ट्रिपल टेस्ट के नाम पर ओबीसी आरक्षण खत्म करने की हो रही साज़िश-लौटनराम निषाद

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ट्रिपल टेस्ट के नाम पर ओबीसी आरक्षण खत्म करने की हो रही साज़िश । भाजपा तरह-तरह के दांवपेंच चल आरक्षण को कर रही निष्प्रभावी।

लखनऊ। निकाय चुनाव में फंसा ओबीसी आरक्षण के त्रिस्तरीय परीक्षण (ट्रिपल टेस्ट) का पेंच भाजपा सरकार की साज़िश है।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट के नाम पर ओबीसी आरक्षण को खत्म करने की साज़िश बताते हुए कहा कि पिछले महीने दिल्ली के एमसीडी चुनाव में भी ओबीसी का आरक्षण कर दिया गया था,वैसा ही उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में करने का षडयंत्र आरएसएस-भाजपा द्वारा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगम व 199 नगर पालिका परिषद हैं। उत्तर प्रदेश नगर निकाय आरक्षण नियमावली के अनुसार ओबीसी को 27 व एससी को 21 प्रतिशत कोटा निर्धारित है,इस दृष्टि से नगर निगम महापौर के लिए ओबीसी को 17 में 4-5 की बजाय ज़िरफ 1 पद व एससी को 4 की बजाय 2 पद आरक्षित किया गया।नगर पालिका परिषद के 199 चैयरमैन पद में ओबीसी को 53-54 व एससी को 41-42 पद आरक्षित होना चाहिए, लेकिन ओबीसी को शून्य कर दिया गया और एससी के लिए मात्र 17 पद आरक्षित किया गया।

महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म करने जैसी उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में भाजपा की साज़िश की जा रही है। 20 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में होने वाली सुनवाई होनी है। अगर कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में आता है तो सत्ता और सत्तारूढ़ दल भाजपा को राहत तो मिलेगी। वहीं, भाजपा की साज़िश स्पष्ट हो जाएगी।जब से भाजपा की सरकार बनी है,न्यायपालिका की भी निष्पक्षता प्रभावित हुई है।

निषाद का कहना है कि निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि निकायों में ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले राज्य सरकारों को एक आयोग का गठन करना होगा। ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया को अपनाते हुए ही आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। वहीं, आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहींं हो सकता है। ट्रिपल टेस्ट में यह देखा जाएगा कि ओबीसी वर्ग की आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति कैसी है।उन्हें आरक्षण देने की आवश्यकता है या नहीं?

उनका कहना है कि सरकार को आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट कराकर ओबीसी आरक्षण लागू करना चाहिए था लेकिन अब तक आयोग का गठन नहीं हुआ है। न ही कोई सर्वे हुआ है।न्यायपालिका का इस तरह का बर्ताव कुल मिलाकर ओबीसी का प्रतिनिधित्व खत्म करने की साज़िश है,जिसमें सरकार की भी मंशा शामिल है।उन्होंने कहा कि क्या यह नियम उपयुक्त है कि 2.5 लाख से अधिक वार्षिक आय पर आयकर और 8 लाख वार्षिक आय वाला सवर्ण आर्थिक रूप से कमजोर या गरीब है।

लौटनराम निषाद का कहना है कि निकाय आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने का फैसला सुना सकता है। ऐेसा होने पर सरकार को आयोग का गठन करना होगा और ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया अपनानी होगी। इससे चुनाव तीन से चार महीने के लिए टालने पड़ेंगे। वहीं, उनका मानना है कि सरकार की ओर से प्रस्तुत जवाब में अगर कोई ठोस तकनीकी आधार हुआ तो हाईकोर्ट प्रस्तावित आरक्षण के अनुसार ही चुनाव कराने का फैसला भी सुना सकता है।

निषाद ने कहा है कि उच्च न्यायालय सरकार की असल मंशा के अनुसार ही फैसला देगा।उन्होंने कहा कि भाजपा दिल्ली एमसीडी चुनाव की ही तरह उत्तर प्रदेश नगर निगम,नगरपालिका परिषद व नगर पंचायत में आरक्षण को खत्म करने की पूरी तरह साज़िश करने कराने में जुटी हुई है।भाजपा हर जगह ओबीसी के साथ दोहरा गेम खेलती आ रही है।कल के उच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर भाजपा का असली चेहरा सबके सामने आ जायेगा।