राजस्थान में भाजपा की शर्मनाक हार

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राजस्थान में सचिन पायलट के बगैर ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दोनों उपचुनाव जीत लिए। भाजपा की शर्मनाक हार। धरियावद में तीसरे और वल्लभनगर में चौथे स्थान पर रही।कांग्रेस अब 2023 का चुनाव अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही लड़ेगी। लेकिन पायलट के नेतृत्व में भाजपा शासन में कांग्रेस ने उपचुनाव जीते थे।

02 नवंबर को राजस्थान के दो विधानसभा के उपचुनाव के परिणाम भी घोषित हुए। ये दोनों चुनाव कांग्रेस ने पूर्व डिप्टी सीएम और सात वर्ष तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सचिन पायलट के बगैर ही जीत लिए। इन चुनावों की जीत का श्रेय पूरी तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जाता है। गहलोत ने पायलट के बगैर जो रणनीति बनाई उसी का परिणाम रहा कि वल्लभनगर (उदयपुर) में भाजपा के उम्मीदवार हिम्मत सिंह चौथे नंबर पर रहे, जबकि धरियावद (प्रतापगढ़) में भाजपा के खेत सिंह मीणा उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे।

इसमें कोई दो राय नहीं कि दोनों उपचुनावों में कांग्रेस की जीत से राजनीति में सीएम गहलोत का कद और ऊंचा हो गया है। उपचुनाव में जीत दर्ज करवाकर गहलोत ने यह साबित किया है कि राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में वे ही एकमात्र सर्वश्रेष्ठ नेता हैं। सब जानते हैं कि उपचुनाव के प्रचार के दौरान सचिन पायलट महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि के दौरे पर रहे जबकि गहलोत और उनके समर्थक मंत्रियों ने ही दोनों उपचुनावों की कमान संभाली। धरियावद की सीट तो गहलोत ने भाजपा से छीनी है। यहां भाजपा के विधायक गौतम मीणा के निधन के कारण उपचुनाव हुए। लेकिन भाजपा ने दिवंगत विधायक के परिवार के किसी सदस्य को उम्मीदवार बनाने के बजाए खेत सिंह मीणा को उम्मीदवार बनाया।

खेत सिंह मीणा इतने कमजोर साबित हुआ कि वे बीटीपी के उम्मीदवार से भी पीछे रह गए। यहां कांग्रेस के नगराज मीणा ने बड़ी जीत हासिल की है। इसे सीएम अशोक गहलोत की रणनीति ही कहा जाएगा कि उदयपुर के वल्लभनगर से दिवंगत कांग्रेस विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत को उम्मीदवार बनाया। गहलोत ने ऐसा तब किया, जब गजेंद्र सिंह शक्तावत कांग्रेस के उन 18 विधायकों में शामिल थे, जो गत वर्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में एक माह के लिए दिल्ली चले गए, लेकिन गहलोत ने शक्तावत परिवार के प्रभाव और सहानुभूति का फायदा उठाने के लिए प्रीति शक्तावत को ही उम्मीदवार बनाया। अब जब प्रीति शक्तावत विधायक चुन ली गई है,तब यह कहा जा सकता है कि गहलोत ने एक असंतुष्ट विधायक को अपने पक्ष में कर लिया है। धरियावद की सीट भाजपा से छीन कर गहलोत ने एक ओर विधायक का समर्थन प्राप्त कर लिया है। कहा जा सकता है कि अब कांग्रेस की राजनीति में गहलोत ने अपनी स्थिति को और मजबूत कर लिया है।


भाजपा की शर्मनाक हार:-

धरियावद और वल्लभनगर में भाजपा की शर्मनाक हार हुई है। भाजपा के नेता अब भले ही सरकार पर चुनाव में सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का आरोप लगाए, लेकिन उपचुनाव में भाजपा की रणनीति भी विफल रही। धरियावद में दिवंगत विधायक गौतम लाल मीणा के पुत्र को टिकट न देकर भाजपा ने राजनीतिक चूक की। वल्लभनगर में भाजपा को चौथे स्थान पर धकेलने में आरएलपी के उम्मीदवार उदयलाल डांगी की भूमिका रही। भाजपा यह तर्क दे सकती है कि कुल मतदान का प्रतिशत कांग्रेस के खिलाफ है। लेकिन चुनाव में अंक गणित ही काम आती है। भाजपा को आत्ममंथन करने की जरूरत है। भाजपा को तेल, रसोई गैस की मूल्यवृद्धि के बारे में भी सोचना पड़ेगा, जिस तरह से रसोई गैस का सिलेंडर और डीजल पेट्रोल महंगा हुआ है, उससे भी चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए हैं।


गहलोत के नेतृत्व में ही अगला चुनाव:-

विधानसभा के दोनों उपचुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद यह माना जा रहा है कि नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनाव में अशोक गहलोत का नेतृत्व ही रहेगा। गहलोत ने फिलहाल सभी कांग्रेस नेताओं का कद काफी छोटा कर दिया है। गहलोत ने यह दिखाने की कोशिश की कि यदि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है तो कांग्रेस लगातार दूसरी बार सरकार बना सकती है। हालांकि पिछले 25 वर्षों में राजस्थान में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की सरकार बनने की परंपरा रही है। दो उपचुनावों में जीत से जहां गहलोत के समर्थक उत्साहित है वहीं सचिन पायलट के समर्थकों का कहना है कि पायलट के नेतृत्व में उपचुनाव जब जीते गए, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। इसलिए राजस्थान की राजनीति में पायलट के नेतृत्व को नकारा नहीं जा सकता। आम तौर पर उपचुनाव के परिणाम सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में ही रहते हैं। यदि गहलोत इन दोनों उपचुनावों की जीत का श्रेय लेते हैं,तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि जब गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस की हार कैसे हो गई? हारने वालों में सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी शामिल थे।