एससी एवं एसटी आरक्षण आदेश संशोधन बिल

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संविधान(एससी एवं एसटी) आरक्षण आदेश संशोधन बिल लाकर मझवार,तुरैहा,गोंड की पर्यायवाची जातियों आरक्षण देने की मांग,मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा दिए जाने व परम्परागत अधिकारों की बहाली की मांग ।

चौधरी लौटनराम निषाद

अयोध्या। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौधरी लौटन राम निषाद ने केन्द्र व प्रदेश सरकार पर मझवार, तुरैहा,गोंड के साथ नाइंसाफी का आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा सरकार में इन जातियों का बड़े पैमाने पर शोषण व उत्पीड़न किया जा रहा है। संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।उन्होंने कहा है कि जब चमार,जाटव की सभी पर्यायवाची जातियों, उपजातियों-मोची, कुरील, दबकर, दोहरे, दोहरा,चमकाता, कबीर पंथी,भगत,रविदासिया, रैदासी,शिवदसिया, नीम, पीपैल, कर्दम, धुसिया, झुसिया, उतरहा, दखिनहा,जाटवी,जटीवा,अहिरवार,जैसवार,रैदासी आदि को चमार या जाटव के नाम से प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है तो मझवार की पर्यायवाची मानी गयी जातियों को मझवार का जाति प्रमाण-पत्र क्यों नहीं? उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन बताया है।उन्होंने इसी सत्र में संविधान(अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियां) आरक्षण आदेश संशोधन विधेयक–2020-21 पारित कर मंझवार(मल्लाह,केवट,माँझी, बिन्द),तुरैहा(धीमर,धीवर,तुराहा, तुरहा),गोंड़(गोड़िया, धुरिया,कहार,रैकवार,बाथम,धीमर) आरक्षण का राजपत्र व शासनादेश जारी करने की मांग किया है।उन्होंने मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा देने व मछुआरों के परम्परागत अधिकारों की बहाली की भी मांग किया है।

निषाद ने मझवार,बेलदार,तुरैहा, गोंड़ को चमार,जाटव,वाल्मीकि की भाँति परिभाषित कर इनकी पर्यायवाची व वंशानुगत जातियों को अनुसूचित जाति का लाभ व प्रमाण पत्र जारी करने के लिए गृह मंत्रालय से आदेश पत्र जारी कराने की मांग किया है।निषाद ने बताया कि आरक्षण नीति लागू होने से पूर्व मझवार व मांझी को परस्पर पर्यायवाची माना गया है। मध्य प्रदेश ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट छिंदवाड़ा के अनुसार मांझी, मझिया व मझवार को एक माना गया है। इन्हें बोटमैन, फेरीमैन व फिशरमैन मान्य किया गया है। मांझी का आमजन भी अर्थ मल्लाह, केवट, नाविक, मछुआ से लगाते हैं। सेन्सस ऑफ इण्डिया-1961 फॉर यूपी मैनुअल पार्ट-1 के अनुसार उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति मझवार की पर्यायवाची/वंशानुगत जाति मल्लाह, मांझी, केवट, राजगौड़, गोड़ मझवार, मुजाबिर को माना गया है। इसी सेन्सस के क्रमांक-24 पर अंकित जाटव, चमार,धूसिया, झूसिया की पर्यायवाची जाटवी, जटीवा, दबकर, रैगर, मोची, कुरील, भगत, रैदासी, रविदसिया, शिवदसिया, नीम, पिपैल, कर्दम, दोहरा, दोहर, दोहरे, चमकाता, उतरहा, दखिनहा, अहिरवार, कबीरपंथी आदि का उल्लेख है।इन पर्यायवाची उपजातियों को राजस्व अधिकारियों द्वारा निर्बाध रूप से चमार या जाटव का प्रमाण-पत्र निर्गत किया जाता है। लेकिन जब कोई मझवार,तुरैहा, गोंड़, खरवार, बेलदार, तड़माली, शिल्पकार का जाति प्रमाणपत्र मांगता है, तो मल्लाह, केवट, माँझी, बिन्द, गोड़िया, धीवर,धीमर, कहार, कमकर,राजभर,कुम्हार आदि कहकर आवेदन निरस्त कर दिया जाता है।


निषाद ने कहा कि दूबे, द्विवेदी, चौबे, चतुर्वेदी, पाण्डेय, मिश्रा, शुक्ला, उपाध्याय, तिवारी, त्रिपाठी,त्रिवेणी, पाठक, ओझा, झा, अग्निहोत्री,चटर्जी, बनर्जी, मुखर्जी, चट्टोपाध्याय, मुखोपाध्याय, बंद्योपाध्याय, कुलकर्णी, जोशी आदि को ब्राम्हण ही कहा जाता है। आमजन इन्हें ब्राह्मण ही कहेगा,बतायेगा न कि चमार, जाटव, खटिक, निषाद, पासी,यादव या बाल्मिकी आदि। उन्होंने कहा कि आम जन मल्लाह,मांझी, केवट,निषाद,मछुआ आदि को निःसंदेह एक मानतें हैं। भारत की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की डिप्रेस्ड क्लास की जातियों की 1931 की रिपोर्ट में मझवार (मांझी) का उल्लेख है। 1901 में भी धीवर, केवट, मांझी को मझवार की समाविष्ट जाति माना गया है।उन्होंने केन्द्र सरकार से मझवार, तुरैहा, गोंड़ की पर्यायवाची जातियों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए बिल पेश किये जाने की मांग किया है।निषाद ने कहा कि हम नए सिरे से अनुसूचित जाति में शामिल करने की नहीं,बल्कि राष्ट्रपति की प्रथम अधिसूचना जो 10 अगस्त,1950 को जारी की गई,उसमें सूचीबद्ध मझवार,तुरैहा,गोंड को परिभाषित कर इन जातियों के साथ न्याय करने की मांग किया है।निषाद ने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली का मल्लाह,ओडिशा का कैवर्ता,जल के ऊट,धीवरा,डेवर व पश्चिम बंगाल का मल्लाह,केवट, बिंद, चाई, तियार, झालो मालो, जलिया, कैवर्ता, जल केवट आदि अनुसूचित जाति में हैं तो उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखंड का मल्लाह,केवट, बिंद,धीवर आदि क्यों नहीं।उन्होंने कहा-कहा गया भाजपा का वादा,दृष्टि पत्र, फिशरमेन विजन डॉक्यूमेंट व मछुआरा दृष्टि पत्र का संकल्प..?