आख़िर सबकी नज़र कांग्रेस पर क्यों..?

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आख़िर सबकी नज़र कांग्रेस पर क्यों..?
आख़िर सबकी नज़र कांग्रेस पर क्यों..?
राजू यादव
राजू यादव

कांग्रेस को दधीचि बनने के लिए मजबूर कर हैं क्षेत्रीय दल। कांग्रेस के उभार से क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व का खतरा लग रहा है । मोदी लहर कमजोर होने पर क्षेत्रीय दल झुकेंगे कांग्रेस के सामने। यूपी में कांग्रेस की बैशाखी बनने के लिए मचल रही हैं क्षेत्रीय दल...! आख़िर सबकी नज़र कांग्रेस पर क्यों..?

पा और बसपा दोनों को 2024 के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने का पूरा भरोसा है और उन्हें लगता है कि बीजेपी सत्ता विरोधी लहर के कारण जमीन खो देगी। भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी संख्या में सुधार करने के लिए काम कर रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व में अब बृजलाल खाबरी से लेकर नकुल दुबे और नसीमुद्दीन सिद्दीकी तक बसपा से चुने गए नेता शामिल हैं, ये सभी दलितों को कांग्रेस के करीब लाने के लिए मेहनत कर रहे हैं।

राहुल गांधी की भारत यात्रा के बाद दो राज्यों हिमाचल और कर्नाटक के चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद से क्षेत्रीय दलों को अस्तित्व का खतरा महसूस हो रहा है। बदली परिस्थितियों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दधीचि बनने की अपेक्षा कर रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का एकल चलो की घोषणा के बावजूद कांग्रेस की बैशाखी बनने को मचल रहे हैं। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती के बयान इस ओर इशारा कर रहे हैं। यहाँ यह भी याद दिलाना जरुरी है कि 1984-85 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे बेहतर 83 सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया था। यह रिकार्ड अब तक यूपी में कोई भी राजनीतिक दल नहीं तोड़ पाया है, उस समय उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश में ही था। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ही निराशा जनक रहा था। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया था। जबकि 2019 में भाजपा भी अपने पिछले प्रदर्शन को बरकरार रख पाने में नाकाम साबित हुई थी।

समाजवादी पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में 35 सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया था। 2009 से सपा का प्रदर्शन भी काफी कमजोर होता गया। बहुजन समाज पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में अधिकतम सीट 20 जीतने का रिकार्ड बनाया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का सूपड़ा साफ हो गया था। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा-सपा गठबंधन के कारण 10 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि कांग्रेस, सपा-बसपा अपने लाभ-हानि को देखकर अपनी भावी रणनीति तैयार करेंगे। लेकिन यह सही है कि हिमाचल, कर्नाटक की जीत के बाद अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कोई भी दल नज़र अंदाज नहीं कर पाएगा। कांग्रेस के सामने 2024 के लोकसभा का चुनाव राहुल गांधी को स्टैबिलस करने का अंतिम मौका है। यही वजह है कि कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। कुछ माह बाद चार राज्यों में होने वाले चुनाव में अगर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से अपनी शर्तों पर गठबंधन करेगी।

आख़िर सबकी नज़र कांग्रेस पर क्यों..?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सफलता के ग्राफ पर क्षेत्रीय दलों की बारीक नजर है। अगर मोदी वेव का ग्राफ गिरता है तो क्षेत्रीय दलों का झुकाव कांग्रेस की ओर हो जाएगा। नितीश कुमार की अध्यक्षता में क्षेत्रीय दलों की होने वाली 23 जून की बैठक में अगर इस बात की सहमति नहीं बनती है कि जिस राज्य में जो दल मजबूत है उसे भाजपा को हराने के लिए सपोर्ट करना चाहिए। अगर बात उत्तर प्रदेश की करें तो सपा के लिए इधर कुंआ, उधर खाई वाली स्थिति है। अगर कांग्रेस दधीचि नहीं बनी, तो उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और देश के क्षेत्रीय दलों के बड़ी चुनौती बनकर उभरने वाली है। इसीलिए क्षेत्रीय दल अभी से कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस बार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस दमदारी से चुनाव लडऩे जा रही है। यही हाल पूरे देश में है। इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं। जल्द प्रदेश नेतृत्व में भी बदलाव होने की संभावना है। कांग्रेस के एक धड़े का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बगैर किसी बैशाखी के अकेले चुनाव लड़े। जबकि दूसरा धड़े का कहना है कि अगर गठबंधन करना है तो बसपा के साथ करें। इसका फायदा कांग्रेस और बसपा दोनों को हो सकता है। 1996 में बसपा और कांग्रेस के हुए चुनाव में दोनों पार्टियों को फायदा हुआ था। दोनों धड़े सपा के साथ गठबंधन करने के पक्ष में नहीं हैं। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा, बसपा और भाजपा के कई दिग्गज कांग्रेस से चुनाव लडऩे के लिए गुणा-भाग कर रहे हैं। इसके लिए पैरवी भी शुरू कर दी है। अभी से ज्वाइनिंग करने वालों की भीड़ लगी है। कुछ माह के अंदर सपा, बसपा और भाजपा के कई दिग्गज कांग्रेस ज्वाइन करने वाले हैं।

राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि उत्तर प्रदेश में अब कांग्रेस अपना राजनीतिक पार्टनर लाभ-हानि का आकलन करने के बाद तय करेगी। ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित कांग्रेस का पर परागत वोट बैंक था। कांग्रेस अपने वोट बैंक को वापस लाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े बनाया है और उत्तर प्रदेश में बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जिससे दलित वोट बैंक को लुभाया जा सके। अगर आप बीते एक माह से यूपी में कांग्रेस की कार्यप्रणाली पर नजर डाले तो अभी चुनाव नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस की ज्वाइनिंग में दिन पर दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। रही बात मुस्लिम वोट बैंक की तो वह जिस तरह से 2022 के विधान सभा चुनाव में सपा को 100 प्रतिशत सपोर्ट किया है वही स्थिति लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में होने की संभावना है। कांग्रेस ने भी मुस्लिम को लुभाने के लिए कर्नाटक राज्य के विधान सभा अध्यक्ष का पद मुस्लिम को बनाकर दिया है। इसके साथ ही धर्मांतरण का बिल वापस लेकर मुस्लिम समाज को संदेश दिया है कि कांग्रेस का हाथ उनके साथ है। रही बात ब्राह्मïण समाज की वह इस बात की प्रतीक्षा में रहता है कि किस दल के पक्ष में हवा बह रही है वह उसके साथ हो लेता है।

उत्तर प्रदेश में 40-40 सीटों पर लड़ने का विकल्प

सूत्रों ने बताया कि बसपा ने कांग्रेस को पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने का प्रस्ताव दिया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश में लोकसभा का चुनाव साथ लड़ने की संभावनाओं पर गौर करने को कहा है। बसपा के प्रस्ताव के मुताबिक, सहमति बनती है तो दोनों पार्टियां के सामने सूबे की 40-40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का विकल्प है। हालांकि अभी कांग्रेस की ओर से बसपा की इस पेशकश को लेकर खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है।

मुस्लिम समुदाय उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा दोनों पर विश्वास करता रहा है और उसे कांग्रेस के साथ जाने में भी परहेज नहीं होगा। सवर्ण और दलित कांग्रेस के साथ पहले जुड़े रहे हैं और उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनवा चुके हैं। बहरहाल, कांग्रेस की ओर से बसपा के इस प्रस्ताव पर अभी कोई विचार शुरू नहीं हुआ है। प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई दिग्गज नेता यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस को आगे बढ़ने का रास्ता उत्तर प्रदेश में पार्टी की मजबूती से ही मिलेगा। विपक्षी एकता की पहल के बीच 2017 के गठबंधन के विफल प्रयोग को देखते हुए कांग्रेस को बराबर सीटें देने को सपा तैयार नहीं दिख रही। ऐसे में बसपा के साथ 40-40 सीटों के चुनावी गठबंधन में कांग्रेस के लिए अधिक संभावनाएं बनेंगी। आख़िर सबकी नज़र कांग्रेस पर क्यों..?