2022 विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे अखिलेश….?

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विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर अखिलेश ने कार्यकर्ताओं को भी निराश किया है।तो क्या अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने की उम्मीद नहीं है? 01 नवंबर को समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने अचानक ऐलान किया कि अगले वर्ष मार्च में होने वाले विधानसभा के चुनाव में वे स्वयं किसी भी क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ेंगे। अलबत्ता उन्होंने आरएलडी से गठबंधन करने की बात कही। अखिलेश ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा तब कि जब वे स्वयं चुनावी यात्रा पर निकले हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म है। सपा को ही भाजपा का प्रमुख प्रतिद्वंदी माना जा रहा है। ऐसे में यदि अखिलेश चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करते हैं तो यह माना जाएगा कि अखिलेश को यूपी में सपा की सरकार बनने की उम्मीद नहीं है। सब जानते हैं कि सपा को बहुमत मिलने पर अखिलेश ही मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार हैं। सपा ने मुख्यमंत्री के पद को लेकर अखिलेश को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। अखिलेश ही इस समय सपा का नेतृत्व कर रहे हैं। यदि नेता ही मैदान छोड़ दे तो फिर कार्यकर्ताओं का क्या होगा। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आहट के बीच अखिलेश के बयान से स्पष्ट माना जा रहा है कि अगर राज्य में सपा की सरकार बनती है तो अखिलेश विधान परिषद के जरिए ही विधानमंडल का सदस्य बनेंगे। राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो अखिलेश का यह फैसला बिल्कुल भी हैरानी भरा नहीं है। अखिलेश ने पहले भी विधायकी का चुनाव नहीं लड़ा है।

  1. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी, सपा, कांग्रेस समेत सभी दल तैयारियों में जुटे हैं।
  2. अखिलेश ने साफ तौर पर कह दिया है कि वह 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।
  3. अखिलेश यादव के इस बयान के पीछे पार्टी की सोची-समझी रणनीति बताई जा रही है।

जब नेता स्वयं चुनाव लड़ता है तो कार्यकर्ताओं में भी जोश बना रहता है। क्या यूपी में अखिलेश के लिए एक भी सुरक्षित सीट नहीं है? अखिलेश का यह तर्क हो सकता है कि बहुमत मिलने पर वे मुख्यमंत्री बन जाएंगे और नवनिर्वाचित विधायक का इस्तीफा दिलवाकर उपचुनाव के माध्यम से विधायक बन जाएंगे। लेकिन अखिलेश का यह तर्क भी कार्यकर्ताओं को निराश कर रहा है। असल में अखिलेश यादव मौजूदा समय में आजमगढ़ से सांसद हैं। शायद अखिलेश यादव चुनाव इसलिए नहीं लड़ रहे क्योंकि यदि बहुमत नहीं मिलता है तो सांसद बने रहेंगे। संविधान के अनुसार एक व्यक्ति एक ही सदन का सदस्य रह सकता है। सिर्फ विधायक बनने के बजाए तो अखिलेश सांसद बने रहना ज्यादा पसंद करेंगे।

 विधानसभा चुनाव में सपा के खिलाफ बयानबाजी कर बीजेपी पहले ही अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी बता चुकी है। ऐसे में न सिर्फ पार्टी का बल्कि सहयोगी दलों का भी पूरा दारोमदार अखिलेश यादव के कंधों पर ही है। इसलिए इस बार वह कोई मौका हाथ से नहीं गंवाना चाहते थे। यही वजह है कि अखिलेश सूझबूझकर कदम उठाते हुए दिख रहे हैं।

अखिलेश की कुछ भी सोच हो सकती है, लेकिन यदि वे विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं तो इससे कार्यकर्ताओं में भी जोश बना रहता है। हाल ही में संपन्न हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा के चुनाव में ममता बनर्जी ने स्वयं भी चुनाव लड़ा था। हालांकि ममता अपनी पार्टी की एक मात्र स्टार प्रचारक थीं। लेकिन विधानसभा का चुनाव लड़ने में ममता ने कोई गुरेज नहीं किया। भले ही चुनाव में उनकी हार को गई हो, लेकिन उन्होंने बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और फिर उपचुनाव लड़कर विधायक बनी। अखिलेश यादव को ममता बनर्जी की रणनीति से सबक लेना चाहिए।