मौत की घटनाओं को भी दबा गए अफसर….!

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स्थानांतरण नीति आते ही जेलकर्मी में हड़कंप
स्थानांतरण नीति आते ही जेलकर्मी में हड़कंप

जेल वार्डरों की मौत की घटनाओं को भी दबा गए अफसर….! अवकाश नहीं मिलने से हुई मौत पर अभी तक नहीं हुई कोई कार्यवाही। बीते वर्ष लखनऊ जिला जेल में भी हो चुकी वार्डर की मौत। शासन में सेटिंग गेटिंग रखने वाले अफसरों पर नहीं होती कोई कार्यवाही। मौत की घटनाओं को भी दबा गए अफसर….!

राकेश यादव

लखनऊ। बीते सप्ताह फतेहगढ़ जिला जेल में अवकाश नहीं मिलने की वजह से एक वार्डर की मौत हो गई। इस मौत से आक्रोशित जेल के दर्जनों वार्डरों ने जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। इन आरोपों के बावजूद अभी तक किसी भी दोषी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है। यही नहीं एक साल पहले लखनऊ जेल में भी बंदियों ने एक वार्डर को पत्थर मारकर घायल किया। इसकी भी उपचार के दौरान मौत हो गई। जेल मुख्यालय के अफसरों ने इन मामलों में कार्यवाही करने के बजाए मामलों को ही दबाकर दोषियों को अभयदान दे दिया। सच यह है कि दोषियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होने से जेल अधिकारियों के हौसले बुलंद हो गए। अब इन अधिकारियों में कार्यवाही का कोई भय ही नहीं रह गया है।

सवालों का जवाब देने से बचते नजर आए डीजी जेल

प्रदेश के नवनियुक्त डीजी जेल पीवी रामशास्त्री से जब बरेली जनपद की समस्त जेलों का निरीक्षण, लखनऊ जेल और संपूर्णानंद कारागार प्रशिक्षण संस्थान के निरीक्षण के दौरान जेलों की व्यवस्था के संबंध में जब जानकारी करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा कि वह इसकी जानकारी जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) से प्राप्त करें। पीआरओ अंकित से जब बात की गई तो उन्होंने बताया लखनऊ जेल से कुछ मिला ही नहीं था। बरेली की प्रेसनोट भेज दी थी। फतेहगढ़ और लखनऊ जेल के मौतों के बारे में उन्होंने कहा कि फतेहगढ़ की जांच चल रही है। लखनऊ की जानकारी करके बता दूंगा। फतेहगढ़ की जांच रिपोर्ट आने के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली।

बीते सप्ताह 15 मई को फतेहगढ़ जिला जेल में तैनात वार्डर जगदीश प्रसाद की मौत हो गई। जेल के वार्डेरों का आरोप है कि वार्डर जगदीश की तबियत खराब थी। वार्डर ने उपचार के लिए अधीक्षक से अवकाश मांगा। अधीक्षक ने अवकाश नहीं दिया। ड्यूटी से वापस हुए वार्डर की तबियत बिगड़ी और उसकी मौत हो गई। वार्डर की मौत से आक्रोशित साथी वार्डेरो का आरोप लगाया कि अधीक्षक की तानाशाही रवैये से वार्डरो का उत्पीड़न किया जा रहा है। जेल में धनउगाही चरम पर है। अधीक्षक वार्डरो की जेल में लगाने के बजाए आवास पा लगा देते है। गलती होने पर वार्डरों से वसूली तक कर लेते है। पैसा नहीं देने पर उनका उत्पीड़न किया जाता है।

सूत्रों का कहना है कि बीते वर्ष लखनऊ जेल में बलिया निवासी एक वार्डर को जेल के अंदर बंदियों ने पत्थर मारकर घायल कर दिया। जेल प्रशासन के इशारे पर दबाव बनाने के लिए घायल किए गए इस वार्डर की उपचार के दौरान मौत हो गई। जेल प्रशासन के अधिकारियो ने वार्डर के फिसलकर गिरने से घायल होने की बात कहकर पूरे मामले को ही रफादफा करा दिया। इस जेल में बांग्लादेशी बंदियों को ढाका से फंडिंग, शाइन सिटी में पावर ऑफ अटॉर्नी में गोलमाल, गल्ला गोदाम से 35 लाख की बरामदगी जैसे गंभीर मामले होने के बावजूद जेल प्रशासन के किसी भी दोषी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं गई। विभाग में चर्चा है कि शासन और मुख्यालय में अच्छी सेटिंग गेटिंग होने की वजह से दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए उन्हें बचा लिया जाता है। ऐसा तब है जब डीआईजी जेल ने जांच में दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ निलंबन तक की संस्तुति की। मौत की घटनाओं को भी दबा गए अफसर….!