ ही कई मिथक धाराशायी हुए हैं। प्रदेश की राजनीति में अब तक माना जाता रहा है कि नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित नहीं रहती है। सत्ता में वापसी नहीं होती। इस कारण कुछ मुख्यमंत्री तो नोएडा जाने से बचते रहे। सपा के मुखिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो नोएडा जाने से परहेज करते रहे। नोएडा में उद्घाटन या शिलान्यास के कार्यक्रम को लेकर वहां जाने की जरूरत पड़ी, तो अखिलेश यादव ने नोएडा न जाकर अगल-बगल या दिल्ली के किसी स्थान से इस काम को पूरा किया। इसके विपरीत मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ नोएडा जाने से डरने के बजाय वहां कई बार गए। उन्होंने नोएडा जाने के बाद भी लगातार पांच साल मुख्यमंत्री रह कर और भाजपा को बहुमत से साथ फिर सत्ता में वापसी करते हुए इस मिथक को तोड़ दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने अयोध्या में राममंदिर में पूजा करने जाने को लेकर भी नेताओं का मिथ तोडा है। पहले अयोध्या जाकर भी तमाम नेता राम मंदिर जाने से परहेज करते थे। अब हर नेता राम मंदिर में पूजा करने जा रहा है।

प्रदेश के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि नोएडा का यह मिथक वर्ष 1988 से शुरू हुआ था। वर्ष 1988 में राजनीति में सक्रिय नेता नोएडा जाने से बचने लगे, क्योंकि यह कहा जाने लगा था कि नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाती है। तब वीर बहादुर सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। वे नोएडा गए और संयोग से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई। नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे 1989 में नोएडा के सेक्टर-12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन करने गए। कुछ समय बाद चुनाव हुए, लेकिन वे कांग्रेस की सरकार में वापसी नहीं करा पाए। इसके बाद कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव के साथ भी ऐसा ही हुआ कि वे नोएडा गए और कुछ दिन बाद संयोग से मुख्यमंत्री पद छिन गया। राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्हें नोएडा में निर्मित एक फ्लाई ओवर का उद्घाटन करना था, पर उन्होंने नोएडा की जगह दिल्ली से उद्घाटन किया।

अखिलेश यादव ने भी पांच साल मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा जाने से परहेज किया था। जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। वह पांच वर्षों के दौरान कई बार नोएडा गए और उन्होंने नोएडा को कई सौगतें दीं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री योगी ने यह साबित किया है कि जनता के दुखदर्द का निदान करने का जो सरकार कार्य करती है, वह फिर सत्ता में आती है।

उत्तर प्रदेश में योगी भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं जो 2024 के मिशन में भी पार्टी के लिए अहम भूमिका निभाएगा।वर्ष 2014 में 73 और वर्ष 2019 में 62 लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में प्रदेश से गई। इस ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखने का दारोमदार योगी पर है। इस जीत से एक बात पक्की हो गई कि प्रदेश में योगी का विकल्प कोई नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले कुछ महीनों तक चली खींचतान को अब बहुत पुराना इतिहास ही मान कर चलना चाहिए। योगी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाकर पार्टी के सभी मुख्यमंत्रियों की कतार में अपनी लाइन सबसे आगे कर ली है। किसान आंदोलन और लखीमपुर की घटना के बाद भाजपा का कमबैक ये संदेश देता है कि पार्टी की विचारधारा से समझौता किए बगैर अगर कोई नेता सारे विपक्षी मॉड्यूल को ध्वस्त कर सकता है तो वो योगी ही हैं।मैं ये नहीं कहना चाहूंगा कि योगी की जीत से क्या पार्टी के भीतर किसी और का कद छोटा या बड़ा होगा पर योगी का कद बढ़ना तय है। योगी आदित्यनाथ चुनाव से पहले भी ट्रंप कार्ड साबित हुए हैं। भाजपा ने योगी की लोकप्रियता का इस्तेमाल हर जगह किया।

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