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धरती की बदहाली में विश्व के चंद मालदारों का बड़ा हाथ

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धरती की बदहाली में विश्व के चंद मालदारों का बड़ा हाथ

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 समीना खान

विश्व में लगभग 125 अरबपति हस्तियां हैं ये 125 अरबपति हस्तियां हर साल 39 करोड़ 30 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। इन लोगों द्वारा निजी जेट और नौकाओं का नियमित उपयोग एक औसत व्यक्ति के उपयोग से हज़ारों गुना अधिक होता है। कार्बन उत्सर्जन की ये मात्रा पूरे फ्रांस के उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बराबर है। प्रत्येक अरबपति औसतन 3 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है, जबकि एक आम आदमी इसकी तुलना में लाखों गुना कम यानी 2.76 टन ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन का ज़िम्मेदार है।

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को आसान बनाने वाली वाशिंग मशीन उस समय दहशत का एहसास कराती है, जब इस तरह की रिपोर्ट सामने आती हैं कि एक टी शर्ट अपने निर्माण के समय से लेकर अपने जीवन काल में जितना कार्बन उत्पन्न करती है, उसमें से 75 फीसदी उत्सर्जन उसके मशीन में धोने से होता है। ऑफिस में काम करते समय भी प्रिंटर के न प्रयोग किये जाने की नसीहत के पीछे पर्यावरण की रक्षा जैसा मुद्दा सामने आ जाता है। एक अरसे तक केवल पराली जलाने वालों पर भी इस पर्यावरण प्रदूषण का ठीकरा फोड़ा गया है। इनसे जुड़े शोध और उनके नतीजे हानिकारक होने के साथ अफसोसनाक भी हैं। इसके बावजूद ये खतरनाक उत्सर्जन दुनिया के चंद दौलतमंद लोगों द्वारा क़ुदरत और इंसानियत को पहुंचाए जाने वाले नुकसान के आगे बिलकुल सूक्ष्म साबित होते हैं। इस बात का खुलासा अध्यन से होता है।

वैश्विक स्तर पर गरीबी से सम्बंधित मामलों की पड़ताल करने वाले चैरिटी ग्रुप ऑक्सफैम ने इस सोमवार को ‘कार्बन बिलियनेयर्स: द इन्वेस्टमेंट एमिशन्स ऑफ द वर्ल्ड्स रिचेस्ट पीपल’ शीर्षक से एक नई रिपोर्ट जारी की है। दुनिया के सबसे अमीर लोग बड़ी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि आम आदमी के मुक़ाबले इस धरती पर पैदा होने वाले 50 से 70 फीसद कार्बन के लिए दुनिया के चंद रईस ज़िम्मेदार हैं।

आम इंसानों की तुलना में अरबपति लाखों गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का कारण बनते हैं। अरबपतियों की जीवन शैली पर एक नई रिपोर्ट हैरतअंगेज़ खुलासा करती है। ये खुलासा मुट्ठीभर अरबपतियों को क़ुदरत के साथ जुर्म किये जाने की वह सच्चाई पेश करता है जिसका खामियाज़ा सारी धरती को भुगतना पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार औसत व्यक्ति की तुलना में एक अरबपति लाखों गुना अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का ज़िम्मेदार है। मिस्र के शर्म अल-शेख में 6 से 18 नवम्बर तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। विश्वभर में हो रही मौसम संबंधी आपदाओं, यूक्रेन में युद्ध के कारण उपजे ऊर्जा संकट और उसके वैज्ञानिक तथ्यों व चेतावनियों पर बात की जाएगी। इसी दौरान विभिन्न देशों द्वारा कार्बन उत्सर्जन को मापने के अलावा हर एक देश का समान मापदंडों पर आंकलन किये जाने पर भी विचार किया जायेगा।

प्रदूषण एवं उद्योग दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां उद्योग होगा, वहां प्रदूषण तो होगा ही। उद्योगों की स्थापना स्वयं में एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। प्रत्येक देश में उद्योग अर्थव्यवस्था के मूल आधार होते हैं। यह जीवन की सुख-सुविधाओं, रहन-सहन, शिक्षा- चिकित्सा से सीधे जुड़ा हुआ है। इन सुविधाओं की खातिर मनुष्य नित नए वैज्ञानिक आविष्कारों एवं नए उद्योग-धंधों को बढ़ाने में जुटा हुआ है। औद्योगीकरण ऐसा ही एक चरण है, जिससे देश को आत्मनिर्भरता मिलती है और व्यक्तियों में समृद्धि की भावना को जागृत करती है। भारत इसका अपवाद नहीं है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमें कुछ नहीं दिया। कुशल कारीगरों की मेहनत ने भी अपने देश को उन्नति के चरण पर नहीं पहुंचाया। सन् 1947 में आजाद देश ने इस दिशा में सोचा और अपने देश की क्रमबद्ध प्रगति के लिए चरणबद्ध पंचवर्षीय योजनाएं बनाई। द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में देश में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ, जो निरंतर बढ़ता ही रहा (आर्थिक मंदी के कारण इसमें शिथिलता भी आई)। एक सर्वेक्षण के अनुसार सत्रह समूहों में विभाजित हजारों बड़े उद्योग (सही संख्या उपलब्ध नहीं) और 31 लाख लघु एवं मध्यम उद्योग वर्तमान में देश में कार्यरत हैं।

शोधकर्ताओं की पड़ताल के नतीजे में इस अध्ययन के ज़रिए जो खुलासा होता है वह चंद बिलेनियर को क़ुदरत को तबाह करने का ज़िम्मेदार ठहरता है। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के सबसे अमीर लोग औसत व्यक्ति की तुलना में लाखों गुना अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर यूएन अर्थ समिट के दौरान 1992 में ब्राजील के रियो डी जैनेरियो में जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ्रेमवर्क संधि पारित की गई। इसके लिए समन्वय संस्था – UNFCCC स्थापित हुई। UNFCCC का मक़सद ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती लाना है। ये मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरनाक दुष्प्रभावों की रोकथाम की ज़िमेदारी उठाता है। आज जब धरती ग्रीन हॉउस गैसेस के प्रभाव से एक बदतरीन स्थिति में पहुंच चुकी है, ऐसे में ऑक्सफेम की ये रिपोर्ट और इन मुद्दों को भी उठाये जाने की पुरज़ोर वकालत करती है, साथ ही इनपर नकेल कसे जाने की दिशा में भी ध्यान खींचती है।

एक समाचार विज्ञप्ति में ऑक्सफैम के जलवायु परिवर्तन के प्रमुख नेफकोट डेबी ने बताया कि अरबपतियों की जीवन शैली से होने वाला उत्सर्जन औसत व्यक्ति की तुलना में हजारों गुना अधिक है। डेबी अपनी बात का खुलासा करते हुए कहते हैं कि इन लोगों द्वारा निजी जेट और नौकाओं का नियमित उपयोग एक औसत व्यक्ति के उपयोग से हज़ारों गुना अधिक होता है जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है। डेबी आगे कहते हैं अगर हम इन लोगों द्वारा किये जाने वाले निवेश की तुलना इनके द्वारा किये गए उत्सर्जन से करें तो पाते है कि इस दशा में भी कार्बन उत्सर्जन लाखों गुना अधिक है।

कार्बन उत्सर्जन किसी एक संस्था या व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले  कुल कार्बन उत्सर्जन की मात्रा होती है। यह उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में होता है। ग्रीन हाउस गैसेस के प्रतिव्यक्ति अथवा प्रति औद्योगिक इकाई उत्सर्जन की मात्रा ही उस व्यक्ति अथवा औद्योगिक इकाई का कार्बन फुटप्रिंट कहलाता है। इसे कार्बन डाइऑक्साइड के ग्राम उत्सर्जन में मापते हैं। इसका आंकलन लाइफ साइकल असेसमेंट विधि से करते हैं। इसके लिए व्यक्ति अथवा औद्योगिक इकाई द्वारा वातावरण में उत्सर्जित की गई कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों की कुल मात्रा को जोड़कर किया जाता है।

ये रिपोर्ट खुलासा करती है कि महज़ 125 अरबपति हस्तियां हर साल 39 करोड़ 30 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। कार्बन उत्सर्जन की ये मात्रा पूरे फ्रांस के उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बराबर है। रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के 125 अरबपति सामूहिक रूप से 183 कंपनियों में 24 ख़रब डॉलर के मालिक हैं, जो भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन करती हैं। ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के मुताबिक़ 2020 में फ्रांस का कुल कार्बन उत्सर्जन 384791530 टन था जिसमे लैंड यूज़, लैंड यूज़ चेंजेज़, एंड फॉरेस्ट्री शामिल है।

यूएनएफसीसीसी सीओपी 27 जलवायु सम्मेलन में चर्चा का सबसे प्रमुख मुद्दा ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जन को तत्काल कम करना है। ऑक्सफेम की ये रिपोर्ट बताती है कि इन अरबपतियों द्वारा किए गए निवेश के आधार पर, प्रत्येक अरबपति औसतन 3 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करता है। जबकि एक आम आदमी इसकी तुलना में लाखों गुना कम यानी 2.76 टन ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन का ज़िम्मेदार है। इस पड़ताल से ये भी पता चलता है कि फॉसिल फ्यूल्स और सीमेंट जैसे प्रदूषणकारी उद्योगों में अरबों का निवेश एस एंड पी 500 ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज़ के लिए औसत से दोगुना है। दुनिया के कई सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली कॉर्पोरेशंस मेंअरबपतियों की बड़ी हिस्सेदारी है। यही कारण है कि इससे उन्हें इन कंपनियों के संचालन के तरीके को प्रभावित करने की ताक़त मिलती है। COP27 सम्मेलन पर ज़ोर देते हुए यूएन महासचिव का कहना है कि मौजूदा समस्याओं के स्तर के अनुरूप जलवायु समाधानों पर सहमति बनानी होगी। मगर क्या ये मुमकिन है…?

विश्व के चंद अरबपतियों द्वारा किये जाने वाले नुकसान का खामियाज़ा न सिर्फ इस धरती माँ को उठाना पड़ता है बल्कि सारी मानवता इसकी कीमत अदा करने को मजबूर है। ऐसे में सरकारों के लिए ज़रूरी हो जाता है कि इन हस्तियों को  जवाबदेह ठहराना चाहिए। ऐसे क़ानूनों पर भी विचार किये जाने की ज़रूरत है जहां कॉर्पोरेशन और निवेशकों को इस कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए मजबूर किया जा सके। इस कार्बन उत्सर्जन को काबू में करने के लिए सम्बंधित टैक्स लगाकर भी कहीं न कहीं इस पर नकेल कसना आसान होगा साथ ही बड़े पैमाने पर आम जनता को जागरूक करना भी ज़रूरी है। ये तभी मुमकिन है जब दौलतमंदों द्वारा फैली इस तबाही के विषय पर बेबाक लिखने और उसे आमजन तक पहुंचाने का भी फ़र्ज़ ईमानदारी से निभाया जाए। फिलहाल आंकड़े और रिपोर्ट सामने है और सम्बंधित जलवायु परिवर्तन के बचाव में बिगुल बजाने वाले देशों का गुट भी सक्रिय। अब देखना ये होगा कि  इन मुद्दों पर किस प्रकार से एक्शन लिया जाता है।

आज सिर्फ भारत में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में उद्योगों की संख्या लाखों में है और इसमें कार्यरत् लोगों की संख्या करोड़ों में होगी। अलग-अलग उद्योगों से निकलने वाले उत्सर्जन विभिन्न प्रकार के रोग फैलाते हैं और उसमें न जाने कितने लोगों के जीवन का अंत हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1992 द्वारा में प्रसारित (Health and Environment) संबंधी रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे विश्व में एक वर्ष में लगभग 3.27 करोड़ औद्योगिक क्षेत्र की दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें 1,46,000 व्यक्ति मृत्यु के शिकार हो जाते हैं, यह भी अनुमान लगाया गया है कि श्रमिक अन्य रोगों से औद्योगिक कारीगर ग्रस्त होते हैं।

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