चुनाव में हार समर्थक सड़क पर…

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जब चुनाव में हार हो जाती है, तब पगलाए उतर आते हैं। ऐसे समर्थकों का मकसद सिर्फ सच को झुठलाना होता है।अमरीका में चुनाव हारे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक सड़कों पर उतरे। संसद में हिंसक वारदातें।भारत में दिल्ली से लगी सीमाओं पर कुछ किसानों ने टे्रक्टर रैली निकाली। अनेक किसान 43 दिनों से धरने पर बैठे हैं।

एस0 पी0 मित्तल

7 जनवरी को अमरीका में रिपब्लिकन पार्टी के कार्यकर्ता चाहते थे कि संसद में डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन की जीत का ऐलान न हो। इसके लिए चुनाव में पराजित उम्मीदवार और निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ने अपने हजारों समर्थकों को अमरीका की राजधानी वाशिंगटन की सड़कों पर उतार दिया। खुद ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव में धांधली हुई है।

इधर ट्रंप अपने समर्थकों के साथ सड़क पर थे, उधर समर्थकों का एक गुट संसद में घुस गया। समर्थकों ने संसद को न केवल बाधित किया, बल्कि हिंसक वारदातें भी की। लेकिन इसके बावजूद भी संसद में जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने पर मुहर लगा दी गई। अब आगामी 20 जनवरी को डेमोके्रट पार्टी के बाइडन अमरीका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।

रिपब्लिकन पार्टी की ओर से दो बार राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यूबुश ने हिंसक वारदातों को रिपब्लिकन पार्टी के कार्यकर्ताओं का पागलपन कहा है। उन्होंने कहा कि हमें चुनाव में मिली हार को स्वीकारना चाहिए। सब जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप शुरू से ही राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पर आपत्तियां जता रहे हैं। अमरीका की जनता ने भले ही कम अंतर से ट्रंप को हराया हो, लेकिन यह सच है कि अब चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी की हार हो गई है, लेकिन ट्रंप के समर्थक सच को झुठलाना चाहते हैं, इसलिए सड़कों पर उतर आए हैं। ऐसे समर्थकों ने संसद में हिंसक वारदातें करने से भी परहेज नहीं किया।

अमरीका के लोकतंत्र को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र माना जाता है। यदि अमरीका में ऐसी स्थिति हैं जो अन्य देशों के लोकतंत्र के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। अमरीका में कानून की स्थिति बहुत मजबूत हैं। चाहे कोई किसी भी विचारधारा का हो, लेकिन हर अमरीकी नागरिक अपने देश के कानून का पालन करता है। लेकिन 7 जनवरी को इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि वाशिंगटन पुलिस के कमजोर पडऩे के बाद अमरीका के नेशनल गाडर्स को बुलाना पड़ा।

ट्रंप समर्थकों को अब इस सच्चाई को स्वीकार ना चाहिए कि चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की हार हो गई है और डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडन अमरीका के राष्ट्रपति बन रहे हैं। यदि अमरीका में राजनीतिक अस्थिरता होती है तो इसका असर दुनियाभर में पड़ेगा। अमरीका की अस्थिरता से ज्यादा खुशी चीन को होगी और चीन के तानाशाह रुख के बारे में पूरी दुनिया जानती है।


भारत में ट्रेक्टर रैली:-

इधर भारत में देश की राजधानी दिल्ली को जोड़ने वाली राष्ट्रीय राज मार्गों पर 7 जनवरी को कुछ किसानों ने ट्रेक्टर रैली निकाली। किसानों के प्रतिनिधियों का कहना है कि यह टेलर है, असली फिल्म 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में देखने को मिलेगी। किसानों ने घोषणा कर रखी है कि 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रेक्टर परेड होगी।

अनेक किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 43 दिनों से धरना दे रहे हैं। किसान चाहते हैं कि उन तीन कृषि कानूनों को रद्द किया जाए, जिन्हें संसद में स्वीकृत किया गया है। इन कानूनों को लेकर किसानों के प्रतिनिधियों और सरकार के मंत्रियों के बीच सात दौर की बातचीत हो चुकी है। कई मुद्दों पर सहमति भी बनी है, लेकिन किसानों के प्रतिनिधियों की जिद है कि कानूनों को रद्द किया जाए।

जबकि देश के अनेक किसान संगठन कृषि कानूनों को आम किसान के हित में बता रहे हैं। किसानों के आंदोलन को उन राजनीतिक दलों का खुला समर्थन है, जो वर्ष 2014 व 2019 में लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं। इनमें कांग्रेस, वामदल, सपा आदि शामिल हैं। कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो स्वयं एक दिवसीय धरना भी दे चुके हैं, जबकि दूसरे कांग्रेस शासित प्रदेश पंजाब की धरना स्थल पर भीड़ जुटाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।

कृषि कानूनों को लेकर कुछ किसानों की अपनी जिद है, लेकिन कानूनों को लोकतांत्रिक तरीके से मंजूर किया गया है। देश में 545 लोकसभा सांसदों में से अकेले भाजपा के 303 सांसद हैँ और समर्थक दलों के सांसदों की संख्या 50 है। यानि 545 में 350 से भी ज्यादा सांसद कृषि कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन फिर भी कुछ राजनीतिक दल कानूनों का विरोध कर रहे हैं।