सत्ता में पूर्वांचल की भूमिका

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उत्तर प्रदेश की सत्ता में पूर्वांचल की रहती है अहम भूमिका-

उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग जिसे पूर्वांचल के नाम से जाना जाता है।इस क्षेत्र का सरकार बनाने में खासी भूमिका रहती है।पूर्वांचल के अंतर्गत 29 जिले आते हैं,जिसके अंतर्गत 167 विधानसभा क्षेत्र आते हैं।पूर्वांचल के अंतर्गत गोरखपुर, बस्ती,आज़मगढ़, वाराणसी, अयोध्या,प्रयागराज(फ़तेहपुर को छोड़कर), विंध्याचल(मिर्जापुर),देवीपाटन(गोण्डा) मण्डल के 29 जिले आते हैं।इस क्षेत्र में गंगा,घाघरा,राप्ती, गोमती,सरयू,करमनासा,यमुना,गण्डक,टोंस,तमसा, रोहिन जैसी नदियों के साथ बेसो,मगई, उदंती,गांगी, कुआनो,आमी,छोटी सरयू,सोन,सई, सकरनी,चमरौधा,पीली,लोनी,भैंसही, गोर्रा,बांसी,हिरण्यवती,प्यास, चंदन,चन्द्रप्रभा, बकुलही,मंजूषा, कुंअर, सिलनी,उदंती,गड़ई,वरुणा आदि दर्जनों छोटी नदियां बहती हैं।वर्तमान में अधिकांश नदियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है, जो सिर्फ बरसाती नदियां बनकर रह गईं हैं।

पूर्वांचल में जातियों का जाल पूर्वांचल में सवर्ण जातियों में राजपूत,भूमिहार ब्राह्मण,ब्राह्मण,कायस्थ जैसी जातियाँ पाई जाती हैं।सवर्ण जातियाँ गोरखपुर,प्रतापगढ़, अमेठी,सुल्तानपुर, गोण्डा,बलरामपुर,कुशीनगर,अयोध्या,प्रयागराज, वाराणसी,बलिया की लगभग ढाई दर्जन विधानसभा क्षेत्रों पर प्रभाव रखती हैं।आज़मगढ़, ग़ाज़ीपुर, बलिया, सन्तकबीरनगर, सिद्धार्थनगर,वाराणसी,भदोही,प्रयागराज,प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, गोण्डा,अम्बेडकरनगर, मऊ,बाराबंकी,बहराइच,बलरामपुर, श्रावस्ती की 25 विधानसभा क्षेत्रों पर मुसलमानों का विशेष प्रभाव है।पूर्वांचल में यादव,कुर्मी,निषाद/बिन्द, राजभर,चौहान,मौर्य/कुशवाहा मजबूत आधार वाली जातियाँ हैं।अनुसूचित जातियों में सबसे बड़ी संख्या चमार की है।इसके अतिरिक्त दूसरे नम्बर की प्रभावशाली जाति पासी है,जिनकी प्रयागराज,कौशाम्बी,अमेठी,बाराबंकी,प्रतापगढ़, आज़मगढ़ में अच्छी व निर्णायक संख्या है।अनुसूचित जनजातियों में गोंड़ व खरवार का असर सोनभद्र में ही असरकारी है।इनके अतिरिक्त कोल,मुसहर,कोरी,धानुक,धरकार,दुसाध आदि जातियाँ पाई जाती हैं।कोल जाति मिर्ज़ापुर, सोनभद्र,चन्दौली की आधा दर्जन विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करती है।पंचफोरन के रूप में पाल,प्रजापति,गिरी/गोसाई,माली,चौरसिया,बढ़ई,लोहार,नाई,बारी आदि भी कमोवेश अधिकांश क्षेत्रों में 2,4,5 हजार की संख्या में हैं,जो फ्लोटिंग वोट के रूप में कभी-2 महत्वपूर्ण भूमिका में हो जाती हैं।


पूर्वांचल के किस-2 जिले में प्रभावशाली हैं पिछड़े वर्ग की जातियाँ निषाद/मछुआ वर्ग की मल्लाह,केवट,बिन्द,गोड़िया जातियाँ गोरखपुर,ग़ाज़ीपुर, मिर्ज़ापुर,अंबेडकरनगर,सुल्तानपुर, जौनपुर, सन्तकबीरनगर, कुशीनगर, सन्त रविदासनगर, सिद्धार्थनगर,बस्ती,प्रयागराज, महराजगंज,देवरिया,बलिया,चंदौली,अयोध्या,आज़मगढ़,बहराइच,श्रावस्ती,बाराबंकी में काफी प्रभावशाली व निर्णायक संख्या में हैं।विधानसभा के 91क्षेत्रों में इनकी काफी अच्छी संख्या है।कुर्मी जाति वाराणसी,मिर्जापुर, प्रयागराज, प्रतापगढ़,सुल्तानपुर, अम्बेडकरनगर,अयोध्या,बस्ती,महराजगंज, कुशीनगर,सिद्धार्थनगर,गोण्डा,बलरामपुर, बहराइच,बाराबंकी की लगभग ढाई दर्जन सीटों पर प्रभाव रखती है।यादव जाति बलिया, ग़ाज़ीपुर,आज़मगढ़, चन्दौली,देवरिया,कुशीनगर,सन्तकबीरनगर, बस्ती,बलरामपुर,बाराबंकी,वाराणसी,जौनपुर,अयोध्या में बजबूत दखल रखती है।विधानसभा की 43-44 क्षेत्रों में काफी प्रभाव है।कुशवाहा/मौर्य जाति कुशीनगर,देवरिया,बलिया, चन्दौली,जौनपुर,मिर्ज़ापुर, सोनभद्र,इलाहाबाद,कौशाम्बी, प्रतापगढ़, मऊ,सुल्तानपुर,अम्बेडकरनगर,महराजगंज, सिद्धार्थनगर,बहराइच,बाराबंकी की डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक है।राजभर जाति मुख्यरूप से बलिया,देवरिया,कुशीनगर,मऊ, आज़मगढ़,ग़ाज़ीपुर,वाराणसी,अम्बेडकरनगर,चन्दौली,बस्ती,सन्तकबीरनगर जिले में ही पाई जाती है।पूर्वांचल की 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनका प्रभाव है।चौहान जाति ग़ाज़ीपुर,बलिया, मऊ,आज़मगढ़, चन्दौली,देवरिया,कुशीनगर, सन्तकबीरनगर, बस्ती,बहराइच की 14 विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक संख्याबल में है।लोध/लोधी जाति बाराबंकी,अमेठी,अयोध्या, सिद्धार्थनगर, बहराइच की 8 विधानसभा क्षेत्रों में विशेष प्रभावशाली संख्या में है।
पूर्वांचल के ज़िलों में पिछड़ी जातियों का प्रभाव

क.जिलों की संख्या-29
ख.विधानसभा क्षेत्र की संख्या-167

1.यादव प्रभावित क्षेत्र-43-44
2.कुर्मी प्रभावित क्षेत्र-29
3.निषाद प्रभावित क्षेत्र-91
4.कुशवाहा प्रभावित क्षेत्र-17
5.चौहान प्रभावित क्षेत्र-14
6.राजभर प्रभावित क्षेत्र-22
7.मुस्लिम प्रभावित क्षेत्र-25
8.बियार प्रभावित क्षेत्र-3

नाई,बढ़ई,लोहार,कुम्हार,बरई,तएली,कलवार,बारी,माली/सैनी,गिरी/गोसाईं,धोबी अधिकांश क्षेत्रों में 2 हजार से 5 हजार की संख्या में हैं।इन पंचफोरन जातियों की संयुक्त संख्या हर विधानसभा 30-40 हजार तक पाई जाती है।फ्लोटिंग वोटर के रूप में ये काफी महत्वपूर्ण भूमिका में रहती हैं।माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग के तहत जिस दल ने इन्हें अपने पाले में कर लिए तो ये हार को जीत में बदल देती हैं।


मण्डल विरोधी भाजपा नहीं हो सकती पिछडों,दलितों की हितैषी-लौटनराम निषाद

भाजपा सिर्फ वोटबैंक के लिए पिछडों,दलितों को हिन्दू कहती है।लेकिन जब सत्ता में आ जाती है तो इनके साथ दोयमदर्जे का बर्ताव करती है।पिछड़े वर्ग के27 प्रतिशत आरक्षण सम्बन्धी मण्डल कमीशन का विरोध करने वाली भाजपा किसी भी सूरतेहाल में पिछडों,दलितों की हितैषी नहीं हो सकती।वर्तमान में भाजपा पिछडों,दलितों को संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने के लिए बंच ऑफ थॉट्स एवं वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड के गुप्त एजेंडे को आगे बढ़ा रही है।सरकारी संस्थाओं, उपक्रमों, संस्थानों का निजीकरण पिछडों,दलितों को संविधान प्रदत्त प्रतिनिधित्व के अधिकार से वंचित करने की साज़िश है।लेटरल इंट्री का गलत प्रयोग कर संघ लोक सेवा आयोग के महत्व व प्रतिष्ठा को हटाया जा रहा है।जिन्होंने एकलव्य का अँगूठा व शम्बूक ऋषि की गर्दन काटा व कटवाया,संघ नियंत्रित भाजपा उन्हीं को आदर्श मानती है।भाजपा हिन्दू-मुस्लिम,यादव-गैर यादव,दलित-अतिदलित के बीच नफरत की भावना पैदा कर वोटबैंक की गंदी राजनीति करती है।इनका भारतीय संविधान में नहीं मनुस्मृति में आस्था व विश्वास है।


विधानसभा चुनाव-2007 में बसपा सुप्रीमो मायावती को पूर्वांचल ने ही राजसिंहासन पर बैठाया था।पूर्वांचल की 167 में बसपा को 106 सीटों पर विजय मिली थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 112 सीटों के साथ 224 सीटों के बहुमत से सरकार बनाने का अवसर मिला।सत्ता संग्राम में पूर्वांचल की अहम भूमिका रहती है।विधानसभा चुनाव -2017 में जाति का समीकरण गड़बड़ा गया।गैर यादव पिछड़ी,अतिपिछड़ी व गैर जाटव दलित जातियाँ सपा,बसपा से छिटककर भाजपा के पाले में चली गईं।पूर्वांचल की 167 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने अपने सहयोगी सुभासपा की 4 व अपना दल(एस) की 6 सीटों के साथ 137 यानी अकेले 127 सीटों पर जीत हासिल के प्रदेश की 403 में 325 का प्रचंड बहुमत हासिल कर सरकार बनाने में सफल हुई।पूर्वांचल की 167 में सपा को 18,बसपा को 8,कांग्रेस व निषाद पार्टी को 1-1 सीट मिली और दो सीटों पर निर्दलीयों को जीत मिली।इस जातियों का गणित बदला है और जातियों के रुख में भी बदलाव आया है।अभी सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों में कुछ और बदलाव देखने को मिलेगा।सुषुप्तावस्था में पड़ी कांग्रेस भी इस समय काफी उत्साहित है।प्रियंका गांधी की वाराणसी व गोरखपुर की सफल रैलियों से कांग्रेसियों की बाँछे खिली हुई हैं और कांग्रेस को अच्छे परिणाम की आशा को बल मिला है।कई अवसरों पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से आगे निकल गईं।जब इलाहाबाद में निषादों की नौकाओं को भाजपा के स्थानीय नेताओं के इशारे पर पुलिस से तोड़ डाला और घरों में घुसकर निषाद नाविकों की बेरहमी से पिटाई किया तो प्रियंका आननफानन में प्रयागराज के बसवार गांव के निषादों के बीच धक्कामुक्की कर पहुँच गयी।उन्हें सहलाया,दुःखों के आँसू पोछी और उनकी नावों की मरम्मत में आर्थिक मदद भी दिया।लखीमपुर के तिकोनिया के किसान आंदोलन में किसानों की मौत से आक्रोशित प्रियंका पुलिस के तगड़े पहरे को नाकाम करते हुए किसानों के बीच पहुँच गईं और मृतक किसानों के आश्रितों को 50-50 की आर्थिक मदद भी दिया।अखिलेश यादव दोनों अवसरों पर प्रियंका गांधी से पिछड़ गए।सत्ता के शिखर पर कौन पहुँचेगा, भविष्य के गर्भ में हैं।