सामाजिक न्याय की विरोधी है भाजपा-अखिलेश यादव

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भाजपा सरकार में योजनाएं बनते ही भ्रष्टाचार शुरू
भाजपा सरकार में योजनाएं बनते ही भ्रष्टाचार शुरू

सामाजिक न्याय की विरोधी है भाजपा

राजेन्द्र चौधरी

अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा लगातार पिछड़ों और दलितों को दिए जा रहे आरक्षण पर हमला कर कमजोर कर रही है। भाजपा शुरू से सामाजिक न्याय की विरोधी रही है।विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्तियों में आरक्षण की अनदेखी की गयी। कई विश्वविद्यालयों में पिछड़ों का हक मारा गया। पिछड़ों को मान-सम्मान और हक देने को लेकर भाजपा की नीयत कभी ठीक नहीं रही है। भाजपा आरक्षण के खिलाफ पिछले दरवाजे की राजनीति कर रही है।


अखिलेश यादव ने कहा कि देश में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैम्पस खोलने की तैयारी हो रही है। इससे देश के छात्र-छात्राएं कितना लाभाविन्त होंगे यह तो समय बताएगा किन्तु यह निश्चित है कि इनमें आरक्षण जैसी कोई व्यवस्था नहीं होगी।भाजपा अपने राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए पिछड़ों के साथ रहने का दिखावा कर रही है। भाजपा सत्ता पाने के बाद धोखा दे देती है। भाजपा के धोखे और छलावा को पिछड़े और दलित समझ चुके हैं। समय आने पर इस धोखे का जवाब देंगे

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देश और प्रदेश के विश्वविद्यालयों में जब आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है तो भला विदेशी विश्वविद्यालयों के कैम्पस में दलित, पिछड़े, आदिवासी अध्यापकों और विद्यार्थियों को क्या मान-सम्मान और स्थान मिलेगा? अच्छा होता भारत के प्रतिष्ठित संस्थाओं के कैम्पस विदेशों में भी खोलने का प्रयास किया जाता।उत्तर प्रदेश में कोई एक नहीं कई उदाहरण है जब भाजपा की सरकार ने पिछड़ों का हक मारा है। पुलिस भर्ती में आरक्षण की गलत व्याख्या कर सैकड़ों नौजवानों को नौकरी से वंचित कर दिया। 69हजार शिक्षक भर्ती में बड़े पैमाने पर आरक्षण का घोटाला किया। भाजपा सरकार की नीयत पिछड़े और दलितों को हक और अधिकार देने के बजाय उन्हें दबाए रखने की है

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भारतवर्ष में सदियों से जारी सामाजिक अन्याय के मूल में वर्ण व्यवस्था रही है। यह व्यवस्था संपदा, संसाधनों, पेशों और मानवीय मर्यादा की वितरण व्यवस्था के रूप में क्त्रियाशील रही। धर्म आधारित वर्ण-व्यवस्था में स्वधर्म पालन के नाम पर कर्म शुद्धता की अनिवार्यता तथा पेशों की विचलनशीलता की निषेधाज्ञा के फलस्वरूप शुद्र-अतिशूद्रों के लिए अध्ययन-अध्यापन, पौरोहित्य, राज्य संचालन में मंत्रणा दान, भूस्वामित्व, राज्य संचालन, सैन्य-वृत्ति, व्यापार-वाणिज्यादी का कोई अवसर नहीं रहा। उन्हें शक्ति के सभी प्रमुख स्नोतों से बहिष्कृत कर अशक्त तथा मानवेतर बना दिया गया। वर्ण व्यवस्था के प्रावधानों के तहत शक्ति के समस्त स्नोतों सहित गगनस्पर्शी सामाजिक मर्यादा ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए आरक्षित होकर रह गई। इसके खात्मे के लिए 19वीं सदी में शूद्र समाज में जन्मे फुले ने सामाजिक न्याय की लड़ाई शुरू की।

डॉ. लोहिया विशेष अवसर के सिद्धांत को हकीकत में बदलने के लिए राजनीति, व्यापार, पलटन और ऊंची सरकारी नौकरियों में 90 प्रतिशत शोषितों के लिए 60 प्रतिशत स्थान सुरक्षित कर देने की मांग उठाते रहे, लेकिन ‘बिहार लेनिन’ नाम से मशहूर जगदेव प्रसाद और यूपी के रामस्वरूप वर्मा सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में 90 प्रतिशत शोषितों के लिए 90 प्रतिशत स्थान सुरक्षित करने की उग्र हिमायत करते रहे। बाद में वर्ण व्यवस्था के वंचितों के सबसे बड़े नायक के रूप में उभरे कांसीराम सामाजिक न्याय की पूर्णता के लिए एक नए दर्शन, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ के साथ राजनीति के मैदान में उतरे।

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