क्या मोदी और शाह के साथ कदमताल करना चाह रहे हैं शिवराज

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इस वक्त देश में बीजेपी शासित राज्यों में तथाकथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाने की होड़ लगी हुई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसको लेकर पहल शुरू की. इसके बाद देश का सबसे बड़ा राज्य मध्य प्रदेश कहां पीछे रहने वाला था. मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र ने घोषणा की कि उनकी सरकार ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाएगी.इसके बाद तो देश में कथित ‘लव जिहाद’ को लेकर बहस छिड़ गई. योगी आदित्यनाथ ने ‘लव जिहाद’ के खिलाफ अध्यादेश लाकर पहल भी कर दी.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से तथाकथित ‘लव जिहाद’ और गायों को लेकर मंत्रालय बनाने के पीछे की राजनीति की पड़ताल.क्या है मध्य प्रदेश का हिंदुत्व मॉडल और कैसे मोदी और शाह के साथ कदमताल करना चाह रहे हैं शिवराज.

योगी आदित्यनाथ की जो कट्टरवादी हिंदूवादी नेता की छवि है, उसे देखते हुए किसी को बहुत आश्चर्य नहीं हुआ. लेकिन मध्य प्रदेश सरकार की घोषणा से लोगों को थोड़ा आश्चर्य जरूर हुआ. क्योंकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि कट्टरपंथी नेता की नहीं रही है. उन्हें बीजेपी का उदार चेहरा माना जाता है. कहा जाता है कि शिवराज सिंह चौहान पार्टी के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरा के नेता हैं. लेकिन लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने, गौकैबिनेट का गठन करने की घोषणा से उनकी उदार छवि का मुखौटा कहीं पीछे छूट गया है.

शिवराज सिंह चौहान में आए इस बदलाव को लेकर जब मैंने भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार ऋषि पांडेय से पूछा तो वो छूटते ही बोले, राइटविंग सरकार से और क्या उम्मीद कर सकते हैं. पांडेय कहते हैं कि ‘लव जिहाद’ वाला इश्यू अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. बीजेपी शासित राज्य इसके खिलाफ कानून बना रहे हैं. वहीं कांग्रेस शासित राज्य इसके खिलाफ हैं. वो कहते हैं कि यह मुद्दा बीजेपी के एजेंडे में शामिल है, उसी के तहत वो इसको लेकर कानून बना रही है.

पांडेय बताते हैं कि जहां तक बात है गौकैबिनेट की तो यह मध्य प्रदेश के लिए कोई नई बात नहीं है. उमा भारती जब मुख्यमंत्री थीं तो वो ‘पंच ज’ नाम की एक परियोजना लेकर आई थीं. इसमें जल,जंगल, जमीन, जलवायु और जानवर पर जोर था. यह मुख्य रूप से जानवरों पर आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजूबूती देने का एक कार्यक्रम था. इस तरह देखेंगे तो पाएंगे कि बीजेपी अपने एजेंडे से जरा भी भटक नहीं रही है. उसे पता है कि उसके कोर वोटर का ये सब चीजें लुभाती हैं. 

शिवराज में आए बदलाव के सवाल पर मंडला में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विवेक पवार कहते हैं कि यह उपचुनाव में मिली जीत का आत्मविश्वास है कि शिवराज सिंह चौहान लव जिहाद जैसे विवादास्पद मुद्दे पर कानून बनाने की कोशिश कर रहे हैं. 

विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी इस तरह के जितने भी कदम उठा रही है, उसका मकसद भय का दोहन है. विश्लेषकों का कहना है कि इन कानूनों की आड़ में बीजेपी सरकारें अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों में भय पैदा करना चाह रही हैं. और दूसरा लव जिहाद और गाय प्रेम की बात कर बीजेपी अपने कोर वोटरों को एक किए रहना चाहती है. वह उनके अंदर मुसलमानों का भय पैदा किए रखना चाहती है.

मध्य प्रदेश में मुसलमान

जहां तक बात मध्य प्रदेश की है तो वहां के मुसलमान कभी मुखर रहे नहीं. और उनकी आबादी भी वहां बहुत अधिक नहीं है.बीबीसी के पत्रकार और लंबे समय तक मध्य प्रदेश की राजनीति को बहुत करीब से देखने वाले फैसल मोहम्मद अली कहते हैं, ”दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के पतन के बाद मध्य प्रदेश में उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. उसके बाद 2004 में झाबुआ में दंगा हुआ. इसमें कई लोग मारे गए. उसके बाद आए शिवराज सिंह सरकार की सरकार में ईसाइयों पर हमले होते रहे. इसी दौरान अक्तूबर 2008 में बुरहानपुर का दंगा हुआ. इसमें करीब 10 लोग मारे गए थे मरने वालों में हिंदू-मुसलमान दोनों थे. इसमें बीजेपी नेताओं का नाम सामने आया था.” फैसल बताते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने धर्मांतरण को लेकर कानून में बदलाव किया था. अब जब वो दुबारा सत्ता में आए हैं तो वो लव जिहाद और गौ कैबिनेट जैसे मुद्दे उठा रहे हैं.

फैसल कहते हैं कि इस पूरी राजनीतिक का एक पहलू और है. वह यह कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार ने भी गौशाला जैसे वादे किए. यह बात कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल है. वो बताते हैं कि कमल नाथ का नाम 1984 के सिख विरोधी दंगो में सामने आया था. उन्हें भी उसी आयोग ने क्लनीचिट दी थी, जिसने नरेंद्र मोदी को दिया था. फैसल कमल नाथ को साफ्ट हिंदुत्व वाला नेता बताते हैं.  

अचानक आई आक्रमकता

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लंबे समय तक पत्रकारिता करने वाले राकेश दीक्षित कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान में आई आक्रमकता समझ से परे हैं. क्योंकि उनकी सरकार स्थिर है. उसे दूर-दूर तक कोई खतरा नहीं है. चुनाव भी तीन साल बाद होने हैं. ये बात जरूर है कि स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं. लेकिन उसके लिए इस तरह के मुद्दों की जरूरत नहीं होती है. गौ कैबिनेट की बात तो समझ में आती है. क्योंकि इस तरह के मुद्दों का स्थानीय चुनाव में असर पड़ता है.

दीक्षित कहते हैं कि हो सकता है कि शिवराज सिंह चौहान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बीट करना चाहते हों. दीक्षित कहते हैं कि आश्चर्य की बात यह है कि बीजेपी के जितने भी मुख्यमंत्री हैं, उनमें सबसे उदार छवि शिवराज सिंह चौहान की है. वो अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरा के व्यक्ति माने जाते हैं. लेकिन अब उन्हें यह बात समझ में आ गई है कि अगर मोदी-शाह के राज में राजनीति करनी है तो उनकी ही स्टाइल में करनी होगी. इसलिए वो सेक्यूलर और लिबरल छवि को पीछे छोड़कर आगे आ गए हैं. 

दीक्षित एक उदाहरण देते हैं कि फ्रांस के राष्ट्रपति के विरोध में भोपाल में एक रैली निकाली गई थी. वो कहते हैं कि रैली बहुत शांतिपूर्ण थी. लेकिन सरकार ने आरएस माथुर नाम के एक विधायक के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज कर दिए. इससे उनकी आक्रामक हिंदुत्व वाली छवि सामने आ रही है. 

शिवराज में आया बदलाव

वहीं ऋषि पांडेय कहते हैं कि चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में थोड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. अब वो अपनी पुरानी छवि को पीछे छोड़कर आक्रमक दिखना चाह रहे हैं. इसे आप उनके शासन-प्रशासन, गाय, लव जिहाद और राज्य में अवैध कब्जों के खिलाफ चलाए जा रहे फैसलों में देख सकते हैं. 

पांडेय कहते हैं कि इस बार के शिवराज बदले हुए शिवराज हैं. वो अपनी छवि को बदलना चाहते हैं, वो अब मोदी, शाह और योगी आदित्यनाथ की तरह खुद को हार्डलाइनर नेता के रूप में पेश करना चाहते हैं. 

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन और बीजेपी और शिवराज के घटते जनाधार के सवाल पर पांडेय कहते हैं कि यह भी एक कारण हो सकता है. वो कहते हैं कि मालवा इलाके में सबसे अधिक सीटें हैं. लेकिन बीते चुनाव में बीजेपी को वहां से आशानुकूल सफलता नहीं मिली थी. वह इलाका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मजबूत पकड़ वाला रहा है. ऐसे में लव जिहाद जैसा मुद्दा वहां के मतदाताओं को लुभा सकता है और पार्टी की उनपर पकड़ को मजबूत कर सकता है.

एमपी का नया पॉवर सेंटर

राकेश दीक्षित शिवराज की इस आक्रामक छवि के एक दूसरे पहलू की ओर इशारा करते हैं. वो कहते हैं कि ध्य प्रदेश में एक और पॉवर सेंटर उभर रहा है, वो हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया. दीक्षित बताते हैं कि शिवराज को पहले लगता था कि वो सिंधिया को माइनस कर 7-8 सीटें जीतकर अपनी सरकार बचा लेंगे. लेकिन उपचुनाव में सिंधिया के समर्थक काफी संख्या में जीते हैं. इससे केंद्रीय नेतृत्व में यह संदेश गया है कि सिंधिया की साख ग्वालियर-चंबल रीजन में अभी भी बची हुई है. दीक्षित कहते हैं कि इस बात की पूरी संभावना है कि केंद्रीय कैबिनेट के अगले विस्तार में सिंधिया को जगह मिलेगी.   

दीक्षित कहते हैं कि सिंधिया के उभार को देखते हुए भी केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी छवि चमकाने के उद्देश्य से शिवराज सिंह चौहान आक्रामक दिखने की कोशिश कर रहे हों. वो अपनी छवि योगी आदित्यनाथ और मनोहर लाल खट्टर जैसी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

वहीं विवेक पवार कहते हैं कि बीजेपी के नेता अपनी-अपनी परिस्थितियों और अवसर के मुताबिक अपना चेहरा सामने लेकर आते हैं. शिवराज सिंह चौहान इसके सबसे माहिर खिलाड़ी हैं. जरूरत पड़ने पर वो प्रशासन के जरिए लोगों पर डंडा भी चलवा देते हैं और समय आने पर वो घायल लोगों पर मरहम लगाने भी आ जाते हैं. 

मध्य प्रदेश में सांप्रदायिकता

राकेश दीक्षित कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की तुलना में मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक राजनीति का इतिहास ना के बराबर है. मध्य प्रदेश में मुसलमानों की आबादी करीब 6 फीसदी ही है और राज्य की केवल 7-8 सीटों पर ही वो ठीक-ठीक संख्या में हैं. लेकिन ध्रुवीकरण हो जाने पर वो अपनी संख्या का फायदा नहीं उठा पाते हैं. .

दीक्षित कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान सरकार के अवैध अतिक्रमण के खिलाफ जारी अभियान में भी यही आक्रमकता देखने को मिल रही है. इसमें मुसलमानों के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है. 

शिवराज में आए इस बदलाव पर फैसल मोहम्मद अली कहते हैं कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सबसे पुरानी प्रयोगशालाएं हैं. यहां आदिवासियों का बड़े पैमाने पर घर वापसी कराई जाती रही है. धर्मांतरण को लेकर शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने पहले ही कानून बनवाए थे, ताकि धर्मांतरण न हो पाए. और अगर हो भी तो उसके कायदे-कानून काफी सख्त बनाए गए थे. आदिवासी इलाकों में इसाई मिशनरियों के प्रसार को कम करने के लिए ये सभी कदम उठाए गए थे.

फैसल कहते हैं कि इसलिए शिवराज सिंह चौहान में आया यह बदलाव कोई अचानक नहीं है, यह बहुत पहले से ही होता आ रहा है. 

फैसल एक और चीज की ओर इशारा करते हैं. वो कहते हैं, ” मुझे लग रहा है कि अगर हिंदूवादी संगठन श्रीकृष्ण जन्मभूमि वाले मामले को तूल देंगे तो गाय को लेकर आंदोलन भी तेज होगा, क्योंकि गाय को आसानी से श्रीकृष्ण से जोड़ा जा सकता है. और उसका फायदा उठाया जा सकता है.