विवादों में आदिपुरुष

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विवादों में आदिपुरुष
विवादों में आदिपुरुष
विनोद यादव
विनोद यादव


आदिपुरुष फिल्म में टपोरियों और सड़क छाप भाषा का प्रयोग कर जनभावनाओं को खंडित करने का काम किया। मनोज मुतंशिर शुक्ला ने कुछ लोगों को गलतफहमी है वो अच्छाई के ठेकेदार हैं जो कुछ लिख बोल देगें स्वीकार होगा तो ये कौन सी भाषा हैं… विवादों में आदिपुरुष

आदिपुरुष सिनेमाघरों में भलें दस्तक दे चुकी हो मगर इससे ज्यादा इसका विरोध भी हो रहा हैं। तमाम समाजिक न्याय संविधान पसंद लोगों ने इस फिल्म की भरसक आलोचना की हैं। इस फिल्म पर लोगों से मिला-जुला रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है। लेकिन जिस चीज़ ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है वो हैं फिल्म में इस्तेमाल किए गए डायलॉग जो के एक सड़क छाप टपोरियों की भाषा से मेल जोल खाते दिख रहें हैं । खासतौर पर वो डायलॉग जो हनुमान जी द्वारा बोले गए हैं. अब राम और सीता से जुड़ी बातें हो और हनुमान का नाम न आए ऐसा कैसे हो सकता है भला। लेकिन पूराने रामायण को जिस तरह से सभी धार्मिक लोगों ने बढ़चढ़ देखा और जाना था उससे कहीं इतर रहा इस फिल्म का डायलॉग और हनुमान जी का जो स्वरूप हैं उसके साथ किए गयें छेडछाड से लोगों में जन आक्रोश हैं। हमें तो लगता हैं नए दौर में नए तरीके से क्रोध और ताकत प्रदर्शन को दर्शाने की कोशिश की गयी हैं ।

यह सुविचारित एजेंडे पर किया गया काम है। और हो क्यूं न कहीं न कहीं आने वाले कल में सरा दारोमदार उसी पर जाकर टिकेगा। आदिपुरुष को लेकर माहौल भलें स्वर्ण हिंदुओं की आस्था को ठेस न पहुची हो लेकिन जो दलित पिछडे़ हिंदू हैं ओ आज इस फिल्म पर जमकर सोशलमीडिया में लिख भी रहें है और बोल भी रहें हैं । पठान फिल्म में दीपिका पादुकोण के कपडे़ के रंग पर उबाल खाने वाले हिंदू हदय सम्राटों तो मानों सन्नाटा खामोश हो गयें हो। कुछ देखे ही न हो खैर हमारी जनरेशन ने रामायण,महाभारत,ॐ नमः शिवाय जैसे सीरियल देखे है और इन ग्रंथों के बारे में भी जानकारी है। तो आदिपुरुष से कनेक्ट नहीं हो पाना लाज़मी था।लेकिन ये इंस्टाग्राम और स्नैपचैट वाली पीढ़ी भी इस फ़िल्म का विरोध कर रही है। ये सुखद बदलाव है…और शायद उसके पीछे बड़ा कारण है लॉकडाउन में रामानंद सागर जी वाली रामायण और बी.आर चोपड़ा की महाभारत का टीवी पर पुनः प्रसारण…जिन लोगों ने पहले वाली रामायण देखी है। उनको इस तरह की वाहियात मूवी दिखा दो तो सिरदर्द होना लाजमी है।आप विशुद्ध बिज़नेस के उद्देश्य से कुछ भी परोस देंगे और हम लोग आपको स्वीकार कर लेंगे तो ये बहुत बड़ी बेवकूफ़ी है।

कपड़ा तेरे बाप का ,तेले तेरे बाप का जलेगी भी तेरे बाप की
तेरी बुआ का बगीचा हैं क्या जो हवा खाने चला आया
जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे उनकी लंका लगा देगें
आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहें हैं
मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा हैं।

विवादों में आदिपुरुष

राम के नाम पर जहाँ देश की सरकार तक बदल डाली हो। जनता मंदिर और मस्जिद के नाम पर सदियों से ठगी जा रहीं हो शायद ओ जब धीरे-धीरे जागरूकता की तरफ बढे़गी। तो उसे भी सच और गलत का आकलन कर अपनी प्रतिक्रिया तो जरुर देगी। क्या आप सोचते हैं आज के समय में हिमालय और चांद को स्पर्श करने वाली जमात सिर्फ इस बात को लेकर फिल्म देखेगी की वह आस्था की चाशनी में डूबोकर बनी हैं। शायद यह आपकी गलत फहमी होगी क्या आप उसी जनता से आप ये अपेक्षा करेंगे कि वो अपनी मेहनत का पैसा यूँ ही फेंक आएंगे।तो मुझे नहीं लगता कि आम जनता इतनी मूर्ख है। मनोज मुन्तशिर शुक्ला आप बेशक इस फिल्म को लाकर बहुत बडे़ सनातनी घोषित करना चाह रहें हो लेकिन बहुजन विचारधारा के लोगों के गले आप उतर नहीं रहें जिनकी पूरे देश में सबसे बडी़ आबादी हैं।

आदिपुरुष फिल्म ने साबित कर दिया है कि भारत महापुरुषों का देश है।अब फिल्मों में हीरोइनों के कपड़ों से आहत होने वाला हमारा समाज परिपक्व हो गया है। ऐसा नहीं है कि आहत नहीं हो रहा है, हो रहा है लेकिन आहत होने के नाम पर फिल्म के पोस्टर नहीं फाड़े जा रहें है पुतला नहीं फूका जा रहा हैं छिटपुट घटनाओं और बयानों को छोड़ दीजिए तो व्यापक तौर पर लोग एतराज़ ही जता रहे हैं। इस से ज़्यादा नाराज़ तो नेपाल वाले हो गए जिनको राम के रिस्ते से बड़ा करीब से देखा जाता था।उस नेपाल ने इस फ़िल्म को बैन कर दिया। तथाकथित धर्म के ठेकेदारों एंव प्रधानमंत्री को तुरंत विदेश मंत्री से वार्ता कर जयशंकर प्रसाद जी को काठमांडू रवाना कर देना चाहिए था और वहां फिल्म चालू करवाना चाहिए। लगता है कि अगला चुनाव शिक्षा ,चिकित्सा ,रोजगार ,बढ़ती महगाई ,ब्लात्कार ,हत्या लूट जैसे मुद्दों को छोडकर सिर्फ फिल्मों को लेकर होने वाला है।एक पुरानी कहावत है, ऊंची दुकान-फीका पकवान। लेकिन ये पकवान फीका नहीं बल्कि सड़ा हुआ है।एक विकृत सोच भरी मानसिकता का परिणाम है। सोचा था बाहुबली की तरह भव्य दमदार फिल्म देखने को मिलेगी, जो लंबे समय तक याद रहेगी। पर खोदा पहाड़ निकली छिपकलियां।शुरुआत ही चमगादड़ों से हुयी, डार्क बैकग्राउंड और त्रिआयामी दृश्य। इंतजार करते रहे भव्य दृश्य, दमदार संवादों और जबरदस्त युद्ध कलाओं का, पर सब बेकार। हाथ आयी निराशा, गुस्सा और जुगुप्सा।ऐसे घटिया दृश्य, बैकग्राउंड, संवाद, पहनावा और तथ्य विहीन फिल्म देखकर लगी।

अमरत्व पाने के लिए तपस्यारत रावण को ब्रम्हा जी वरदान देते हैं कि न जल में न थल में, न दिन में न रात में, न देव से न दानव/दैत्य से और न किसी हथियार से रावण का वध हो सकेगा। जबकि ये वरदान प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को मिला था और कहानियों में भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर उसका वध किया था।सीताहरण के बाद शिवभक्त रावण द्वारा रुद्राक्ष तोड़ना, पुष्पक विमान की जगह चमगादड़ यान से लंका जाना, राम व लक्ष्मण द्वारा हिरण को अपनी आंखों से देखा जाना, तथ्यों को पूरी तरह समाप्त कर देना है। सोने की चमकती लंका को चारकोल से पुती हुयी लंका बना दिया गया है। लड़ाई का मैदान किले से बाहर की जगह अंदर दिखाया जाना पूरी तरह मूर्खतापूर्ण है। बाकी कसर, लंका लगा देंगे, बाप का तेल जैसे घटिया संवाद लेकर मनोज मुतंशिर ने जो टपोरियों की भाषा डाली उससे जनभावनाए आहत तो हुई ही वहीं सवाल भी खड़ा करना चालू कर दिए सीधे शब्दों में कहें तो कुल मिलाकर ये फिल्म रामायण के नाम पर एक भद्दा मजाक भर है और इसे न देखना ही इस मजाक की सजा है।

खैर लोगों की आस्था और विश्वास पर हम अपना अधिकार नहीं जमा सकते हम तो सिर्फ शोषित वंचित पीडि़त और हाशिए पर रहने वाले समाज के लोगों को सजग करना चाहते हैं कहीं ओ भी जनभावनाओं के शिकार न हो जाए और टपोरियों वाली भाषा अपने बच्चों के संस्कार में डालने लगें वहीं आदिपुरुष’ के 1 मिनट और 46 सेकेंड के टीजर में सबसे ज्यादा विवाद हनुमान के अंग वस्त्र (कपड़ों) को लेकर हो रहा है। कहा जा रहा है कि फिल्म में हनुमान का किरदार निभाने वाले एक्टर को चमड़े के वस्त्र पहनाए गए हैं। ये देखकर मध्य प्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा भड़क उठे थे। उन्होंने मेकर्स को चेतावनी देते हुए कहा था कि इस सीन को फिल्म से हटा दें, नहीं तो वे कानूनी कार्रवाई करेंगे ऐसा नहीं कि सिर्फ एक मंत्री ने ये बात कहीं सैकड़ों संतों ने भी इस का विरोध किया वहीं समाजिक न्याय पसंद लोगों ने तो जमकर इसकी आलोचना की और कुछ ने तो ये तक कहा मनोज मुंतज़िर की जगह कोई अन्य तबके के लोग लिखे होते तो अबतक तथाकथित लोग जगह जगह विरोध प्रदर्शन ही नहीं करते बल्कि उसके गिरफ्तारी की भी मांग कर दिए होते। हमें लग रहा हैं समाज फूहड़ता बेहुदिया को पसंद कर रहा है यही कारण हैं कि आस्था की अस्थियों का विसर्जन लगातार हो रहा है और लोग खामोश होकर देख रहें हैं।

मसलन मैं शांति से अपना काम करता हूं और अनावश्यक ज्ञान और बहस से बहुत दूर रहता हूं। मैं फिल्मों की समीक्षा का दावा नहीं करता और ना ही कोई विख्यात कलाकार, निर्माता निर्देशक हूं, हां लिख इस लिए रहा हूँ कि जब लोग कहेगे और सवाल करेगें जब समाज में इस तरह की चीजें परोसी जा रहीं थी तो तुम कहां थें तो उन्हें हमें बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी हमने खामोश रहकर सब कुछ देखा बोला और लिखा कुछ नहीं। कुछ बहुत थोड़ा काम जब जब मेरे हिस्से आया तो ईमानदारी से करने भर का प्रयास करता रहा हूं।मेरा मानना हैं “हर भारतीय की आदिपुरुष” हैं तो हर भारतीय के आराध्य आदिपुरुष होता तो बेहतर था। किसी ज़माने में हम फ़िल्म के संवाद और गीत सुनकर अपनी हिंदी सुधारने की कोशिश करते थे।कौन हैं ये लोग जो एक 600 करोड़ की फ़िल्म का पोस्टर भी ठीक से नहीं लिख पाते।बहरहाल आदिपुरुष आदिमानव की याद दिलाता है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की नहीं।

मनोज मुंतशिर शुक्ला ने पूरे रामायण को इस तरह से नाटकीय हास्यास्पद ढंग से लिखा और आलतु फालतू टपोरी सड़क छाप अंदाज के डॉयलॉग से सजाया कि सनातन संस्कृति पर आस्था रखने वाला व्यक्ति सिहर ही उठे।यह तय है कि आपके बच्चे इस रामायण को देखने के बाद रामायण के सभी चरित्र को मिथक मानने लगेंगे। फ़िल्म के उलजलूल डायलॉगबाज़ी की जानकारी से सोशल मीडिया अटा पड़ा है सो उसे दोहराने का कोई औचित्य नहीं है। जिन्होंने फ़िल्म देख ली है उनको फ़िल्म की कथानक सम्बंधित त्रुटियां बताने की आवश्यकता नहीं और जिन्होंने नहीं देखी उनको बताने का प्रयास करेंगे तो जगह कम पड़ जाएगी।जान पड़ता है लेखक, निर्देशक, निर्माता और कलाकारों में से किसी ने मनोयोग से रामायण या रामचरितमानस पढ़ने में समय नहीं लगाया है। पढ़ी है तो जतन से समझने का प्रयास नहीं किया।आत्मसात करना तो बहुत दूर की बात है। आदिपुरुष से बेहतर तो हमारें महापुरुष हैं आखिर इस मुद्दे पर बहस क्यूं जो खुद कविता चोरी का आरोप झेल रहा हो महापुरूषों को पढ़ने वाली जमात आदिपुरुष के पीछें क्यूं परेशान हैं ये समझ में नहीं आता ,आज के वर्तमान काल में तथ्यों और मुद्दों से भटकाव के अनगिनत मार्ग आपकों मिल जाएगें।

इसलिए जरूरी हैं कि आप तार्किक बने रहें ,चेतना से लैस रहिए मानवतावादी दृष्टिकोण रखतें हुए सजग और जागरूक बने रहें। हमें जरूरत किसी काल्पनिक पात्र कहानियों से ज्यादा पेरियार ,फूले ,बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ,डा़ अब्दुल कलाम , राम स्वरूप वर्मा ,छात्र पति शिवाजी ,वीरांगना अवंती बाई लोधी, समाजिक क्रांति के महानायक संतराम बीए जी ,माता रमाबाई अंबेडकर , जाईबाई चौधरी ,झलकारी बाई, ऊधादेवी पासी ,बिरसा मुंडा,पेरियार ईबी रामास्वामी नायकर ,मानयवर काशीराम ,डा़ राम मनोहर लोहिया ,अहिल्याबाई होलकर , बीपी मंडल , शहीदे आजम भगत सिंह ,सुखदेव ,राजेंद्र लहडी ,सरदार रोशन सिह ,असफाक उल्ला खां , चंद्र शेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों के जब हम विचारों को पढ़ेंगें तो आदि क्या अनादि पुरुष से बेहर हमारें महापुरुषों के द्वारा लडी़ गयी लडाईयां तो पढ़ने को मिलेगी ही और हाशिए पर रहने वाले समाज में अमूलचूल परिवर्तन के मार्ग को भी दिखाया हैं । हम जितना भटकाव के रास्ते पर चलगे मार्ग उतना ही कठिन होता जाएगें हमें इस बात का हमेशा अंदेशा रहना चाहिए।

हम सभी के लिए नहीं कह रहें हैं बजार में तरह तरह के तेल बिक रहें रहें हैं जिसकों जो पसंद आए आपने बालों में लगाकर चंपी करें हम तो सिर्फ उन्हें आगाह कर रहें हैं जो सरसों की खेती करके खुद कड़वा तेल (सरसों ) का न लगाकर महकने वाले तेल के पीछे भग रहें हैं तात्पर्य हैं हम मिट्टी से जुडें हुए लोग हैं हमें उनको पढ़ना हैं जिन्होंने हमें सिंचित किया। किसी की भावना आहत हो मैं ऐसा नहीं चाहता नाटक ,नौटंकी , फिल्म ,और कवि सम्मेलन सिर्फ कुछ छडों के लिए लिए अच्छे हो सकते हैं मनोरंजन की दृष्टि से मगर जिस दिन शोषित ,वंचित ,पीडित ,दलित ,पिछडे़ ,आदिवासी तबके के लोग ऐसे महापुरुषों के बारें में किताबें खरीदकर पढ़ लेगें तो उन्हें इस बेवजह की बहस में पड़ने की जरूरत नहीं पडेगी। लिखने का बेशक असर न पड़ता हो लेकिन पढ़ने का असर खुद व खुद आपके चेहरे पर दिखाई देने लगता हैं । इसीलिए कहते हैं सजग रहें जागरूक बनें और मानवतावादी दृष्टिकोण रखतें हुए चेतना से लैस रहिए मनोज मुतंशिर नहीं कोई भी आपके कदम को पीछे नहीं खीच सकता हैं। विवादों में आदिपुरुष