गाँधी कभी मरते नहीं

141


हथियार किसी व्यक्ति की तो हत्या कर सकते हैं परन्तु, उसके विचारों की नहीं। आज से ठीक 71 साल पहले भी एक हत्या हुई थी। हत्या उन विचारों से प्रेरित होकर की गयी जिनमें सद्भावना, भाईचारे, अहिंसा, सत्य के लिए कोई स्थान नहीं था। स्थान था तो सिर्फ. हिंसा, नफ़रत, साम्प्रदायिकता और असत्य जैसे विभाजनकारी विचारों का। यह गाँधी नाम के एक व्यक्ति की हत्या थी, जो अपने विचारों एवं व्यवहार के बल पर 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विश्व पटल पर एक महानायक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे। जिन अराजक विचारों ने गाँधी जी की हत्या की उनका नामलेवा तक उस वक्त हिंदुस्तान में नहीं था। गाँधी जी का यूँ चले जाना हिंदुस्तान के सामाजिक धरातल में एक बहुत बड़ा शून्य पैदा कर गया। क्या गाँधी सचमुच चले गए, यह ऐसा सवाल है जो वर्तमान समय की जरूरत बन गया है। इस जरूरत को समझने की आवश्यकता है।

मोहनदास से महात्मा गाँधी बनने का सफर जरा भी आसान नहीं था। इस सफर में तिरस्कार था, मुसीबतें थी,पीड़ा थी और साथ में था हिंदुस्तान का भाग्य बदलने वाला व्यक्तित्वद्य इस सफर की असली शुरुआत होती है. दक्षिण अफ्रीका सेद्य व्यक्तिगत अधिकार एवं अपमान से शुरू हुआ ये सफर जल्द ही विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक ष्भारत के स्वतंत्रता संग्राम की जरूरत बनने वाला था। रेल के प्रथम श्रेणी डिब्बे से बाहर फेंके जाने से शुरू हुआ तिरस्कार आगे भी जारी रहा। परन्तु, व्यक्तिगत अपमान के विरुद्ध शुरू हुई ये लड़ाई बड़ा रूप धारण करके दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष का माध्यम बन गयी। दक्षिण अफ्रीका में सफलतापूर्वक संघर्ष के पश्चात् गाँधी जी में अपने देशवासियों को उम्मीद की एक किरण नजर आने लगी। गाँधी जी भी अपने देशवासियों को निराश ना करते हुए सन 1915 में ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों को झेल रहे अपने देश में लौट आते हैं।

अपने राजनैतिक अग्रज वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री गोखले जी की सलाह पर गांधीजी अपने देशवासियों की मुसीबतों को महसूस करने के लिए भारत.भ्रमण पर निकलते हैंद्य भ्रमण के दौरान ही गाँधी जी चम्पारण में किसान अधिकारों के लिए आंदोलन का सफल आगाज करते हैंद्य यहीं से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नई स्फूर्ति का आगाज होता हैद्य इसके बादअसहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक गाँधी जी की सशक्त उपस्थिति के फलस्वरूप जन.क्रांति का दबाव ब्रिटिश साम्राज्य महसूस करने लग गया थाद्य गाँधी जी के इन तमाम आंदोलनों में पंण् नेहरू जी एक ऐसे मजबूत स्तम्भ के रूप में विध्यमान थे।जो जरूरत के वक्त सड़कों पर उतरकर जेल जाने को भी तैयार रहते थे वहींए पत्रकारिता से जुड़े अपने विदेशी मित्रों के जरिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को विश्व पटल पर अभिव्यक्त करवाने में भी सक्षम थे।

गाँधी जी की इस सम्पूर्ण जीवन यात्रा के महत्वपूर्ण अंग थे-सत्य-अहिंसा-विश्वास-सादगी-ब्रह्मचर्य-शाकाहारी रवैया, अपने इन्हीं विचारों के बल पर बदन पर एकमात्र धोती लपेटे हुए गाँधी जी ने तत्कालीन शक्तिशाली साम्राज्य का सूर्य अस्त कर दियाद्य इसी देश में कुछ विभाजनकारी तत्व तब भी मौजूद थेए जो गाँधी जी के विचारों को पसंद नहीं करते थे और आज भी पचा नहीं पा रहे हैंद्य इन साम्प्रदायिक ताकतों की राह में गाँधी जी के सत्य और अहिंसा के विचार सबसे बड़ी बाधा हैद्य गाँधी जी की हत्या के बाद भी उनके विचार इन विभाजनकारी ताकतों की राह में बाधा बनकर खड़े हैं।

आज से 71 साल पहले नाथूराम गोडसे नामक अतिवादी ने गाँधी नामक व्यक्ति की तो हत्या कर दी परन्तुए उनके विचार आज भी अडिग हैंद्य वर्तमान दौर में नाथूराम गोडसे के मंदिर बनवाकर पूजने वाली सत्ता द्वारा गाँधी जी के विचारों पर लगातार प्रहार हो रहे हैंद्य गाँधी के चरखे पर बैठकर सूत कातने का ढोंग रचने वाली सत्ता की शह पर गाँधी के हत्यारे आज भी महिमामंडित होते हैं और सत्ता सिर्फ ष्मन से माफ़ नहीं कर पाऊंगाष् जैसे कायरनों शब्दों के जरिए अपना असली चरित्र दिखा रही हैद्य आज भी हर पल गाँधी को मरने की कोशिशें जारी हैद्यइसलिए आवश्यकता है कि गाँधी जी के विचारों में हमारा विश्वास कायम रहेद्य यही राष्ट्रपिता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

हमें है उम्मीद हमेशा गाँधी,मूल्य स्थापित होंगेए वाणी में वेग लौटेगा।
सत्य, अहिंसा,भाईचारे का ठान संकल्प,लेकर रूप तुम्हारा, कोई तो गाँधी लौटेगा।।