आखिर कितनी गंदगी ढोएंगी गंगा मां..?

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बीते कुछ समय से किसी का हाल चाल पूछिए, बातचीत में यही निकलकर आएगा – कैसे जीतेंगे हम कोरोना रूपी इस महाजंग से? सारा देश त्रस्त है। व्यवस्थाएं पूरी तरह से चरमरा चुकी हैं। संघीय व्यवस्था कागजों में भले ही हो, लेकिन राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूरवर्ती गांव तक एक जैसा ही कोहराम है। यह कोहराम है कोरोना का। इंसान का सबसे बड़ा महायुद्ध है कोरोना से। सनातन सोच में माना जाता है कि ईश्वर की नजर जहां टेढ़ी होती है, मनुष्य कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होता। वैसे इस आपदा को प्राकृतिक आपदा कहना बिल्कुल नाइंसाफी है, क्योंकि विश्वमानवता का सबसे बड़ा  शत्रु कहा जाने वाला चीन के लिए तो यही कहा जा रहा है जिसकी वजह से इस महामारी  से आज भारत ही नहीं विश्व उलझा हुआ है । हम कहीं और की बात को बाद में करेंगे , लेकिन जो भयावह स्थिति भारत में बन गई है उससे अधिक दुखदाई मानव सभ्यता के लिए और क्या हो सकता है। वैसे मृतकों को मुखाग्नि देकर जल प्रवाहित करना भारत में लोग करते रहे हंै, लेकिन अब जब से  अंधाधुंध मौतों का सिलसिला इस महामारी में शुरू हुआ है उसमें ऐसी भयावह स्थिति बन गई है कि अब तो  मुखाग्नि देने भी अपने परिवार के सदस्य मृतक के पास नही होते। क्योंकि इस महामारी के लिए देखा यह गया है कि जो भी कोरोना के मरीज के आसपास होता है, उसपर विषयुक्त कीटाणु टूट पड़ता है। 

अब जो स्थिति बन गई है उसमें भारत में प्रतिदिन लाखों व्यक्ति इसके शिकार होते हैं। हजारों में उनकी मौत होती है, जिसके कारण श्मशान और कब्रिस्तान में स्थान कम पड़ गए हैं। परिणामस्वरूप उन्हें मुखाग्नि दिए बिना अथवा मुखाग्नि देकर बड़ी छोटी नदियों के हवाले कर दिया जाता है, जिसे चील और कौए अपना उपयुक्त  आहार  बनाते हैं । इस मामले में सरकार ने अब नदियों  की ओर ध्यान दिया है, जिसके कारण एक एक दिन में एक एक शहर 75 – 80 शव निकाले जा रहे हैं। अभी  कुछ दिन पहले ही बक्सर, उन्नाव और पटना में गंगा नदी से शव निकालकर अंतिम संस्कार किए गए। जिस गंगा नदी को साफ करने के लिए सरकार ने एक मंत्रालय बनाया अरबों रुपए गंगा को साफ करने में लगाए उस गंगा की यह दुर्दशा कैसे होती रही और सरकारी महकमा उसकी सुरक्षा के लिए कहां गायब रही यह बात समझ में नहीं आती। मेरे मन में यह सवाल है और मन दुखी भी है कि आखिर, गंगा कितनी गंदगी को साफ करेगी और कब तक ? कहा यह भी जाता है कि गंगा ही नहीं किसी भी नदी में मृतक को फेंककर परिजन भाग जाते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई शव नदी में बहा रहा है और नदी की सुरक्षा में तैनात उसके पर्यवेक्षक क्या करते रहते हैं। जो विभत्स फोटो कई टीवी चैनलों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। 

काश, ऐसी महामारी से निपटने के लिए हमारे वैज्ञानिक जान पाते कि ऐसी भयानक  आपात स्थिति आने वाली है। इसकी पूर्व जानकारी दी होती है, तो सकता है इस दुर्दशा से शायद भारत निकल सकता था, लेकिन अब वही कहावत चरितार्थ होती है कि अब पछताए क्या ……..। अब तक देश का भारी  नुकसान हो चुका है अब सरकार को बहुत तेजी से कार्य करने की जरूरत है । रही ऐसे परिवारों की बात जिनका अब काम बंद हो गया है और जो भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं उनकी ओर सरकार को ध्यान देना ही होगा अन्यथा कोरोना से नहीं तो भूख से उनकी मौत निश्चित हो जाएगी। फिर पिछले साल वाला सिलसिला चल पड़ा है और श्रमिक गांव की ओर रुख करने लगे हैं । ……..साभार