सामुदायिक भागीदारी सबकी जिम्मेदारी-डॉ. सिंघल

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सामुदायिक भागीदारी सबकी जिम्मेदारी-डॉ. सिंघल
सामुदायिक भागीदारी सबकी जिम्मेदारी-डॉ. सिंघल

• संयुक्त निदेशक डेंगू ने कहा कि इस बीमारी से सभी को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत।
• केजीएमयू और डीएनडीआई द्वारा डेंगू जागरूकता बढ़ाने के लिए की गयी पहल।

लखनऊ। डेंगू का मौसम नजदीक है इस बात की गंभीरता को देखते हुए केजीएमयू और स्वयंसेवी संस्था ड्रग्स फॉर नेगलेक्टेड डिजीज इनीशिएटिव (डीएनडीआई) द्वारा साझा प्रयास कर विषय से जुड़े विशेषज्ञों, समुदाय व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाने की पहल की गयी। इसी कड़ी में सरोजनीनगर ब्लॉक के रूरल हेल्थ ट्रेनिंग सभागार में डेंगू जनजागरूकता कार्यशाला ‘‘सामुदायिक भागीदारी, सबकी जिम्मेदारी’’ का आयोजन कर बीमारी, बचाव और सामुदायिक भूमिका के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी। कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने अनुभव साझा किए और साथ ही बीमारी से जुड़े सवालों के जवाब भी जाने। सामुदायिक भागीदारी सबकी जिम्मेदारी-डॉ. सिंघल

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संयुक्त निदेशक मलेरिया व डेंगू डॉ. विकास सिंघल ने कहा कि डेंगू के बढ़ते मामले का बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। इससे हम सभी को ज्यादा सतर्क होने की ज़रुरत है| उन्होंने इसके लिए सामुदायिक भागीदारी और सबकी ज़िम्मेदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया और बुखार में देरी, पड़ेगी भारी नारा देकर सभी से अपील की कि बुखार होने पर करीबी स्वास्थ्य केंद्र पर ज़रूर जाएं व घर के आसपास साफ-सफाई का बेहद ध्यान दें।

डॉ. कल्पना बरुआ, वरिष्ठ सलाहकार और पूर्व अतिरिक्त निदेशक, नेशनल सेंटर फार वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल (एनसीवीबीडीसी) ने कहा कि डेंगू को एनसीवीबीडीसी के तहत एक कार्यक्रम के रूप में शामिल होने के बाद इसके बारे में काफी रिपोर्टिंग की जा रही है। अब हमारे पास इसकी रोकथाम और इलाज पर काम करने के लिए सही डेटा भी है। उन्होंने बताया कि डेंगू की समय से पहचान और चिकित्सक से सम्पर्क बेहद जरूरी है। इस बीमारी की प्रसार दर हमेशा से चिंता का विषय रही है। इससे बचाव के उपाय में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ-साथ समाज के सभी हितधारकों की अहम भूमिका है।

डॉ. मोनिका अग्रवाल, कम्युनिटी मेडिसिन विभागाध्यक्ष, केजीएमयू ने बताया कि गाँव के इलाकों में बीमारियों को खत्म करने में लिए महिलाओं को ध्यान में रखकर गतिविधियों की योजना बनाई जा रही है ताकि इसका पूरे परिवार के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़े। आईसीएमआर-आरएमआरसी के पूर्व निदेशक डॉ रजनीकांत ने कहा कि डेंगू का कोई इलाज नहीं होता है। इसका सिर्फ लाक्षणिक उपचार संभव है। संभावित डेंगू की समय से पहचान कर चिकित्सकीय हस्तक्षेप किया जाना मरीज की जीवनरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के पूर्व निदेशक डॉ पीके श्रीवास्तव ने प्रस्तुति के जरिए डेंगू के कारण और बचाव के उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि डेंगू से बचाव के लिए लोगों तक सही जानकारी पहुंचाना बहुत जरूरी है। डेंगू मादा मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर दिन के समय काटता है और इसे पनपने के लिए एक बूँद भर साफ़ पानी भी पर्याप्त है। तेज बुखार और जोडों में दर्द इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। डेंगू मरीज का समय से सही जगह पर संदर्भन, इससे होने वाली जटिलताओं को रोकने में कारगर है।

कार्यशाला के अंत में पैनल डिस्कशन के माध्यम से सभी प्रतिभागियों ने बीमारी से जुड़े सवालों के जवाब विषय विशेषज्ञों से जाने। इस मौके पर केजीएमयू से डॉ. अविनाश अग्रवाल- क्रिटिकल केयर डिपार्टमेंट के हेड, डॉ. सुरुचि शुक्ला- डिपार्टमेंट ऑफ़ माइक्रोबायोलॉजी, ड्रग्स फॉर नेग्लेक्टेड डिजीज इनिशिएटिव संस्था से सुकृति चौहान, लखनऊ की जिला मलेरिया अधिकारी ऋतू श्रीवास्तव समेत आशा व आशा संगिनी कार्यकर्ता मौजूद रहीं। सामुदायिक भागीदारी सबकी जिम्मेदारी-डॉ. सिंघल