राजादादा ने बहुत बदनाम किया- श्याम कुमार

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   राजा दादा से उनके लड़के रायसाहब की चोरी की षिकायत करते ही मौत-जैसा विकट संकट मेरे सामने खड़ा हो गया। वह मानने को तैयार ही नहीं हुए कि उनका पुत्र रायसाहब रुपये चुरा रहा था। चूंकि मैंने राजा दादा के कब्जे से अपना काफी सामान वापस ले लिया था, इसलिए उनके मन में मेरे विरुद्ध घोर जहर भरा हुआ था। लेकिन मैं चूंकि इलाहाबाद का बहुत प्रतिश्ठित पत्रकार हो गया था, इसलिए राजा दादा हमेषा ऊपरी मन से मेरे प्रति अपनापन का भाव प्रदर्षित किया करते थे। पर अब वह अपने ऊपर काबू नहीं रख पाए तथा मेरे विरुद्ध उन्होंने भीशण अभियान षुरू कर दिया। उन पर मेरे माता-पिता के जो एहसान थे, वह सब भूलकर वह मुझे हर तरह से बदनाम करने और मेरी छवि खराब करने में जीजान से लग गए। वह मेरे विरुद्ध यह दुश्प्रचार करने लगे कि मैं बहुत षराब पीता हूं तथा घर में लड़कियां लाकर अय्याषी किया करता हूं।    
  राजा दादा ने विभिन्न षहरों में मेरे जितने रिष्तेदार व परिचित थे, पता नहीं कैसे, सबके यहां मेरे षराबखोर होने व अय्याषी की अफवाह फैला दी। नतीजा यह हुआ कि मैं उन जगहों पर जब भी जाता था, सब आष्चर्य जताते थे कि मैं ऐसी बुरी लतों में कैसे पड़ गया? सब जगह सफाई देते-देते मेरी मुसीबत हो गई। इतना ही नहीं, चूंकि वह हमेषा अपने बाहर वाले कमरे में दरवाजे पर खाट बिछाकर अड्डा जमाए रखते थे, मेरे यहां आने के लिए जैसे ही कोई सज्जन मेरे घर के दरवाजे पर पहुंचते थे, मेरे घर की ओर आंख गड़ाए राजा दादा तुरंत अपने किसी बच्चे को बाज की तरह दौड़ाकर उन सज्जन को अपने पास बुलवा लेते थे और मेरे विरुद्ध सारी झूठी बातों का जहर खूब उगलते थे। कितने अनजान लोग तो राजा दादा की बातों को सच मानकर भड़ककर मुझसे मिले बिना वापस चले जाते थे।    
   मजे की बात, राजा दादा खुद बड़े दारूबाज थे तथा नियमित रूप से देषी ठर्रे का सेवन करते थे। उनके एक रिष्तेदार भाई जब इलाहाबाद आते थे तो दोनों का अड्डा कष्मीरी होटल एवं षेरेपंजाब होटल हुआ करता था तथा दोनों खूब अय्याषी करते थे। राजा दादा लोगों से यह भी कहने लगे कि उन्होंने परीभवन बनवाकर मेरे पिताजी को दान में दे दिया था। कई अनजान लोग राजा दादा की बात को सच मान लेते थे। वे इतनी बुद्धि भी नहीं लगाते थे कि राजा दादा ने इतनी बड़ी हवेली बनवाकर मेरे पिताजी को दान में दे दी और खुद दो कमरे के किराए के छोटे-से घर में रह रहे हैं। बाहरी लोगों को तो राजा दादा मेरे विरुद्ध भड़का ही रहे थे। उन्होंने मेरे बड़े भाईसाहब को भी मेरे विरुद्ध करने की सोच ली।  
  एक बार मेरे बड़े भाईसाहब अचानक सवेरे दिल्ली से आ गए। स्नान-नाष्ते के उपरांत भाईसाहब ने रिक्षे से सिविललाइन में उच्चन्यायालय के सामने स्थित अपनी ससुराल के लिए प्रस्थान किया। राजा दादा ने उन्हें रिक्षे पर जाते देख लिया था, इसलिए उनसे मिलने के लिए तुरंत साइकिल से रवाना हो गए। भाईसाहब का रिक्षा सिविललाइन में पत्थर गिरजाघर के पास पहुंच गया था, जहां राजा दादा ने भाईसाहब को रोका और मेरे विरुद्ध गाथा षुरू कर दी कि मैं षराब के नषे में धुत रहता हूं तथा घर में लड़कियों को लाकर अय्याषी करता हूं और परिवार को बदनाम कर रहा हूं। राजा दादा ने मेरे लिए यह भी कहा कि मैंने बहुत लोगों से कर्ज ले रखा है, जो उन्हें पैसे की वापसी के लिए परेषान करते हैं। भाईसाहब ने राजा दादा को उत्तर दिया-‘‘मैं तो आज बिना किसी पूर्व-सूचना के अचानक घर पहुंचा और मुझे तो वहां षराब की कोई भी बोतल नहीं दिखाई दी। ष्यामजी ने अगर लोगों से कर्ज लिया है तो कर्ज देने वाले आपको क्यों परेषान करते हैं? आप उन्हें मेरा फोन नंबर व पता दे दीजिए। इसके अलावा ष्यामजी कितने दृढ़ चरित्र के हैं, घर में सबको पता है। हां, आपको रोज ठर्रा पीने और सबसे झगड़ा करने की जो आदत है, वह सब जगह सबको पता है।’’ राजा दादा अपना-सा मुंह लेकर लौट आए। 
    राजा दादा जहां भी रहने जाते थे, वहां झगड़ा कर लेते थे और फिर उन्हें घर बदलना पड़ता था। उनका जिससे झगड़ा होता था, उस पर अपने बच्चों से पथराव कराया करते थे। परीभवन के सामने वाले मकान में वह काफी टिके और जब मकानमालिक ने मकान बेच दिया, तब बैरहना मुहल्ले में रहने चले गए। लेकिन कई वर्श जब तक राजा दादा परीभवन के सामने रहे, रायसाहब की चोरी वाली षिकायत के बाद उन्होंने मेरा जीवन नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनके झूठ-अभियान के परिणामस्वरूप मैंने बहुत कड़ी मानसिक यातना झेली। वैसे, राजा दादा ने अपने घर को भी नरक बना रखा था। वह अपनी पत्नी की नित्य पिटाई करते थे तथा पिटाई के जितने भी तरीके हो सकते हैं, हर तरह से उनकी पिटाई किया करते थे। लेकिन धन्य है भारतीय नारी! उनकी पत्नी एक ऐसा व्रत रखती थीं, जिसमें आटे का छोटा-सा दीपक बनाकर उसमें लौ जलाकर वह जलता हुआ दीपक निगल लेती थीं। उस व्रत का उद्देष्य यह होता था कि यही पति अगले जन्म में भी उन्हें मिले। 
    राजा दादा को भगवान ने सचमुच ‘वनपीस’ बनाया था। उनकी बहन का नाम बिट्टी था, जिन्हें हम बिट्टी जिज्जी कहते थे। उनके पति चंद्रप्रकाष थे, जिनकी नौकरी पिताजी ने इलाहाबाद विष्वविद्यालय में लगवाई थी और वह वहां पुस्तकालयाध्यक्ष हो गए थे। राजा दादा के पिताजी का कानपुर में देहांत होने का समाचार बिट्टी जिज्जी के पास आया तो वह पति चंद्रप्रकाष के साथ तुरंत कानपुर जाने के लिए निकलीं। रास्ते में उन्होंने सोचा कि राजा दादा को भी पिता के देहांत की सूचना मिली होगी और वह भी कानपुर जा रहे होंगे, इसलिए उन्हें भी साथ ले लें। 
उसके बाद का जो वृत्तांत बिट्टी जिज्जी व चंद्रप्रकाष जीजा ने मुझे सुनाया, वह वर्णन अन्य किसी के लिए भी कर सकना संभव नहीं है। जब बिट्टी जिज्जी व जीजा राजा दादा के यहां पहुंचे तो उन्हें पिता के देहांत का समाचार मिल चुका था, किन्तु वह आराम से लेटे हुए थे। इन दोनों के पहुंचने पर वह उठे और स्नान-भोजन किया। फिर कपड़े में प्रेस किया। इन सब टिटिम्मों में समय गंवाने के बाद जब वे लोग स्टेषन पहुंचे तो ट्रेन छूट गई थी। वे घर लौट आए तथा दूसरी ट्रेन से कानपुर गए। कानपुर में राजा दादा के भाई आदि उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। किन्तु जब काफी इंतजार के बाद राजा दादा नहीं पहुंचे तो मजबूरन उन्होंने पिता की अंत्येश्टि कर दी। काफी देर बाद राजा दादा वहां पहुंचे और उन्हें अंत्येश्टि हो जाने की जानकारी मिली तो उन्होंने बड़ा हंगामा मचाया तथा भाइयों से मारपीट की।  

    ईष्वर की मुझ पर यह कृपा है कि जो मुझे बहुत सताता है, उसे वह कभी न कभी दंड अवष्य देता है। ऐसे बहुत उदाहरण हैं। राजा दादा ने मेरे साथ जो अन्याय किया और मुझे घोर मानसिक वेदना पहुंचाई, बाद में ईष्वर ने उन्हें उसका दंड दिया। उनके लड़के तो आवारा हो ही गए थे, वह जहां नई जगह रहने गए, लोगों ने बताया कि राजा दादा की पत्नी वहां पागल हो गईं। लोगों से यह भी पता लगा कि राजा दादा ने अपनी पुत्री को मेंड्रेक्स खिलाकर नषे में उससे बलात्कार किया। राजा दादा ने मेरे माता-पिता के एहसानों को भूलकर जो नमकहरामी की और कई साल तक मेरे जीवन को नरक बनाए रखा, उसका ईष्वर ने उन्हें भरपूर दंड दिया।