कौन सी चक्की का आटा खाते हैं, आप…?

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ये तो सुना होगा, परंतु क्या कभी ऐसा सुना है, कि कौन सी कंपनी का आटा खाते हैं, आप..? इसका कारण सभी जानते हैं, कि पैकेट वाले आटे को संरक्षित करने में इस्तेमाल हुआ रासायनिक संरक्षक इस आटे को जीवन दायक नही बल्कि कैंसर कारक बना रहा है। इससे किड़नी और लिवर संबंधी कई रोग हो रहे हैं।
आपने देखा होगा, गेहूं का आटा पिसवा कर उसे दो तीन महीने तक रख दिया जाये तो, आटे में कीड़े पड़ जाते हैं। फिर ये बड़ी बड़ी कंपनियां कैसे इस आटा को स्टोर करके साल साल भर की पैकिंग बना कर बेचते रहते हैं, और तो और इनका खुला आटा भी खराब नही होता, यह सोचने वाली बात है।

कई तरह के केमिकल हैं, जो इस काम को आशान बनाते हैं, जिनमे से एक केमिकल है बेंजोयलपर ऑक्साइड, जिसे फ्लौर इम्प्रूवर भी कहा जाता है। इसकी पेरमिसीबल लिमिट 4 मिलीग्राम है लेकिन आटा बनाने वाली फर्में 400 मिलीग्राम तक मिला देती हैं। क्योंकि आटा खराब नही होना चाहिये। अरे गेंहु में भी अगर नीम के पत्ते मिलाकर न रखा जाए तो उसमें भी घुन लग जाते हैं। तो फिर ये तो आटा है।
हमारे यहाँ सेहद से खिलवाड़ इतना आसान है कि, आटा दूध चेक करवाने के लिए कहीं कोई लेब ही नही है। और चेक करवा भी लें तो दुकानदार इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नही होगा, और बड़ी बड़ी कंपनियों का रसूख इतना है, कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नही सकता।
इसीलिये कोशिश कीजिये, सीधे किसान से गेहूं खरीदकर, दाल, सब्जियाँ, अन्य सामग्री खरीदें, ताकि किसान मजबूत हो, उसे अपनी फसल का सही दाम मिल सके। और आटा स्वयं पिसवाकर खायें।
किसान की फसल से आपके पास आते आते उसका रेट दो या तीन गुना नही बल्कि 100 गुना तक बढ़ जाता है। जरा गौर कीजिए, ऐसे में किसान कैसे जिंदा रहेंगे। और आप जहर मिला अनाज व्यापारियों या कंपनियों से बहुत ऊंचे दामों में खरीद रहे हैं, यानि आप भी किसानों को सताने वाली व्यवस्था में उनके शोषण में भागीदार बन रहे हैं, अनजाने में ही सही।।।
आपकी एक सही आदत किसानों को उनका सही सम्मान और उनके उत्पादों की सही कीमत दिला सकती है।फालतू के फास्ट फूड खाने के बजाये, भारतीय व्यंजनों को प्राथमिकता दें, देश की परंपराओं को जीवित रखें और अपने देश की प्रगति में सहायक बने।