लोकतन्त्र ने ये गुल खिलाया है

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    श्याम कुमार
हमारे लोकतन्त्र ने ये गुल खिलाया है, एक पागल को भी नेता यहां बनाया है।
वे सभी .एक ही थैली के .चट्टे-बट्टे हैं, एक दुश्मन ने दूसरे को घर बुलाया है।
जो लूटता रहा इस देश को सत्तर वर्षों, उसी ने लूटने का जाल फिर बिछाया है।
ठगों की राजनीति उसके घर में होती थी, वो आंख मारने की राजनीति लाया है।
उसको नफरत है देशभक्त से इतनी ज्यादा, उसके मुंह में ही बवासीर निकल आया है।
जिसका नाता हमेशा देशद्रोह से ही रहा, उसने भारत का रत्न खुद को कहलवाया है।
वो घूमने लगा है ‘श्याम’ अब हिन्दू बनकर, तिलक माथे पे भेड़िए ने भी लगाया है।