क्या गहलोत की सलाह कांग्रेस को महंगी पड़ी..?

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रॉबर्ट वाड्रा को अशोक गहलोत ही खिला सकते हैं गोल्फ।तो क्या अशोक गहलोत की सलाह कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को महंगी पड़ी?27 फरवरी को दिन में जम्मू में कांग्रेस के दिग्गज असंतुष्ट नेताओं की बैठक हुई तो रात को अचानक गहलोत ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की।असंतुष्टों की बैठक में हरियाणा के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की उपस्थिति बहुत मायने रखती है।

एस0 पी0 मित्तल

अशोक गहलोत सिर्फ राजस्थान के मुख्यमंत्री ही नहीं है, बल्कि कांग्रेस को चलाने वाले गांधी परिवार के सलाहकार भी हैं। राजनीति में रुचि रखने वालों को याद होगा कि पिछले दिनों जब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संगठन चुनाव को लेकर प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई तो कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा जैसे नेताओं ने अध्यक्ष के चुनाव करवाने की मांग की। तब गहलोत का कहना रहा कि देश के मौजूदा हालात में कांग्रेस संगठन के चुनाव इतने जरूरी नहीं है। कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को बिना चुनाव के भी महत्वपूर्ण पदों पर रखा गया है। इसलिए अब अध्यक्ष के चुनाव की मांग बेमानी है। इसलिए बैठक के बाद कांग्रेस में उन नेताओं को दरकिनार कर दिया गया, जिन्होंने चुनाव की मांग उठाई थी।

गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा से रुखसत कर मल्लिकार्जुन खडग़े को प्रतिपक्ष का नेता बना दिया गया। जबकि खडग़े लोकसभा का चुनाव हार गए थे और 2014 से 2019 तक लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। इसी प्रकार मनीष तिवारी की अनदेखी कर अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनवाया गया। चौधरी और खडग़े गांधी परिवार के प्रति वफादार हैं और इन निर्णयों के पीछे अशोक गहलोत की सलाह ही रही है। यही वजह रही कि 27 फरवरी को जब कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की जम्मू में बैठक की तो अशोक गहलोत को राजस्थान छोड़कर दिल्ली आना पड़ा। गहलोत ने रात को ही सोनिया गांधी से मुलाकात की। इससे प्रतीत होता है कि कांग्रेस को चलाने के लिए गांधी परिवार को अशोक गहलोत की सलाह कितनी जरूरी है।

जहां तक 27 फरवरी को जम्मू में हुई असंतुष्टों की बैठक का सवाल है तो ऐसी गतिविधियां कांग्रेस को नुकसान ही पहुंचाएगी। अब जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तब दिग्गज नेता अपने ही नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। शायद अशोक गहलोत को उम्मीद थी कि दरकिनार कर देने से असंतुष्ट नेता खामशो हो जाएंगे, लेकिन जम्मू की बैठक बताती है कि असंतुष्टों की गतिविधियों से कांग्रेस का ही नुुकसान होगा। जिस तरह से असंतुष्ट नेताओं ने केसरिया पगड़ी पहन कर फोटो खिंचवाएं उसके कई मायने हैं। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि ऐसे नेताओं का नेतृत्व गुलामनबी आजाद जैसे दिग्गज कांग्रेसीकर रहे हैं।

27 फरवरी की बैठक में कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी के साथ साथ हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी उपस्थित रहे। जानकार सूत्रों के अनुसार अशोक गहलोत की सलाह पर ही हरियाणा के युवा नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को राष्ट्रीय स्तर पर उभारा जा रहा है। सुरजेवाला को सीधे राष्ट्रीय महामंत्री बना कर राष्ट्रीय प्रवक्ता घोषित करवा दिया। अब कांग्रेस की ओर से सुरजेवाला ही ब्रिफिंग देते हैं। जबकि सुरजेवाला दो बार विधानसभा का चुनाव हार गए हैं। वहीं गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूती दिलवाने वाले भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को दरकिनार कर रखा है, हरियाणा में हुड्ड ही कांग्रेस दिग्गज नेता हैं।

सुरजेवाला की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे गांधी परिवार के प्रति वफादार हैं। यानि कांग्रेस में अब वही व्यक्ति पदों पर रह सकता है जो गांधी परिवार के प्रति वफादार हो। भले ही ऐसे नेता का जनाधिकार न हो। मौजूदा समय में अशोक गहलोत ही गांधी परिवार के सबसे बड़े सलाहकार हैं। इस बात का पता गांधी परिवार के दामाद राबार्ट वाड्रा की 26 व 27 फरवरी की जयपुर यात्रा है। वाड्रा की आवभागत में पूरी गहलोत सरकार जुट गई। वाड्रा से जयपुर में न केवल केन्द्र पर हमला करवाया गया, बल्कि उनके निजी शोक भी पूरे करवाए गए। अमीरों की आरामगाह माने जाने वाले राम बगा पैलेस में वाड्रा ने गोल्फ भी खेला। इसमें कोई दो राय नहीं कि वाड्रा को अशोक गहलोत ही गोल्फ खिला सकते हैं। दामाद का शौक पूरा करवाने पर गांधी परिवार कितना खुश होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।