महात्मा गाँधी और गोरखपुर जनपद

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शिवकुमार

महात्मा गाँधी अली बधुओ के साथ खिलाफत और असहयोग आन्दोलन के सम्बन्ध में 1921 के प्रारम्भ में देश का व्यापक दौरा कर रहे थे, उसी क्रम में वें 8 फरवरी-1921 को गोरखपुर में आगमन हुआ । 29 जनवरी 1921 को महात्मा गाँधी ने कलकता से टेलीग्राम द्वारा अपने गोरखपुर के यात्रा का कार्यक्रम जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष दशरथ प्रसाद द्विवेदी के पास भेज दिया था। इससे उनके आगमन की सूचना जनपद की जनता को मिल चुकी थी। वह उत्सुकता के साथ उनके आगमन की प्रतिक्षा कर रही थी। महात्मा गाँधी जब भटनी से गोरखपुर के लिए प्रस्थान किये तों रास्ते में प्राय: प्रत्येक स्टेशनों पर जनता ने उनका हार्दिक स्वागत किया। देवरिया, गौरी बाजार, चौरी चौरा, कुसुम्ही आदि स्टेशनों पर 15-20 हजार की भीड़ ने उत्साहपूर्वक उनका स्वागत किया।

गोरखपुर स्टेशन पर पहुंचते ही उनके जयजयकार से स्टेशन गूज उठा। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ इस क्षेत्र के अनेक सम्भ्रान्त लोगों ने उनका स्वागत किया था। गाँधी जी गोरखपुर जनपद की जनता द्वारा प्रदर्शित उत्साह से अत्यधिक प्रसन्न हुए थे। गाँधी जी के साथ उनके पुत्र, पत्नी तथा मुस्लिम नेता मुहम्मद अली एवं उनके वैयक्तिक सचिव महादेव देसाई आदि थे। स्टेशन का बाहरी भाग आपार जनसमूह से भरा हुआ था उस समय राणा नान्हू सिंह वालण्टियर कोर के कप्तान थे। जो उस अवसर के निमित्त बनाया गया था। वालण्टियरो का दोहरा घेरा बनाकर महात्मा गाँधी तथा उनके साथ आये अन्य लोगों को बीच में करके उन लोगों को जनसमूह से बाहर लाने में नान्हू सिंह सफल हुए। टाउन हाल के मैदान में गाँधी जी को जनपद की जनता की ओर से मुहम्मद इस्माइल खा एम०एल० सी० ने मानपत्र भेट किया। इसके बाद मोटर पर महात्मा गाँधी जी का जुलूस निकाला गया जो टाउन हाल से लाल डिग्गी पार्क होते हुए ‘बाले’ के मैदान मे गया। मार्ग में अगणित नर-नारियों ने भारतमाता की जय-जयकार एवं महात्मा गाँधी के जय-जयकार से उनका स्वागत किया।

‘बाले’ के मैदान में जिला कांग्रसे के नेताओ द्वारा सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया था। ‘स्वदेश’ के अनुसार समा स्थल पर लगभग २ लाख की भीड़ गाँधी जी का भाषण सुनने के लिए एकत्रित थी। 4 बजे सांयकाल महात्मा गाँधी ने अपना भाषण प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा था कि हिन्दू और मुसलमान दोनो आपस में मिलकर काम करे। शैता नियत के सामने शैता नियत को रखकर हम स्वराज्य नहीं लेना चाहते है। हम स्वराज्य शन्ति एवं असहयोग से प्राप्त करना चाहते हैं।” मै यह चाहता हूँ कि वकील और मुख्तार लोग अपनी वकालत छोड देवे। मेरी इच्छा है कि गोरखपुर के लोग इतना अधिक खद्दर पैदा करे कि हमे अहमदाबाद न जाना पडे। आपके इन कार्यों से हम सरकार से पंजाब के जुल्म का प्रायश्चित करा सकेंगे ।

गांधी जी के बाद मुहम्मद अली ने अपना भाषण प्रारम्भ किया उन्होंने कहा था कि “चोर जिस रास्ते से आया है उसी राते से हम उसे निकालेगे। हमारी क्रान्ति चर्खे पर निहित होगी एक कौम दूसरी कौम को मिटाकर आजादी हासिल नहीं कर सकती है। साम्प्रदायिक सद्भाव एवं एकता से ही हम स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं।गोरखपुर जनपद पर महात्मा गाँधी एवं मुहम्मद अली के भाषणो का अधिक प्रभाव पड़ा। इससे हिन्दू मुस्लिम एकता सुदृढ हुई । महात्मा गाँधी के वकालत छोड़ने के आवाहन से प्रभावित होकर सभा स्थल पर ही विन्ध्यवासिनी प्रसाद एवं भगवतीप्रसाद द्विवेदी ने अपनी वकालत एवं मुख्तारी छोडने की घोषणा की।

महात्मा ‘गाँधी का पुनः आगमन—

महात्मा गाँधी रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से देश के विभिन्न भागो का दौरा कर रहे थे । उसी क्रम में उन्होंने 4 अक्टूबर से 7 अक्टूबर 1929 तक गोरखपुर जनपद के विभिन्न भागो का जवाहरलाल नेहरू एवं प्रान्तीय कांग्रेस के मन्त्री श्री प्रकाश के साथ यात्रा किया। प्रान्तीय कांग्रेस कार्यालय द्वारा उनके गोरखपुर का कार्यक्रम पूर्व घोषित कर दिया गया था। इसलिए गोरखपुर की जनता आतुरता से गाँधी जी के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी। 04 अक्टूबर को गोरखापुर रेलवे स्टेशन पर स्वागत समिति के अध्यक्ष विन्ध्यवासिनी प्रसाद के नेतृत्व मे आपार जनसमूह ने लोगों का स्वागत किया।

जिला कांग्रेस कमेटी के अन्तर्गत निर्मित तहसील एवं मण्डल काग्रेस कमेटिया नवयुवक संघ, नव युवक दल , नव युवक सेवा संघ, किसान सभा आदि ने गाँधी जी के कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। महात्मा गाँधी ने प्रायः गोरखपुर के सभी महत्वपूर्ण स्थानो पर भाषण दिया था। 7 अक्टूबर को गोरखपुर नगर के लाल डिग्गी पार्क में आयोजित सभा में उन्होंने कहा था कि “केवल निर्माणशील कार्यक्रमों से ही स्वराज्य प्राप्त हो सकेगा । हमे स्वदेशी को बढ़ावा देना होगा हम चाहते है कि हमारे देश के लोग इतना अधिक खद्दर पैदा करे कि हम अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने मे आत्मनिर्भर हो जाये । हमारा देश निर्माणशील कार्यक्रमों में जितना ही शीघ्र आत्मनिर्भर होगा उतना ही शीघ्र हम स्वराज्य को प्राप्त कर लेगे|

महात्मा गाँधी के आगमन से प्राय: सम्पूर्ण जनपद का जनमानस उत्साहित एवं प्रसन्न हो गया था। जिस रास्ते से वे गुजरते थे, उसमे अनेको स्थानों पर ग्रामीण जनता द्वारा उनका हार्दिक स्वागत किया गया। मार्ग मे कही कही पर जनता का विशेष आग्रह देखकर कुछ समय के लिए गाँधी जी रूक जाते थे। इससे पूर्व घोषित कार्यक्रमों में विलम्ब हो जाता था। कहीं-कही सभाओं में समयाभाव के कारण वह स्वयं न जाकर अपने स्थान पर जवाहरलाल नेहरू एवं श्री प्रकाश को भेज देते थे । यही लोग उन सभाओ मे सम्मिलित जन समूह को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस के कार्यक्रमों की व्याख्या किया तथा जनता द्वारा गाँधी जी को देने के लिए एकत्रित चन्दे की धनराशि को एकत्रित किया।

जवाहरलाल नेहरू ने गोरखपुर की जनता के उत्साह का वर्णन अपनी आत्मकथा में इस प्रकार किया है- ” जनपद की – प्राय: प्रत्येक सभाओं में अगणित जनसमूह ने हम लोगों का स्वागत किया , जनता मे अत्यधिक उत्साह था। ग्रामीण क्षेत्रो मे आयोजित सभाओं में भी अधिक संख्या में जनता ने भाग लिया था। आकस्मिक रूप से आयोजित सभाओं में भी प्राय: 10 हजार से 25 हजार की भीड ने हम लोगों का स्वागत किया तथा कांग्रेस के संदेशों से परिचित हुई । प्रायः दोपहर तथा रात्रि में आयोजित सभाओ में एक लाख से भी अधिक जनता ने भाग लिया था

प्रमुख प्रमुख स्थानों पर भाषण देने की आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध थी। प्रायः सर्वत्र जनता ने उत्साह के साथ सभाओं के आयोजन में भाग लिया था।गाँधी जी के आगमन तथा विभिन्न स्थानो पर उनके द्वारा दिये गये भाषणो का जनता पर अत्यधिक प्रभाव पडा । ग्रामीण क्षेत्रो मे भी. चरखा का प्रसार तेजी के साथ हुआ तथा विदेशी वस्त्रो के प्रति लोगो मे अत्यधिक घृणा पैदा हो गयी, जिससे लघु हस्त करघा उद्योग में वृद्धि होने लगी। ग्राम पंचायतो की स्थापना की गई तथा कांग्रेस के कार्यकर्ता जनता के सहयोग से रचनात्मक कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील हो गये। जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विन्ध्यवासिनी प्रसाद ने मद्य निषेध का कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इस प्रकार महात्मा गाँधी के आगमन से गोरखपुर जनपद मे एक नवीन राजनैतिक चेतना जागृत हुई जो 1930 में प्रारम्भ होने वाले नमक सत्याग्रह आन्दोलन के समय स्पष्ट रूप से प्रस्फुटित हुई।