विचार ही वो बीज हैं, जिनसे अंकुरित होती है कविता

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उस बीज का नाम है- विचार अर्थात सोच।हमारा विचार ही वो बीज हैं जो हमें सफलता नाम का मीठा फल देता है। यहाँ एक बहुत जरुरी बात मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि जिस तरह दुनिया का प्रत्येक बीज हमें मीठा फल नहीं दे सकता, उसी तरह हमारा प्रत्येक विचार  हमें सफलता नहीं दे सकता।

कविता पेड़ ही तो है,
एक संपूर्ण पेड़,
जैसे पेड़ उगता है धरती का सीना चीरकर,
ठीक उसी तरह कविताएं एक कवि का सीना चीरकर निकलती हैं,
कविताओं के अंकुरित होने से उग आने की प्रक्रिया में,
 लहूलुहान हो जाता है कवि,
और वो जितना लहूलुहान होता है,
कविता बनती है उतनी ही सुदृढ़ उतनी ही सशक्त,

वो कवि के अंतर से जितनी गहराई से फूटती है उतनी ऊंची उठ जाती है,
जैसे कोई गहरी जड़ों वाला पेड़,
कविता गिर रहे मनुष्यों को सहारा देती है,
जिंदगी की धूप से परेशान पथिकों को देती है छांव,
थके हुए नाविकों की पतवार बनकर पार लगा देती है उनकी नाव,
कविता एक पेड़ की तरह बस देती ही तो है मांगती कुछ नहीं,

कविता पेड़ है और कवि ब्रह्मांड,
कवि सबका और सब उसके,
कवि का हृदय वह धरती है जहां से उगती है कविता,
कवि की सारी उलझने,
सारे प्रश्न,
सारी चिंताएं,
सारे भाव,
और विचार ही वो बीज हैं,
जिनसे अंकुरित होती है कविता,
एक पेड़ की तरह अपने बीज की अमिट पहचान खुद में संजोये ।

– अनुपम पाठक “अनुपम”