फाइलों में कैद हुई जेल की सनसनीखेज घटनाएं..!

49
स्थानांतरण नीति आते ही जेलकर्मी में हड़कंप
स्थानांतरण नीति आते ही जेलकर्मी में हड़कंप

कारागार विभाग में दोषी अधीक्षकों पर नहीं होती कार्यवाही..! डीजी और डीआईजी जेल की संस्तुति के बाद शासन नहीं करता कार्यवाही। फाइलों में कैद हुई राजधानी के जिला जेल की कई सनसनीखेज घटनाएं। जेलों में बंदियों की आत्महत्याओं के बाद जेल वार्डरो की मौत पर भी शासन मौन। फाइलों में कैद हुई जेल की सनसनीखेज घटनाएं..!

राकेश यादव

लखनऊ। शासन और जेल मुख्यालय जांच में दोषी पाए गए जेल अधीक्षकों पर कार्यवाही नहीं करता है। यह सवाल कारागार विभाग के अधिकारियो और कर्मचारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। विभाग के कर्मियो का मानना है कि ऊंची पहुंच और जुगाड रखने वाले अधिकारियों पर विभाग के आला अफसर न कोई कार्यवाही करते है और न करेंगे। राजधानी की जिला जेल और फतेहगढ़ जिला जेल इसका जीता जागता उदाहरण है। लखनऊ जेल में हुई घटनाओं की जांच में परिक्षेत्र के तत्कालीन डीआईजी और डीजी जेल की संस्तुति के बाद भी शासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। कुछ ऐसा ही हाल हाल ही में फतेहगढ़ जिला जेल में हुई घटना में भी देखने को मिला है। कार्यवाही नहीं होने से बेखौफ हुए अधीक्षकों ने जेलों में लूट मचा रखी है। उधर विभागीय अधिकारी इन मामलों में कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे हैं।

राजधानी की जिला जेल में जेल अधीक्षक आशीष तिवारी के करीब चार साल से अधिक के कार्यकाल में घटनाओं की भरमार रही है। घटनाओं की जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद इस जेल में किसी भी अधिकारी और कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। सूत्रों का कहना है कि लखनऊ जेल में बांग्लादेशी बंदियों को ढाका से फंडिंग, शाइन सिटी में पावर ऑफ अटॉर्नी में गोलमाल, गल्ला गोदाम से 35 लाख की बरामदगी सरीखी कई गंभीर घटनाएं घटित हुई। इन घटनाओं की तत्कालीन डीजी जेल आनंद कुमार ने लखनऊ परिक्षेत्र के तत्कालीन डीआईजी संजीव त्रिपाठी (सेवानिवृत) और शैलेंद्र मैत्रेय से जांच कराई। गल्ला गोदाम से 35 लाख बरामदगी की जांच में तत्कालीन डीआईजी संजीव त्रिपाठी ने ले देकर जेल प्रशासन को क्लीन चिट दे दी। साइन सिटी मामले की जांच में तत्कालीन डीआईजी शैलेंद्र मैत्रेय ने अधीक्षक समेत कई अधिकारियों और कर्मियो को दोषी ठहराते हुए कार्यवाही की संस्तुति की। तत्कालीन डीजी जेल आनंद कुमार ने कार्यवाही के लिए शासन को संस्तुति की। संस्तुति के बावजूद शासन ने जेल प्रशासन के किसी भी दोषी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं गई। चर्चा है कि शासन में सेटिंग गेटिंग होने की वजह से दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए उन्हें बचा लिया गया। विभाग के अधिकारियो ने बांग्लादेशी बंदियों की ढाका से हुई फंडिंग की एटीएस की जांच रिपोर्ट को कार्यवाही के लिए शासन भेजने के बजाए मुख्यालय में ही फाइलों में ही कैद कर दोषियों को बचा लिया गया।

प्रमुख सचिव समेत आला अफसरों ने मामलों पर साधी चुप्पी

राजधानी समेत प्रदेश की जेलों में हो रही घटनाओं के बाद कार्यवाही नहीं होने के संबंध में जब प्रमुख सचिव/ महानिदेशक कारागार राजेश कुमार सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन ही नहीं उठा। प्रमुख सचिव के निजी सचिव विनय सिंह ने व्यस्त होने की बात कहते हुए बात कराने से ही इंकार कर दिया। उधर इस संबंध में डीजी पुलिस/आईजी जेल पीवी रामाशास्त्री से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह इस बारे में पीआरओ से बात कर लें। पीआरओ अंकित ने घटनाओं के संज्ञान में नहीं होने की बात कहकर कोई भी टिप्पणी करने के बजाए चुप्पी साध ली।

इसी प्रकार बीती 15 मई 2024 को फतेहगढ़ जिला जेल में तैनात वार्डर जगदीश प्रसाद की मौत हो गई। जेल के वार्डेरों का आरोप है कि वार्डर जगदीश की तबियत खराब थी। वार्डर ने उपचार के लिए अधीक्षक से अवकाश मांगा। अधीक्षक ने अवकाश नहीं दिया। ड्यूटी से वापस हुए वार्डर की तबियत बिगड़ी और उसकी मौत हो गई। वार्डर की मौत से आक्रोशित साथी वार्डेरो का आरोप लगाया कि अधीक्षक की तानाशाही रवैये से वार्डरो का उत्पीड़न किया जा रहा है। जेल में धनउगाही चरम पर है। अधीक्षक वार्डरो की ड्यूटी जेल में लगाने के बजाए आवास पा लगा देते है। गलती होने पर वार्डरों से वसूली तक करते है। पैसा नहीं देने पर उनका उत्पीड़न किया जाता है। बीते वर्ष लखनऊ जेल में बलिया निवासी वार्डर को जेल के अंदर बंदियों ने पत्थर मारकर घायल कर दिया। जेल प्रशासन के इशारे पर दबाव बनाने के लिए घायल किए गए वार्डर की उपचार के दौरान मौत हो गई। विभाग में चर्चा है कि शासन और मुख्यालय में सेटिंग गेटिंग रखने वाले दोषी अधिकारियों को कार्यवाही करने के बजाए बचा लिया जाता है। फाइलों में कैद हुई जेल की सनसनीखेज घटनाएं..!