किसान आंदोलन के बीच जज़्बातों से बंधे परिवार

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किसान आंदोलन के बीच जज़्बातों की डोर से बंधे किसान परिवार की कहानी कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ किसानों को आंदोलन करते हुए तीन महीनों से ज़्यादा हो गए। इस बीच कई पर्व और त्योहार आए और चले गए। नया साल इन किसानों ने सिंघु बॉर्डर पर बिता दिया तो पंजाब के मुख्य त्योहार लोहड़ी पर भी कई किसान परिवारों से दूर आंदोलन ही कर रहे थे।

किसान आंदोलन, दिल्ली का सिंघु बॉर्डर। वो किसान जो प्रदर्शन कर रहे थे कृषि कानून के नाम पर, वो किसान जो प्रदर्शन कर रहे थे अपने हक की खातिर, वो किसान जो किसान आंदोलन के अलग-अलग गुटों की राजनीति नहीं जानते थे।

वो किसान जिन्हें नहीं पता था कि 26 जनवरी को दिल्ली में क्या रच दिया गया है। वो किसान जिन्हें आंदोलन के बीच हिंसा का मतलब ही नहीं पता था। वो किसान जो आंदोलन में राजनीतिक दलों की सक्रियता से बचना चाहते थे, वो किसान जो किसी राजनीतिक दल के झंडे के नीचे आकर समर्थक नहीं दिखना चाहते थे, उन्हें अब सब ढोना पड़ रहा है, सब धोना पड़ रहा है, सब ओढना पड़ रहा है।

माइक नहीं दिया, मंच नहीं दिया, लेकिन तस्वीरों ने, समर्थन ने, हंगामे ने किसान नेताओं के जेहन में ही यह ला दिया कि इसका राजनीतिकरण हो चुका है।वो किसान जो जवानों के साथ चल रहे थे, वो जवान जो किसानों के लंगर के साथ चल रहे थे, उनका भी भरोसा टूटा है, वो किसान आंदोलन जिसमें अन्नदाता का धर्म, मजहब रंग कभी देखा ही नहीं गया था, वहां ब्राह्मण-पंडित हो गया, किसान आंदोलन भी इन्हीं बयानों के साथ खंडित हो गया।

किसान संगठनों और सरकार के बीच क्या अब अघोषित बॉर्डर खिंच आया है ..? किसान प्रदर्शन के तीनों बड़े ठिकानों सिंघू बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पुलिस ने कंटीली तारों, कीलों और बड़े-बड़े पत्थरों के जरिए ऐसी पुख्ता दीवार खड़ी कर दी है कि उन्हें पार करना लगभग नामुमकिन है। दिल्ली पुलिस की ये तैयारी किसानों के शक्ति प्रदर्शन के पार्ट-2 से पहले है। 06 फरवरी को 3 घंटे तक देश भर के हाईवेज को जाम करने का फैसला किसान संगठनों ने किया है। जहां किसान संगठन दिल्ली पुलिस की बाड़ेबंदी को उत्पीड़न कह रहे हैं, तो वहीं दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने इसका ये कह कर बचाव किया है कि 26 जनवरी से सबक लेते हुए ऐसा करना जरूरी था। इस बीच इस बाड़ेबंदी और किसानों के पूरे मसले पर विपक्ष के तेवर और गर्म होते जा रहे हैं।नेता अब खुलकर सामने आ रहे हैं, कांग्रेस 26 जनवरी के बाद हुई गिरफ्तारियों पर कानूनी मदद देगी। शिवसेना के नेता गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों से मिले हैं तो उधर राज्यसभा की आज की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई। क्या अब किसान आंदोलन के मुद्दे पर सरकार घिर गई है, और क्या जो बाड़ेबंदी है, जो कीलें उससे आंदोलन पर असर पड़ेगा..? कील से होगा आंदोलन सील..?

अब देखिए नया स्वांग क्या है, वो किसान तो हर नियम के साथ चल रहे थे ना तो अब क्यों टूट गए सारे व्रत। धारा 144 लागू है लेकिन खुद को किसान बताने वाले पुराने नेता, राजनीतिक दलों के करीबी राकेश टिकैत ने मीडिया के कैमरों के सामने फिर नियम तोड़ा। बैरिकेड्स के नीचे खाना खाया, बताया कि उनकी नजरों में कानून की हैसियत क्या है।ट्रैक्टर रैली की आड़ में जो धुआं दिल्ली पर उडे़ला गया, ट्रैक्टरों से बसों को झेला गया, तकरीबन 510 पुलिसकर्मी जो घायल हुए, वो किसान और नेता के बीच का फर्क बहुत अच्छे से जानते हैं। हिंसा के बाद राकेश टिकैत ने फिर से नेता सरीखे रुआब दिखाया है। 40 लाख ट्रैक्टरों का आंकड़ा बताया है। कहा है कि सरकार ना मानी तो 40 लाख ट्रैक्टरों के साथ रैली निकालेंगे।

किसानों के आंदोलन के समर्थन में हरियाणा के जींद में महापंचायत हुई। किसान नेता राकेश टिकैत भी यहां पहुंचे। महापंचायत में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की गई, साथ ही गिरफ्तार किसानों के रिहाई के बाद वार्ता की बात कही गई है।

नए कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन को धार देने के लिए आंदोलनकारी गांव-गांव जाकर 6 फरवरी को प्रस्तावित “चक्का जाम” को सफल बनाने की रणनीति में जुट गए हैं। 06 फरवरी को दोपहर 12 से 3 बजे तक संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से देश भर में “चक्का जाम” का ऐलान किया गया है।


गृहमंत्री बोले-
प्रोपेगेंडा देश की एकता को नहीं तोड़ सकता ,किसान आंदोलन को लेकर छिड़े सियासी घमासान के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट करके है कि प्रोपेगेंडा देश की एकता को नहीं तोड़ सकता। एकजुट होकर प्रगति की ओर चलेंगे, कोई भी दुष्प्रचार भारत को ऊंचाइयों तक जाने से नहीं रोक सकता।