अयोध्या के राम कि अयोध्या

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अयोध्या के राम कि अयोध्या
अयोध्या के राम कि अयोध्या

निष्पक्ष दस्तक ब्यूरो

भगवान राम की नगरी अयोध्या का कायाकल्प किया जा रहा है।अयोध्या को भगवान राम की नगरी कहा जाता है।प्राचीन भारतीय महाकाव्य, रामायण के अनुसार, राम का जन्म अयोध्या में हुआ था।इसे राम जन्मभूमि या राम की जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी हो गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया।इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा। इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गए। विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।

विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है।अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है। इसके बाद कहते हैं कि चीनी भिक्षु फाहियान ने यहां देखा कि कई बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे जिसे राम मंदिर कहा जाता था।

इसके बाद ईसा की 11वीं शताब्दी में कन्नौज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। इसके बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए।विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था।

14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। इस अभियान में हजारों रक्षकों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा। मंदिर की रक्षा के लिए जहां हिन्दू अखाड़े के साधुओं को शहीद होना पड़ा वहीं गुरु गोविंद सिंह की निहंग सेना ने भी मुगलों की सेना से राम जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध किया था। इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह जी की निहंग सेना को चिमटाधारी साधुओं का साथ मिला था। कहते हैं कि मुगलों की शाही सेना के हमले की खबर जैसे ही चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास को लगी तो उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी से मदद मांगी और गुरु गोविंद सिंह जी ने तुरंत ही अपनी सेना भेज दी थी। अंतत: 1527-28 में अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।

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दीपोत्सव समाज के हर तबके को जोड़ने का आयोजन है। भगवान श्रीराम ने सभी को जोड़ने का कार्य किया। जब वे अयोध्या से गए, तो निषादराज को गले लगाया, वन में जाकर ऋषि-मुनियों को अभय प्रदान करने के लिए ‘ निसिचर हीन करहुँ महि, भुज उठाई पन कीन्ह’ के संकल्प के साथ इस धरती को राक्षसविहीन कर दिया। जंगल में उन्होंने माता शबरी के जूठे बेर भी खाए। उन्होंने जामवंत, हनुमान, अंगद, सुग्रीव को भी अपना मित्र बनाया। उन्होंने सेतु बन्ध भी किया। अयोध्या वापस आकर उन्होंने दुनिया की सबसे आदर्श व्यवस्था रामराज्य को स्थापित किया।उत्तर प्रदेश में 54 देशों के राजनयिक आए हैं। वे दीपोत्सव तथा सरयू आरती के साक्षी बनेंगे। वे अयोध्या की भव्यता का अवलोकन भी करेंगे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में जब वे (मुख्यमंत्री जी) पहली बार दीपोत्सव में आए थे, तो यहां के लोगों का एक ही नारा था ‘योगी जी एक काम करो, मन्दिर का निर्माण करो। वह घड़ी उत्तर प्रदेशवासियों के लिए आ चुकी है। यह दीपोत्सव कार्यक्रम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की 14 वर्ष के वनवास की स्मृतियों को स्मरणीय बनाने और अयोध्या को उसका गौरव वापस दिलाने के लिए आयोजित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 100 से अधिक देशों में लाइव देखा जा रहा है।

आज से 07 वर्ष पहले जब राज्य सरकार ने दीपोत्सव कार्यक्रम प्रारम्भ किया था, तब कार्यक्रम के आयोजन के लिए असमंजस की स्थिति थी। राज्य सरकार ने जनप्रतिनिधियों और संतों के सहयोग से इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। आज यह अयोध्या और उत्तर प्रदेष का एक बड़ा कार्यक्रम बना है। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को आगे बढ़ाते हुए दुनिया की एक यूनीक इवेण्ट बना है। विगत वर्ष प्रधानमंत्री जी स्वयं इस कार्यक्रम के साक्षी बने थे। भगवान श्रीरामलला 500 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद अपने मन्दिर में विराजमान होने के लिए आ रहे हैं। 22 जनवरी, 2024 को जब भगवान श्रीरामलला को उनके भव्य मन्दिर में विराजमान कराने के लिए प्रधानमंत्री जी आएंगे, तो यह अयोध्यावासियों की जिम्मेदारी है कि वे उनके स्वागत के लिए तैयार रहें। अयोध्यावासियों की जिम्मेदारी आज और बढ़ गई है। उन्हें ‘अतिथि देवो भवः’ के पवित्र अभियान के साथ जुड़ना है। सभी व्यक्ति एक साथ मिलकर सरकार के साथ कार्य करेंगे, तो अयोध्या दुनिया की सुन्दरतम नगरी के रूप में स्थापित होगी। हम सभी मिलकर प्रभु श्रीराम की भावनाओं तथा आदर्षों के अनुरूप अयोध्या तथा उत्तर प्रदेश को विकसित करने की दिषा में अग्रसर होंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि डबल इंजन की सरकार भगवान श्रीराम को आराध्य और आदर्श मानकर कार्य कर रही है। 22 जनवरी, 2024 के बाद अयोध्या में पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या वर्तमान से 10 गुना बढ़ने जा रही है। अयोध्या के सभी पूज्य संतों, जनप्रतिनिधियों, व्यापारियों तथा नागरिकों ने विकास कार्यों में कोई बाधा नहीं आने दी। अब अयोध्या उपेक्षित नहीं रहेगी। श्रीरामलला के अपने मन्दिर में विराजमान होेने के पहले अयोध्या दुनिया की सुन्दरतम नगरी बन जाए, इसके लिए 30,500 करोड़ रुपये की परियोजनाएं क्रियान्वित हो रही हैं। हम नयी अयोध्या को बनते हुए देख रहे हैं। वर्तमान में अयोध्या के विकास के लिए केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा 30,500 करोड़ रुपये की लागत से 178 परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। निजी क्षेत्र में भी यहां बड़ा निवेष होने जा रहा है। जब श्रीरामलला अपने भव्य मन्दिर में विराजमान होंगे, तब तक अयोध्या धाम में लगभग 50,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं मूर्तरूप ले रही होंगी। इसके माध्यम से लाखों लोगों के लिए रोजगार सृजित होंगे।अयोध्या के प्रति सभी लोग आकर्षित हो रहे हैं। भगवान ने स्वयं कहा है ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ, यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ’ अर्थात अयोध्या से प्रिय मेरे लिए कोई नहीं। अयोध्या को भगवान श्रीराम की प्रिय नगरी के रूप में विकसित करने के लिए डबल इंजन की सरकार पूरी प्रतिबद्धता के साथ तैयार है। विगत साढ़े 09 वर्षों से देष में प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में तथा प्रदेष में साढ़े 06 वर्षों में जिन कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने का कार्य किया गया है, उन्हें सभी ने देखा है।

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