आख़िर क्या क्या बेचेगी मोदी सरकार-प्रो0 गौरव वल्लभ

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प्रो0 गौरव वल्लभ ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय की रिसर्च जो हम पिछले कई दिनों से कर रहे हैं, उसकी रिपोर्ट लेकर आया हूं और जो मैं डेटा आपके सामने रखूंगा सबूत के साथ, तो मोदी सरकार की डिसइनवेस्टमेंट पॉलिसी की वस्तुस्थिति आप सब लोगों के सामने आ जाएगी। हमने पहले CEL कंपनी के बारे में आप सब लोगों को बताया, तो आज वो कंपनी जो औने-पौने दामों पर सरकार अपने दोस्तों के हवाले कर रही थी, वो रुक गई । हमने कोनकोर का मुद्दा उठाया, तो कोनकोर का डिसइनवेस्टमेंट भी आज रोक दिया गया और आज जो हम कंपनी लेकर आए हैं, जिसको सरकार ने किसे बेचा, क्यों बेचा और क्यों इतने कम में बेचा, उसकी सारी बातें सबूत के साथ आपके सामने रखूंगा।

कंपनी का नाम है पवन हंस। पवन हंस हेलीकॉप्टर सेवाएं प्रदान करता है देश में और साउथ एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी है, देश की नहीं। दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी है, जिसके पास सबसे ज्यादा हैलीकॉप्टर है, सबसे ज्यादा फ्लाइंग आवर (घंटो) का अनुभव है, सबसे ज्य़ादा हैलीपैड हैं, जिसका विश्वास है, आज भी हमें केदारनाथ जी, बद्रीनाथ जी, माता वैष्णो देवी जी, अमरनाथ जी की यात्रा करनी होती है, तो ये कंपनी हमें पहुंचाती है, वहाँ तक। हमारे बुजुर्गों को यही कंपनी केदारनाथ जी के मंदिर के सामने पहुंचाती है। उसको कब भारत सरकार ने अपना 51 प्रतिशत हिस्सा बेचने का निर्णय कर लिया और किसको बेच रहे हैं, वो जानकारी दूंगा आपको।

मात्र 211 करोड़ रुपए में और किस कंपनी को बेच रहे हैं, कंपनी का नाम स्टार 9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड है और ये स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड है, जिसका इनकॉर्पोरेशन होता है, 29 अक्टूबर, 2021; 6 महीने पुरानी कंपनी को, जो 6 महीने पहले बनी और ये जो मैं डॉक्यूमेंट है, ये मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर की साइट से लाया हूं। ये कोई सरकारी सोर्स है, कोई निजी सोर्स से डेटा नहीं लाया हूं। 6 महीने पुरानी कंपनी को पवन हंस जो कि देश की, मतलब 30-35 साल, 40 साल पुरानी हैलीकॉप्टर कंपनी है, उसको 6 महीने पुरानी कंपनी को भारत सरकार ने अपनी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी, 211 करोड़ में बेचने का निर्णय कर लिया। आपको लग रहा होगा साहब कोई आया ही नहीं होगा। नहीं, दो बिडर और थे और उनकी भी कहानी सुनिए और फिर मैं इस स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड की कहानी आपके सामने रखूंगा।

उनकी कहानी सुनिए कि एक बिडर था, उसने बिड किया 181 करोड़। दूसरा बिडर था, जिसने बिड किया 153.15 करोड़ और रिजर्व प्राइस थी 199.92 करोड़। तीन बिडर, दो बिडर करते रहे रिजर्व प्राइस से कम। सिर्फ एक बिडर करता है रिजर्व प्राइस से ज्यादा और वो कंपनी भारत सरकार उस बिडर के हवाले कर देती है। 199.92, लगभग 200 करोड़ रिजर्व प्राइस, रिजर्व प्राइस से मात्र 11 करोड़ और 11 अपने यहाँ बड़ा लक्की, शगुनी नंबर है। तो सरकार ने रिजर्व प्राइस के 11 करोड़ रुपए ज्यादा लेकर अपने 51 प्रतिशत हिस्सेदारी पवन हंस की, जो कि सबसे पुरानी दक्षिण एशिया की हैलीकॉप्टर कंपनी है, वो 6 महीने पुरानी कंपनी के हवाले कर दिया। जिसका नाम है स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड। अब स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड की हकीकत आपको बताता हूं। स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड जो है, इसके तीन एसोशिएट हैं। उन तीनों एसोशियेट की कहानी सुनिए और उनकी जानकारी आपके सामने रख रहा हूं।

पहला एसोशिएट है, जिसका नाम है – बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड। दूसरा एसोशिएट है, उसका नाम है – महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और तीसरा एसोशिएट है, उसका नाम है – अल्मास ग्लोबल ऑपर्च्युनिटी फंड एसपीसी। तो सबसे पहले अल्मास ग्लोबल ऑपर्च्युनिटी फंड कहाँ हैं – Cayman Islands में। हिंदुस्तान में नहीं है और Cayman Islands में क्या होता है, मोदी जी 2014 के पहले बता थे कि वहाँ से जो ब्लैक मनी पड़ी है, वो देश में लेकर आएंगे और सबके खाते में 15 लाख रुपए जमा होंगे और आज एक ऐसी कंपनी जो Cayman Islands में है, उसको देश की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी पकड़ा दी। उसका कोई अता-पता नहीं है। चलो साहब एक का नहीं है पता, दूसरे का तो होगा। दूसरी कंपनी का नाम है – महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और तीसरी का नाम है बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड। ये बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड का दिल्ली हाईकोर्ट में हैलीकॉप्टर संबंधित केस चल रहा है। ये मैं नहीं कह रहा, उस केस की डिटेल भी आपको दूंगा।

एक कंपनी, तीन साझेदार थे स्टार 9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड के, जो 6 महीने पहले बनी है। एक साझेदार तो है Cayman Islands में है। एक साझेदार जो हिंदुस्तान में है, उसके खिलाफ हैलीकॉप्टर ड्यू से संबंधित केस चल रहा है दिल्ली हाईकोर्ट में और तीसरी कंपनी हैं, जिसका नाम है महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, उसकी इंटरनेट पर कोई डिटेल नहीं है। पर मैंने उसके फेसबुक पेज पर जाकर डिटेल एकत्रित की है। फेसबुक पेज पर महाराजा एविएशन कहता है कि हमारे पास तीन हेलीकॉप्टर हैं और फेसबुक पेज पर 4-5 फोटो ही थी, उन 4-5 में से तीन फोटो देश में जो 35 रुपए तेल बिकवाना चाह रहे थे, बाबा रामदेव जी की है। ये मैं नहीं, ये उस कंपनी के फेसबुक पेज से लाया हूं। बाबा रामदेव जी इनके चहेते कस्टमर हैं, क्या है मुझे नहीं पता। पर मैं ये जानता हूं कि ये वही बाबा हैं, जो 35 रुपए प्रति लीटर तेल बिकवाने की बात कर रहे थे 2014 से पहले। इस बात की मेरी गारंटी है, ये इनके चहेते कस्टमर हैं। इनका इनसे क्या रिश्ता है, मुझे नहीं पता, पर 5-7 फोटो में तीन तो बाबा रामदेव जी की हैं, जो मैं आपके सामने रख रहा हूं। एक आचार्य बालकृष्ण जी हैं, जो बाबा रामदेव की कंपनी के सीईओ हैं। एक हेमा मालिनी जी की है। ये कंपनी क्या करती है, इसकी क्या वेबसाइट है, इसके फेसबुक पेज पर ये बताया गया है कि हमारे पास तीन हेलीकॉप्टर हैं और बाबा से इनका क्या संबंध हैं या तो ये कोरोनील की दवा देते हैं हेलीकॉप्टर में बैठने वालों को या ये अनुलोम-विलोम सिखाते हैं, हैलीकॉप्टर में बैठकर मुझे नहीं पता। इनका इस हैलीकॉप्टर से क्या संबंध हैं, मुझे नहीं पता, पर ये कंपनी बाबा जी को हैलीकॉप्टर में बैठाकर फोटो अपने फेसबुक पेज पर ड़ाल रही हैं।

तो एक ऐसी कंपनी जो 6 महीने पहले बनी, जिसके तीन में से एक एसोशिएट तो Cayman Islands में बैठा है, दूसरा एसोशिएट का दिल्ली हाईकोर्ट में केस चल रहा है, तीसरा एसोशिएट बाबा जी के साथ अपनी फेसबुक पेज पर फोटो डाल रहा है।

अब इस संबंध में हमारे दो-चार प्रश्न हैं भारत सरकार से –

पहला, क्यों, ऐसे बिडर जिनके तीन एसोशिएट कंपनी, तीन पार्टनर हैं उस बिडर के तीनों में से किसी की भी आइडेंटिटी आपको वेबसाइट पर नहीं मिलेगी। जो कंपनी 6 महीने पहले बनी, गवर्मेंट ने अपनी सार्वजनिक क्षेत्र की हैलीकॉप्टर कंपनी को 211 करोड़ रुपए मात्र में ऐसे लोगों के हवाले करने का निर्णय क्यों किया?

दूसरा, ऐसा क्या कारण था कि तीन बिडर आते हैं, दो रिजर्व प्राइस से कम करते हैं। एक मात्र 11 करोड़ रुपए रिजर्व प्राइस से ज्यादा देता है और उसको हैलीकॉप्टर कंपनी पकड़ा दी जाती है?

तीसरा, ये जो पवन हंस है, इसकी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत सरकार के पास है, 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ओएनजीसी के पास है और ओएनजीसी कह रहा है- मैं खरीदना चाहता हूं। क्यों ओएनजीसी को नहीं देकर एक 6 महीने पुरानी कंपनी को दे दिया गया? क्योंकि ओएनजीसी के मूवमेंट पवन हंस के द्वारा होता है और ना केवल ओएनजीसी के, एचएएल के मूवमेंट भी पवन हंस के द्वारा हो रहे हैं, क्यों उन कंपनियों को ये कंपनी नहीं दी गई? और तो और पवन हंस कंपनी के जो कर्मचारी हैं, वो कह रहे हैं, हमें दे दो, हम खरीद लेते हैं, हम चला लेंगे। उनकी यूनियन ने बिड भी की, पर भारत सरकार ने कहा, नहीं, तुम योग्य नहीं हो, 6 महीने पुरानी कंपनी योग्य है, तुम्हें कुछ नहीं आता है। Cayman Islands में जो लोग बैठे हैं, वो योग्य हैं हमारे देश की सबसे पुरानी हैलीकॉप्टर कंपनी चलाने के लिए।

फिर एक और इसमें चीज आपके सामने रख रहा हूं। मैं पिछले 12 साल का इस कंपनी का प्रॉफिट और रेवेन्यू आपके सामने रख रहा हूं। 2017-18 तक ये कंपनी निरंतर प्रॉफिट कर रही थी। 2018-19 में ऐसा क्या हुआ जो प्रॉफिट मेकिंग, और प्रॉफिट भी छोटा-मोटा नहीं 350-400 करोड़ प्रॉफिट था, 2016-17 में 376 करोड़, 2017-18 में वो घटकर हो गया 12 करोड़ और 2018-19 से ये लॉस में आ गई। क्या हुआ, इस दौरान क्या हुआ, वो भी बताता हूं। ये लॉस में क्यों आई, वो भी बताता हूं।

इस कंपनी को जानबूझकर लॉस में डाला गया। क्योंकि इस कंपनी को कहा गया कि रोहिणी में एक हैलीपैड बना है। इस कंपनी को कहा गया कि वहाँ पर अपना पैसा लगाओ। वो हैलीपैड की आज क्या स्थिति है, आपको, मुझे दोनों को पता है, वो बंद पड़ा है। इस कंपनी को, प्रॉफिट मेकिंग कंपनी को पहले लॉस में डालो। लॉस में डालकर औने-पौने दाम में बिना ड्यू डिलिजेंस के, बिना प्रॉपर प्रोसेस के पता नहीं किसी के हवाले कर दो, क्या इसको डिसइनवेस्टमेंट कहा जाता है? ये डिसइनवेस्टमेंट नहीं है, इसको फ्रॉड कहा जाता है। ये हिंदुस्तान के लोगों के पसीने की कमाई को औने-पौने दामों में अपने दोस्तों के हवाले करने की प्रक्रिया कहा जाता है। इसको मैं ये कहूँगा This is the magic one-o-one tutorial to lower valuation before disinvestment. पहले प्रॉफिट मेकिंग कंपनी को चिन्हित कर लो, फिर उस कंपनी के प्रॉफिट को लॉस में डालो। फिर लॉस में डालकर उसकी वैल्यूएशन को कम करो। फिर उस कम वैल्यूएशन को औने-पौने दाम में 4-6 महीने पुरानी कंपनी को, जिसका कोई अनुभव नहीं है हैलीकॉप्टर में, उसके हवाले कर दो। क्या ये डिसइनवेस्टमेंट प्रक्रिया है……?