कर्मों की आवाज़…..

204


शब्दों से भी ऊँची होती है….
“दूसरों को नसीहत देना
तथा आलोचना करना
सबसे आसान काम है….!
सबसे मुश्किल काम है
चुप रहना और
आलोचना सुनना….”
यह आवश्यक नहीं कि
हर लड़ाई जीती ही जाए….
आवश्यक तो यह है कि
हर हार से कुछ न कुछ सीखा जाए….!!