मुसीबत में ब्राण्ड मोदी

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डॉ0 अम्बरीष राय

नरेंद्र दामोदरदास मोदी एक ऐसा नाम, जिसने भारतीय राजनीति को उलट पलट कर रख दिया. सारे स्थापित मानदण्ड, मानक सिहर कर रह गए. नफ़रत के इस नायक ने हरेक अपेक्षाओं को तोड़ा तो नई अपेक्षाओं को जन्म दिया. गोल टोपी लगाने वाला अल्पसंख्यक समुदाय भारतीय राजनीति में कितना प्रभावशाली है, इसका सशक्त उदाहरण मनमोहनसिंह सिंह का एक वक्तव्य है. सात साल पहले प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है. इस पर बवाल मचना था, मचा भी. लेकिन फ़िलहाल मुद्दा मनमोहन सिंह नहीं बल्कि भारत का वोटर मुसलमान हैं. इस देश में राजनेताओं की एक ऐसी प्रजाति ने आकार लिया, जिसने ये कहा कि हमारे लिए सभी धर्म महत्वपूर्ण हैं, इसलिए हम धर्मनिरपेक्ष हैं. या यूं कहें कि राजनीति में धर्म का कोई स्थान नहीं है. इस प्रजाति को सेक्युलर कहा गया. और धर्म के आधार पर स्वतंत्र हुआ भारत धर्म निरपेक्षता की छांव में विकसित होता गया.

एक सियासी दल ऐसा भी था जो धर्म की छांव में धीरे धीरे आकार ले रहा था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पोषित भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को हुई थी. जो जनता पार्टी में विलय के बाद निकली तो भारतीय जनता पार्टी थी. 6 अप्रैल 1980 को स्थापित भाजपा एक हिन्दू सांप्रदायिक पार्टी के तौर पर ही बढ़ती रही. बहरहाल साल 1976 में इमरजेंसी के दौरान भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके ‘सेक्युलर’ शब्द को शामिल किया गया. 42वें संशोधन में ‘सेक्युलर’ शब्द को जोड़कर इसे स्पष्ट किया गया. तो ये सेक्युलर राजनीति मुस्लिम वोटों के इर्दगिर्द घूमती रही. उधर हिन्दू साम्प्रदायिक पार्टी भाजपा अपना एक अलग जनाधार और हिन्दू वोटबैंक बनाने में लगी थी. उसने मुस्लिम मतों से परे सियासत और सत्ता का अलग ही कॉकटेल बनाया. हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक में भाजपा अपने बलबूते सरकार बना भी ले गई. महाराष्ट्र में हिन्दुत्व के दूसरे कट्टर संस्करण शिवसेना के साथ उसने सत्ता का स्वाद लिया. कांग्रेस राज से आजिज कुछ क्षेत्रीय दल जब थोड़ा साम्प्रदायिक हुए और भाजपा थोड़ी सेक्युलर तो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश की सत्ता पर भी भाजपा काबिज़ हो गई. फिर बिहार में भी भाजपा के लिए अंधेरा छंटा और कमल खिला.

लेकिन सेक्युलर ताकतें मज़बूत रहीं. फिर एक दिन भाजपा ने अपने एक मजबूत क्षत्रप नरेंद्र दामोदर दास मोदी को अश्वमेध यज्ञ की यजमानी सौंप दी. सेक्युलर ताकतों के आखिरी दुश्मन. मुस्लिम मन के लिए शैतान (ऐसा मुस्लिम मित्र निजी बातचीत में कहते रहते हैं) ने अपने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया. राम नाम की लहर पर सवार होकर सत्ता सुख हासिल करने वाली भाजपा ने प्रभु राम जैसा ही अश्वमेध यज्ञ किया. और आशातीत सफलता भी मिली. एक गंगा पुत्र भीष्म हुए, जो राज पाट नहीं पा सके. एक गंगा पुत्र नरेंद्र मोदी हुए, जिनको एक दिन माँ गंगा ने काशी बुलाया और आशीर्वाद में दिल्ली की गद्दी दे दी. मुझे याद है एक समाजवादी चिंतक और राजनेता से मेरी बात हो रही थी. ये 2014 के अप्रैल महीने का मध्य था. आज़मगढ़ लोकसभा से सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह चुनाव लड़ रहे थे. मैं चुनावों की नब्ज़ थामने के चक्कर में आज़मगढ़ पहुंचा था. उक्त समाजवादी चिंतक ने मुझसे कहा कि भाजपा ने नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाकर गलती की. एक तो इतना कट्टर चेहरा, दूसरा मोदी की जाति, देश का एक बड़ा धार्मिक समुदाय इस चेहरे को नफ़रत की हद तक नापसंद करता है. ऊपर से गुजरात का जो मॉडल वो घूमकर घूमकर बेच रहे हैं, वो यूपी बिहार में नहीं बिकने वाला. मोदी को चेहरा बनाने का फैसला डिजास्टर साबित होगा. मैं काफी देर सुनता रहा, फिर मैं बोला, ‘ भाई साहब डिग्री समझते हैं ना. ये सारा खेल डिग्री का है. अभी डिग्री की जद में जाति है. लिहाज़ा राजनीतिज्ञों ने जातीय वोट बैंक बना लिया है. ये डिग्री थोड़ी सी बढ़ गई तो धार्मिक जोड़ बनेगा. और ये जोड़ मोदी को दिल्ली की कुर्सी पर बिठा भी सकता है’. बातचीत ख़त्म होते समय मैंने एक बार फिर कहा था, ‘ मेरी डिग्री वाली बात याद रखियेगा. मुझे मोदी के चमत्कारिक प्रदर्शन की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी. मेरी अपनी समझ में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सत्ता के सबसे नजदीक रहने वाले की थी.

लेकिन मोदी ने डिग्री बढ़ा दी. जाति में अपना स्वाभिमान खोजने वाला हिन्दू अपने हिन्दू होने के स्वाभिमान से भर उठा. सेक्युलर नेताओं की जालीदार टोपी, अफ्तार की फोटुओं से मन ही मन कुढ़ रहे लोगों ने गुजरात दंगों के आरोपी नरेंद्र दामोदर दास मोदी में नफ़रत का नायक देखा, और बाकी सब इतिहास हो गया. प्रधानमंत्री की पूजा पाठ, माला, यज्ञ की तस्वीरों ने कोरोड़ों वोटों वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों को सियासत के हासिये पर डाल दिया. एक ब्राण्ड बना, ब्राण्ड मोदी. जहाँ गया, जीतता गया. हर सफलता मोदी की सफलता थी. पार्टी, संगठन, विचारधारा सब ब्रांड मोदी के आगे बौने हो गए. मोदी ने 2019 का चुनाव मोदी बनाम अन्य कर दिया. मोदी का आत्मविश्वास इतना कि चुनाव रैलियों में पार्टी प्रत्याशियों के नाम तक नहीं लिया. मोदी मोदी के शोर में सब कुछ डूब गया. वक़्त बदलता जरूर है. मोदी सात साल से देश के प्रधानमंत्री हैं.

ब्राण्ड मोदी के कुशल रणनीतिकारों का टैलेंट जवाबदेही के मोर्चे पर फीका पड़ने लगा है. भारत के जलते सवालों से ब्राण्ड मोदी आफ़त में है. कोरोना की दूसरी लहर में लाशों का अम्बार खड़ा हो गया. हर तरफ़ बस मौत का खौफ़ और गायब सरकार. न्यायपालिका सरकार को चेताती रहीं. कोसती रहीं. धमकाती भी दिखीं लेकिन जब तक सरकार चेतती, नियंत्रण करती, बहुत देर हो गई. आँकड़ों और ज़मीन का फ़र्क सबने देखा, सब देख रहे हैं. अर्थव्यवस्था धड़ाम. महंगाई डायन अपना विकराल रूप दिखा रही है. बेरोज़गारी चरम पर. स्वास्थ्य सेवा चरमरा गई. अब तो भूख और बदहाली की महामारी की आहट महसूस हो रही है. सात साल का नतीजा इंद्रधनुष के सात रंग नहीं बल्कि सात जन्मों का दुःख दर्द दिखा गया. सरकार नियंत्रित मीडिया को छोड़कर विश्व का प्रतिष्ठित मीडिया मोदी की असफल नीतियों से रंगा पड़ा है. वैश्विक नेता बनने बनाने की क़वायद वैश्विक फेल्योर में तब्दील हो गई है. सोशल मीडिया में तो ब्राण्ड मोदी सस्ता मज़ाक बनकर रह गया है. भारत के कुछ मीडिया संस्थानों की आत्मा सरकार के मोह से बाहर नज़र आने लगी है. आलोचनाओं को रास्ता मिला है तो समर्थन खींसे निपोरता दिखाई दे रहा है. इसके चलते सरकार समर्थक मशीनरी पूरे जोर शोर से जुटी है कि बदहाल भारत के लिए मोदी जी को जिम्मेदार ना ठहराया जाए. इसके लिए हर रोज़ नए हथकण्डे बाजार में लांच किए जाते हैं. सरकार समर्थक कह रहे हैं कि विश्व मानव नरेंद्र दामोदरदास मोदी की विश्वसनीयता को ख़त्म करने के लिए विपक्ष साजिश कर रहा है. दूसरी तरफ विपक्ष सरकार को कोई छूट देने को राजी नहीं है. सरकार समर्थक और सरकार विरोधी दोनों अपने अपने पक्ष को लेकर आक्रमण में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे. लेकिन ये बात भी काबिलेगौर है कि जब सफलताओं के लिए मोदी मोदी का टेम्पो बनाया जाता है तो आज असफल परिदृश्य के लिए दूसरे को क्यों खोजा जा रहा है. और क्यों विपक्ष को ये कहा जा रहा है कि मोदी जी के साथ ऐसा मत करिए. प्रधानमंत्री जी अपने परिधानों को लेकर अक़्सर चर्चा में रहते हैं. कुछ आलोचक उन्हें परिधान मंत्री भी कहते हैं. सत्ता में रहने के दौरान अपने परिधानों को शानदार बनाने वाले नरेन्द्र मोदी काश भारत को भी अपने परिधान जैसा शानदार बना पाते. लेकिन हासिल की ज़मीन पर बस मुसीबतें हैं और इन मुसीबतों का ज़िम्मेदार मोदी जी नहीं, ऐसा उनके समर्थक मानते हैं. और इन सारी मुसीबतों के लिए बस मोदी ज़िम्मेदार हैं, ऐसा मोदीजी के विरोधी कहते हैं. और फ़िलहाल मैं देख रहा हूं कि देश के साथ साथ ब्राण्ड मोदी भी मुसीबत में है. देखना दिलचस्प होगा कि ब्राण्ड मोदी की यह यात्रा यहीं दम तोड़ देती है या ब्राण्ड मोदी फिर वापसी करता है.