आदमी से भीड़ और भीड़ से भेंड़ के सफ़र में…..

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डॉ. अम्बरीष राय

क़ीक़त की ज़मीन पर ये झूठ के बुलबुले हैं. पाखंड की मज़बूत दीवार हैं. फ़रेब की ये निज़ामत धर्म की आड़ लेकर रायसीना हिल्स से सत्ता का चर्मोत्कर्ष भोग रही है. आदमी से भीड़ और भीड़ से भेंड़ के सफ़र में हिंदुस्तान का हर वाशिंदा अपनी मूर्खता को बुद्धिमानी माने इतराये पड़ा है. रामसेतु को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कह रही है कि रामसेतु का अस्तित्व नहीं है. रामसेतु की बात करें, उसके पहले अयोध्या के राम या फिर राम की अयोध्या की बात कर लेते हैं. राम की आस्था पर चलता ये देश, राम के नाम पर कितनी जानें खा गया, हिसाब लगाना मुश्क़िल है. अरबों खरबों के ऊपर जा पहुंचे नुक़सान का अंदाज़ा लगाना तो और भी मुश्किल है. ख़ैर अयोध्या में उसी गर्भगृह पर भगवान श्रीराम के मंदिर का निर्माण हो रहा है, जिसके लिए संघ परिवार (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) विश्व हिन्दू परिषद बरसों से संघर्ष कर रहे थे.

ये साल 1990 था और महीना अक्टूबर का था शायद. ‘ राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ ‘अभी तो पहलीं झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’, के नारों के साथ विश्व हिंदू परिषद हिंदुओं का हिंदुत्व जगाने में जुटी हुई थी. दिल्ली में नरसिम्हा राव की गठबंधन की कांग्रेसी सरकार थी. सरकार ने आंदोलन कर रही भगवा ब्रिगेड को एक ऑफर दिया. ऑफर में अयोध्या में विवादित ढांचे को छोड़कर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण था. लेकिन धर्म की ख़ुराक से सत्ता साधने का खेल रच रही ताक़तों ने इस ऑफर को ठुकरा दिया. कांग्रेस की केंद्र सरकार का वह प्रस्ताव ठीक वैसे ही था जैसे वाराणसी में अभी हाल में ही बना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर. बरसों बीते. गंगा में जाने कितनी पानी बह गया. अयोध्या में विवादित ढांचा वक़्त की भेंट चढ़ गया. भगवा ब्रिगेड ने 5 बार केंद्र में सरकार बनाई. तीन बार अटल बिहारी वाजपेयी तो नरेंद्र मोदी दूसरी बार केंद्र की सत्ता में हैं. अयोध्या में रामलला का मंदिर बन रहा है. सुप्रीम कोर्ट के सहारे ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा तो चरितार्थ हो गया लेकिन हिप्पोक्रेट भगवा ब्रिगेड अपनी ही बात से मुकर गई. सत्ता में रहने और विपक्ष में रहने के दौरान भगवा ब्रिगेड के चाल चरित्र चेहरे में ख़ासा फ़र्क होता है. तो अयोध्या में केंद्र सरकार द्वारा मंदिर निर्माण के जिस मॉडल को भगवा ब्रिगेड ने इनकार कर दिया था, उसे ही केंद्र में सरकार बनाने के बाद भगवा ब्रिगेड ने अपना लिया. हिन्दू हृदय सम्राट से हिन्दू राजा फिर भगवान तक श्रेणी में डाल दिये गए नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों को नेस्तनाबूद कर दिया लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद तक पहुंचते पहुंचते सरकार का हलक सूख गया और थूक सटकते निगलते सरकार बिना कोई छेड़छाड़ किए आगे निकल ली. लहालोट सत्ता समर्थक हुंकार भरे जा रहा है. उनकी बीच जाईये तो वो कहता है कि अब बस मथुरा बाक़ी है. ज्ञानवापी मस्ज़िद को बिना छुए, बिना कोई नुक़सान पहुंचाए विश्वनाथ कॉरिडोर बनाकर मोदी योगी हिन्दुत्व के शलाका पुरुष बने बैठे हैं. ज्ञानवापी मस्जिद के मूल स्वरूप से किसी भी तरह की छेड़खानी ना करने का मैं स्वागत करता हूं लेकिन जब विपक्ष में थे तो इतनी सारी बकवासें, इतने जानो माल का नुक़सान, अमन चैन छीनने का काम क्यों किया ? मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि में भी मौजूद भगवा शासकों की यही मंशा है.

बात रामसेतु की. कल संसद में राज्यसभा में निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने रामसेतु का मुद्दा उठाया. शर्मा ने कहा कि क्या सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास को लेकर कोई वैज्ञानिक शोध कर रही है? पिछली सरकारों ने इस मुद्दे पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. सरकार की तरफ से जवाब देते हुए मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि राम सेतु को लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं. जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये कहना मुश्किल है कि राम सेतु का वास्तविक स्वरूप वहां मौजूद है. मोदी सरकार के इस रुख के के बाद कांग्रेसी खेमे ने सरकार पर हमला बोल दिया. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से हिन्दू संगठनों ने सन्नाटा ओढ़ लिया. ओढ़ते भी ना तो कैसे सत्ता की मलाई के हिस्सेदारों का मूल प्रयोजन सत्ता साधना था, फिर सत्ता सुख का लाभ लेना था, जो पूरा हो रहा है. भारत में रामसेतु को लेकर असली विवाद 2005 में शुरू हुआ. तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना को हरी झंडी दे दी थी. इस परियोजना के तहत इस सेतु को तोड़कर एक मार्ग तैयार करना था जिससे बंगाल की खाड़ी से आने वाले जहाजों को श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़े. इससे समय, दूरी और ईंधन सबकुछ बचाने का मकसद था. हालांकि, हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. लेकिन कहानी इतनी ही नहीं है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि सेतुसमुद्रम परियोजना को वाजपेयी सरकार में मंजूरी दी गई थी. 2004 में वाजपेयी सरकार ने इसके लिए 3,500 करोड़ रुपये का बजट रखा था. हालांकि, चुनावों में एनडीए सरकार की विदाई हो गई और कांग्रेस की ओर से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनें. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने जब इसे आगे बढ़ाने पर काम किया तो बीजेपी ही विरोध में खड़ी हो गई. मुझे याद है साल 2007 जब मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से एएसआई के निदेशक (स्मारक) सी. दोरजी ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दायर करते हुए कहा था कि रामायण एक मिथकीय कथा है जिसका आधार वाल्मिकी रामायण और रामचरित मानस है. ऐसा कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है जिससे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रुप से इस कथा के प्रामाणिक होने और इस कथा के पात्रों के होने का प्रमाण मिलता हो. बवाल हुआ और खूब हुआ. बवाल के बीच एएसआई के दो अफसर सस्पेंड कर दिए गए. मनमोहन सिंह सरकार के माथे पर पसीना आ गया. कांग्रेस को राम विरोधी ठहराया गया. मामला अभी तक सुप्रीम कोर्ट में अटका पड़ा है. हिन्दू संगठनों का उस समय का विरोध और आज इस समय की चुप्पी बहुत कुछ कह जाती है. अटल बिहारी वाजपेयी रामसेतु को तोड़कर कर सेतु समुद्रम परियोजना पर काम शुरू कर सकते हैं तो मोदी सरकार क्यों नहीं? हो सकता है मोदी सरकार एक दिन विकास के नाम पर रामसेतु तोड़ दे और कुछ बरसों में उपजी एक अंधी बहरी प्रजाति एक बार फिर तालियां बजाए. मैं अपनी इस बात के समर्थन में बस काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उदाहरण दूंगा, जहां ना जाने कितने प्राचीन मंदिर ढहा दिए गए. प्राचीन आस्थाएं तोड़ दी गईं. और अब्दुल को सबक सिखाने के मिथ्या लोक में जीती प्रजाति ताली बजाती रही.

दरअसल भगवा कुनबा एक शातिर कुनबा है. सत्ता साध्य है या साधन इसको छोड़ते हुए बस इतना कहना है कि भगवा ब्रिगेड का एक हिस्सा राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दों को उभारता है. एक हिस्सा इन मुद्दों को लेकर जनमानस के दिमाग में छवियां स्थापित करने के प्रोसेस से गुज़रता है. इसमें आंदोलन से लेकर बॉलीवुड को टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. गौरतलब है कि आजकल भगवा कुनबा ने राष्ट्रवादी चोला ओढ़ रखा है. लिहाज़ा राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत फिल्मों का निर्माण हो रहा है. इन फिल्मों में भगवा कुनबे से अलग विचारधारा रखने वाले या फिर सियासी दुश्मन, सबकी इमेज को डिजिटली क्रैश किया जाता है. साथ ही भगवा ब्रिगेड के नैरेटिव को गाढ़ा किया जाता है. कश्मीर फाइल्स हो या फिर रामसेतु ये सब उसी की एक कड़ी मात्र हैं. हासिल की ज़मीन पर खड़ी भगवा सत्ता वो सारे काम करती है, जिसकी खिलाफ़त करके वो दिल्ली की रायसीना हिल्स पर स्थापित है. कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के हर काम को मौजूदा मोदी सरकार ने आगे ही बढ़ाया है. मसलन उसकी आर्थिक नीतियां, आधार कार्ड, जीएसटी, मनरेगा और तमाम ना जाने कितनी? सिलेंडर, पेट्रोल डीज़ल तो राष्ट्र निर्माण यज्ञ की आहुतियां मात्र हैं.