अपनों की हितसाधक है भाजपा

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नगर निकाय-भाजपा का प्रवास कार्यक्रम
नगर निकाय-भाजपा का प्रवास कार्यक्रम

“सामाजिक अन्याय व वर्णव्यवस्था की कोख से पैदा हुई है भाजपा। जाति व मजहब की राजनीति कर अपनों की हितसाधक है भाजपा।”

लौटनराम निषाद
लौटनराम निषाद

भाजपा के 43 वें स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भाजपा का जन्म सामाजिक न्याय की कोख से हुआ है,उसे झूठ का पुलिंदा बताते हुए भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि भाजपा चारित्रिक रूप से ओबीसी,एससी, एसटी की कट्टर विरोधी है।उन्होंने कहा कि भाजपा व उसकी पूर्ववर्ती जनसंघ व मातृ संगठन आरएसएस का उदय सामाजिक न्याय के विरोध में हुआ है।उन्होंने कहा कि भाजपा का जन्म सामाजिक अन्याय व मनुवादी वर्णव्यवस्था की कोख से हुआ है।भाजपा का सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास सबका प्रयास का नारा सच्चाइयों से परे है।इस नारे की आड़ में भाजपा अपनों का हित साधती है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह आरोप निराधार है कि दूसरे दलों ने समाज को जाति मजहब को बाँटकर राजनीति करती है।उन्होंने कहा कि भाजपा अपना दोष दूसरों पर मढ़ने व झूठ-फरेब करने में माहिर है।भाजपा के ओबीसी,एससी नेता पिछड़ो, दलितों को शिकार बनाने के चारा व मोहरे हैं,जो भाजपा की सेना के शिखण्डी सरीखे हैं। अपनों की हितसाधक है भाजपा


निषाद ने कहा कि वयस्क मताधिकार,डिप्रेस्ड क्लास के प्रतिनिधित्व के विरोध में ब्राह्मण महासभा ही 1920 में हिन्दू महासभा व 1925 में आरएसएस के रूप में नामान्तरित हुई।उन्होंने कहा कि भाजपा व उसके पूर्ववर्ती संगठन व दल ओबीसी अधिकार के विरोधी रहे हैं। मोरार जी देसाई सरकार ने जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के सांसदों ने काका कालेलकर आयोग की सिफारिश लागू न हो,इसलिए अटलबिहारी बाजपेई के नेतृत्व में अलग होकर जनता पार्टी की सरकार को गिरा दिए। 1989 में भाजपा राष्ट्रीय मोर्चा व वाममोर्चा से गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी।जब वीपी सिंह की सरकार ने चुनाव घोषणा पत्र के वादे के अनुसार मण्डल कमीशन की सिफारिश लागू कर ओबीसी की जातियों को 27 प्रतिशत कोटा देने का निर्णय लिया तो भाजपा विरोध में उतर गई और मण्डल के विरोध में आडवाणी को रामरथ पर कमंडल थमाकर रवाना कर दिया और 86 सांसदों का समर्थन वापस लेकर जनता दल सरकार को अल्पमत में ला दिया ।

उन्होंने कहा कि मण्डल विरोधी भाजपा कभी पिछडों की हितैषी नहीं हो सकती।उन्होंने प्रधानमंत्री को स्वघोषित ओबीसी व नीलवर्ण श्रृंगाल सरीखा बताते हुए कहा कि मोदी जी ऐसे नेता हैं जो मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी मोढ़ (सवर्ण बनिया) जाति को घाँची के उपसर्ग के रूप में जोड़कर ओबीसी की सूची में शामिल कर दिए। उन्होंने कहा कि मोदी जी मे रंचमात्र भी ओबीसी के प्रति संवेदना नहीं है।अगर इनमें ओबीसी की तनिक भी भावना रही होती तो सेन्सस-2011 की सामाजिक आर्थिक जातिगत आँकड़ों को घोषित कर दिए होते।2018 में ओबीसी का 2021 में कास्ट सेन्सस कराने का वादा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कराकर ओबीसी की जनगणना कराने में असमर्थता जता दिया।कहा कि ओबीसी के प्रति मोदी में संवेदना होती तो मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का काम किये होते,अनुच्छेद-15(4),16(4),16(4-1) के अनुसार ओबीसी को भी एससी, एसटी की भाँति समुचित प्रतिनिधित्व के लिए समानुपातिक कोटा देते व मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान,महाराष्ट्र में 27 प्रतिशत कोटा देने का निर्णय लेते,ओबीसी का बैकलॉग पूरा करते।

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निषाद ने कहा कि ब्राह्मण महासभा, हिन्दू महासभा,आरएसएस भाजपा का मूल चरित्र ही पिछड़ी जातियों के आरक्षण व प्रतिनिधित्व का विरोधी रहा है।भाजपा ने 1991 में जातिगत जनगणना रोकने के लिए राममंदिर आंदोलन,2001 में कारगिल युद्ध व 2011 में अन्ना हजारे को आगे कर आंदोलन शुरू कराया और 2021 में कोरोना का बहाना ढूढ़ लिया। उन्होंने कहा कि दिखावा के लिए प्रधानमंत्री ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का प्रचार किया,लेकिन यह सफेद हाथी ही साबित हुआ है।उन्होंने कहा कि मण्डल कमीशन के अनुसार ओबीसी की जनसंख्या 52 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर 57-58 प्रतिशत हो गयी होगी,लेकिन इन्हें मात्र 27 प्रतिशत कोटा न्यायोचित नहीं है।सवर्ण जातियों को संविधान व उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध कदम उठाते हुए मोदी सरकार ने 2 दिन के ईडब्ल्यूएस के नाम पर 10 प्रतिशत कोटा दे दिया।कहा कि मोदी सरकार पूरी तरह सामाजिक न्याय के विरोध में काम करते हुए बन्च ऑफ थॉट्स की नीतियों को लागू कर रही है।आरक्षण को निष्प्रभावी करने के लिए सरकारी संस्थानों,उपक्रमों का निजीकरण कर रही है।उन्होंने कहा कि जिस तरह बिल्ली से दूध व जंगली कुत्ते से मेमना की रखवाली असम्भव है,वैसे ही मण्डल विरोधी भाजपा से सामाजिक न्याय का संरक्षण असम्भव है। अपनों की हितसाधक है भाजपा

{यह लेखक के अपने विचार हैं संपादक मंडल का सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है।}