रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत

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रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत
रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत

रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत
विनोद यादव


चौदह साल पढा़ने के बाद भी रामराज्य वाली सरकार में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव को हिटलरशाही हुकूमत में लगा सत्ता भेदी बाण। केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नियुक्ति का आधार क्या होना चाहिए…? क्या संघ की शाखा लगाने वाला ही बन सकता हैं प्रोफेसर..? क्या रामराज्य वाली सरकार में लक्ष्मण को पुनः भेदा गया बाण..? दलितों ,पिछ़डो ,अल्पसंख्यकों को क्या अपने लोगों को हिटलरशाही हुकूमत के खिलाफ जगाना गुनाह हैं…? रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत

दलितों,पिछडो़,अल्पसंख्यकों की लगातार संवैधानिक हत्याएं की जा रहीं हैं इस हिटलरशाही हुकूमत में लेकिन सबसे ज्यादा आवाजें दबाई उनकी जा रहीं हैं जो हाशिए के मुद्दों पर लिख रहा हैं बोल रहा हैं। खैर वर्तमान हुकूमत में सत्ता की गद्दी पर बैठे राजा के खिलाफ बोलना,पढ़ना लिखना दलित,पिछडे़,अल्पसंख्यक समाज के लोगों के लिए नहीं हैं। प्रोफेसर लक्ष्मण यादव को चयन प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखाना इस बात की गवाही हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय ) में करीब 14 साल से हिंदी विभाग में एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहें थें। बीते करीब तीन चार सालों से लक्ष्मण यादव सामाजिक न्याय के मुद्दों पर बेबाक बोलते थें। सोशल मीडिया फेसबुक और यूट्यूब के माध्यम से भी लक्ष्मण यादव ने समाजिक न्याय के मुद्दों पर आवाज उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा हैं। ट्वीटर,फेसबुक, यूट्यूब पर उन्हें फॉलो करने वालों की लंबी जमात है। लगातार सोशल मीडिया,और तमाम दलित, पिछ़डे, अल्पसंख्यक विचारधारा के मंचों से बोलते हुए मनुवाद, पाखंड वाद पर लगातार बोलना हिटलरशाही हुकूमत को नागवार गुजरा। जिसका खामियाजा लक्ष्मण यादव सहित सात लोगों को बाहर किया गया। खैर वैचारिकी की बात करेंगे तो सत्ता के निशाने पर हैं,लेकिन यह अकेले लडाई सिर्फ़ लक्ष्मण यादव के लिए हो यह भी गलत हैं। उनके साथ सात और लोग भी हैं बात उनकी भी होनी चाहिए। खैर डॉ. लक्ष्मण यादव ने अपने टर्मिनेशन लेटर को ट्वीटर पर शेयर करते हुए गोरख पांडे की एक चर्चित कविता लिखा – मेरे लहज़े में जी हुज़ूर ना था,इससे ज़्यादा मेरा क़सूर ना था…. नियमों को ताख पर रखा गया या संघ की कार्यशाला को देखते हुए शाखा वीरों को पहलें वरियता दी जा रही हैं या जेएनयू जैसे संस्थाओं को संघ से जुडें लोगों को रखा जा रहा हैं।

सबसे बड़ा सवाल यहीं हैं। मेरिट का एक पैमाना तो है लेकिन उसपर इंटरव्यू नहीं होता। नियम कहता है कि 100 फीसदी इंटरव्यू बोर्ड के हाथ में अधिकार है जैसा कि मान लीजिए 5 पद हैं तो वे पांचों पर केवल नाम लिख देंगे इस पद पर इनको नियुक्त किया जा रहा है। इस पद पर इनको नियुक्त किया जा रहा है। ये दो लोग वेटिंग में हैं और उसके बाद नीचे साइन करके रिजल्ट बन जाता है। उसमें इस बात का कोई नियम ही नहीं है कि वे कोई वजह बताएं या कोई मैरिट उन्होंने बनाई है तो उस मेरिट को रिलीज करें। किस बेस पर वो 14 साल पुराने टीचर को बाहर कर रहे हैं। किस बेस पर बिना टीचिंग एक्सपियंस वाले से रिप्लेस कर रहे हैं। ये कई शर्तें हैं जिसका फायदा वे उठाते हैं वजह नहीं बताते। उत्तर प्रदेश आज़मगढ़ जिले के रहने वाले डॉ. लक्ष्मण यादव इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमए में गोल्ड मेडलिस्ट और JRF ( Junior Research Fellowship) क्वालीफाई कर लक्ष्मण यादव ने IAS बनने के सपने के साथ 2009 में दिल्ली का रुख़ किया। IAS की तैयारी के साथ ही उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी में एडमिशन लिया। 2010 में ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में इंटरव्यू दिया और एडहॉक पर नौकरी की। 1 सितंबर 2010 को उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के हिंदी विभाग में ज्वाइन किया। वे बताते हैं कि ”1 सितंबर 2023 को 13 साल पूरा हो गए और 14वां साल चल रहा था। फिलहाल जब परमानेंट का इंटरव्यू हुआ और उसमें उन्हें नहीं लिया गया तो सोशलमीडिया के माध्यम से उन्होंने बताया कि हमें हमारी कसूर बताया जाए कि क्यूं बाहर किया गया। खैर 14 साल पढाने वाला शिक्षक आखिर क्यूं कभी प्रोफेसर ,एसोसिएट प्रोफेसर ,असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए कभी कोई आवेदन नहीं किया। क्या 14 साल सत्ता की हवा उनके अनुकूल नहीं थीं..? क्या इतने दिनों से लगातार शोषित, वंचित पिछडो़ के मुद्दों पर बात कर रहें हैं…?सवाल यह भी हैं।

रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत
प्रोफेसर लक्ष्मण यादव


सवाल: आपने इंटरव्यू पर सवाल उठाए हैं, क्या आपको लगता है कि नियमों को अनदेखा किया गया है..? प्रोफेसर लक्ष्मण यादव से जब मैंने बात की तो उन्होंने बताया कि मैं ये दावा नहीं करूंगा कि किसी गाइडलाइन को उन्होंने अनदेखा किया है। क्योंकि ये बहुत चालाक लोग हैं इनके पास इस बात का पर्याप्त मौका है कि वो बकायदा इंटरव्यू लेते हुए भी किसी को बाहर कर सकते हैं। क्योंकि उन्हें कारण कहीं बताना नहीं है। उनको तो फाइनल रिजल्ट देना है। लेकिन अंदर से बात आती है कि जब अंतिम दिन रिजल्ट बनता है जब इंटरव्यू खत्म हो चुका होता है तो बातचीत शुरू होती कि क्या निर्णय लेना है तो सैद्धांतिक तौर पर बातचीत ऐसे शुरू होनी चाहिए कि इनका इंटरव्यू अच्छा हुआ है। इनका वर्क एक्सपियंस अच्छा है या इनका पब्लिकेशन अच्छा या इनका एकेडमिक अच्छा है। लेकिन वहां बातचीत ऐसे शुरू होती है कि ”लक्ष्मण यादव को हमें निकालना है। चाहे आप जिसको रख लें।”तो इसमें प्रिंसिपल, चेयरमैन, वीसी, नॉमिनी ये सारे लोग एक तरफ थें ऐसा मुझे लगता है कि इन्हें ऊपर से कोई निर्देश देकर भेजा गया था कि बाकी आप चाहे जिसको रख लें लेकिन लक्ष्मण यादव को बाहर कर दें। तो इस वजह से ये सब किया गया। लक्ष्मण यादव ने प्रोफेसर रतन लाल के आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सिलसिले वार एक एक बात बताई जिसमें प्रोफेसर सूरज मंडल भी मौजूद रहें। लक्ष्मण यादव ने कहां देश की शोषित पीडित दलित पिछडे़ आवाम को इस बात की जानकारी होनी चाहिए जो इस समय हिटलरशाही हुकूमत में हो रहा हैं। मैं उस पर लिखना और बोलना दोनों जारी रखूंगा। मैं सोशल मीडिया के ज़रिए जो भी चीजें देश को बताने लायक होगी बताऊंगा।

निजी लड़ाई से आगे बढ़ाकर वैचारिक लड़ाई बनाएंगे। देश की ऐसी लड़ाई जिसमें शिक्षा को बचाया जा सके, शैक्षिक संस्थाओं को एक रंग में रंगने के खिलाफ, मेरिट के खिलाफ जो माहौल है इसके खिलाफ एक मिशन की तरह से काम करूंगा ताकि लोग जागरूक हों ताकि अगली बार किसी का नंबर मेरी तरह ना आए। किसी के करियर को बर्बाद ना किया जाए।लक्ष्मण यादव ने लिखा कि अपने अज़ीज़ ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज के साथियों के नाम मेरा संदेश आप सबकी बहुत याद आएगी। ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज, मेरे लिए यह एक कॉलेज मात्र नहीं, एक इमोशन है। और इमोशन ख़त्म नहीं हुआ करते। इस कॉलेज ने मुझे बनाया है। मेरे वज़ूद के साथ ये कॉलेज हमेशा साँस लेता रहेगा। पिछले तक़रीबन चौदह साल, जो मेरी ज़िंदगी के सबसे अहम दिन थे, मैंने इन चारदीवारों में गुज़ारे हैं। जाने कितनी यादें हैं, जाने कितने वाक़ये हैं, जो ताउम्र याद रहेंगे। जो न भूलेंगी, वे मेरी कक्षाएँ हैं। स्टाफ़ रूम का शानदार माहौल है। बेइँतहा प्यारे लोग हैं। आप सबकी कमी हमेशा महसूस होती रहेगी। आप सबसे से जो सीखा है, उसे आने वाले कल की बेहतरी में शामिल करूँगा। आप सब मुझमें ज़िंदा रहेंगे। इस कॉलेज ग्रुप में मेरा शायद यह पहला मैसेज है और निःसंदेह आख़िरी। मैं कॉलेज में जब भी दो चार बार बोला, एडहॉक के मसले पर बोला होगा, डूटा के दायरे में बोला होगा। और तो कभी बोला भी नहीं। क्योंकि उसकी कभी ज़रूरत महसूस न हुई। आप सब तो थे ही न। फिर भी शायद ख़ुद में ही कहीं कोई कमी रह गई होगी, इसलिए नक़ार दिया गया।


अब अलविदा कहने का वक़्त आ गया। चौदह साल पहले आया था, तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ज़िंदगी का सबसे मुश्किल यह लम्हा भी आएगा। आज के बाद मेरी साँसे अधूरी रहेंगी, क्योंकि मेरी कक्षाएँ मेरे पास न होंगी।आज के बाद मुझे कॉलेज से मेल नहीं आया करेंगे। आज के बाद ड्यूटी चार्ट में मेरा नाम न हुआ करेगा। आज के बाद मेरे हिस्से की चाय कोई और पीया करेगा। स्टाफ़ रूम के उस कोने की कुर्सी पर कोई और बैठा करेगा। मेरी कक्षा में कोई और जाया करेगा। मगर उन कक्षाओं के किसी कोने मैं भी शायद थोड़ा सा बचा रहूँगा। कॉलेज रजिस्टर के वे सारे पन्ने बंद कर दिए जाएँगे, जिनमें मेरा नाम पिछले चौदह सालों से साँस लेता था। मुझे इतने प्यारे लोग अब शायद सिखाने को न मिला करेंगे। फिर भी मुझे फ़ख़्र है ख़ुद पर कि जो मुझे होना था, वही हुआ और जो मुझे कत्तई नहीं होना था, सब कुछ दाव पर रखकर भी वह सब न हुआ। रीढ़ सही सलामत बचाकर लाया। मिर्ज़ा कह गए हैं- ‘घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता, वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है।’ मेरा कभी किसी से कोई विवाद न हुआ, कभी किसी को नाराज़ न किया, शायद किसी का कभी अपमान भी न किया। फिर भी कोई ग़लती कभी जाने-अनजाने कर दी हो, तो आप सब से माफ़ी। माफ़ कर देंगे न…? माफ़ी कि इतना सब लिख गया। इमोशन है न, बहता चला गया। माफ़ कर दीजिएगा और पढ़कर भूल जाइएगा। शायद आपके लिए नहीं, ख़ुद के लिए लिख गया।’जो बीत गई सो बात गई है।
जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था।
वह डूब गया तो डूब गया, अम्बर के आनन को देखो।
कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे।
जो छूट गए फिर कहाँ मिले, पर बोलो टूटे तारों पर।
कब अम्बर शोक मनाता है।’

खैर आज पूरे देश में हिटलरशाही हुकूमत का बोलबाला हैं। इससे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हाशिए के समाज की लगातार संवौधानिक हत्याए की जा रहीं जो लिख और बोल रहा हैं चाहें प्रोफेसर हो या पत्रकार दलित पिछडे़ होने का शिला मिलेगा हीं। समाजिक न्याय के मुद्दे उठाना ,संविधान को बचाने की बात करना ,फूले ,पेरियार, अंबेडकर ,वीपी मंडल की चर्चा करना शायद मनुवादी व्यवस्था को अच्छा नहीं लगता यहीं वजह हैं दलितों ,पिछ़डो ,अल्पसंख्यकों की संवौधानिक हत्याएं लगातार की जा रहीं हैं और ये अभी भी जागरूक होना नहीं चाह रहें।पूरा देश फासीवाद की चंगुल में फंस गया है जिसके निशाने पर प्रबुद्ध लोकतांत्रिक बुद्धिजीवी हैं।लक्ष्मण यादव को रामराज्य वाली सरकार ने सिस्टम से दलित पिछ़डा हिंदू होने का सिला दिया यदि कट्टर हिंदू होते तो संघ की शाखाओं के रास्ते आज प्रोफेसर जरुर होते लेकिन उन्हें तो शूद्र होने का सिला दिया गया।शायद लक्ष्मण यादव ने ताड़ना को मारना ,पीटना ही अपने कॉलेज में पढ़ाया यदि ताड़ना का अर्थ शिक्षा पढ़ाया होता तो आज ओ साजिश के शिकार कदापि न होते। खैर लक्ष्मण यादव वैचारिकी से लैंस हैं जो लगातार समाजिक न्याय के मुद्दों पर मुखरता पूर्वक बोलते हैं यहीं वजह हैं आज लक्ष्मण यादव को निशाने पर लिया हैं। हिंदुत्व वादियों ने रामराज्य की सरकार में लक्ष्मण यादव को भी बाण मारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ,खैर छोड़ते तो दलित पिछ़डे वर्ग के लोगों को किसी को भी नहीं हैं तो लक्ष्मण कहां से बच जाएगें। पिछ़डे समाज को नयी दिशा और दशा से रुबरु कराने वाले प्रोसेसर को निशाने पर तो रखा हीं जाएगा। संविधान को बचाने की बात करना शायद नुकसानदेह हो गया हैं।लक्ष्मण यादव को रामराज्य वाली सरकार ने सिस्टम से दलित पिछ़डा हिंदू होने का सिला दिया यदि कट्टर हिंदू होते तो संघ की शाखाओं के रास्ते आज प्रोफेसर जरुर होते लेकिन उन्हें तो शूद्र होने का सिला दिया गया।शायद लक्ष्मण यादव ने ताड़ना को मारना ,पीटना ही अपने कॉलेज में पढ़ाया यदि ताड़ना का अर्थ शिक्षा पढ़ाया होता तो आज ओ साजिश के शिकार कदापि न होते। खैर लक्ष्मण यादव वैचारिकी से लैंस हैं जो लगातार समाजिक न्याय के मुद्दों पर मुखरता पूर्वक बोलते हैं यहीं वजह हैं आज लक्ष्मण यादव को निशाने पर लिया हैं। रामराज्य में प्रोफेसर लक्ष्मण यादव हिटलरशाही सत्ता भेदी बाण से आहत