भारत की संस्कृति और श्रीमद्भगवदगीता
भारत की संस्कृति और सभ्यता में “श्रीमद्भगवदगीता” या “भगवत गीता” का महत्वपूर्ण स्थान है। यह विश्व की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है। भारत में ही नही बल्कि विदेशों में यह ग्रंथ बहुत पढ़ा जाता है। इसमें श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिया गया है। यही उपदेश भगवत गीता के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें कुल 18 पर्व (अध्याय) और 720 श्लोक है। भीष्मपर्व में श्रीकृष्ण का उपदेश दिया गया है। हिंदू धर्म में इस ग्रंथ को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी।यह किसी जाति, धर्म विशेष का ग्रंथ नही बल्कि सम्पूर्ण मानवता का ग्रंथ है। यह मनुष्यों को कर्म का संदेश देता है। श्रीमद्भगवद्गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है । गीता जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है और युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है । मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता !
‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 720 श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं । विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है । ‘यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए #भगवान ने कहा है तो वह गीता जी है । गीता मे हृदयं पार्थ । ‘गीता मेरा हृदय है ।’
गीता ने गजब कर दिया – धर्मक्षेत्रे,कुरुक्षेत्रे… युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया । युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया। हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं । किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं ।आजादी के समय #स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर लटक जाते थे।
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श्रीमद भगवत गीता को कब पढ़ना चाहिए और इसका क्या महत्तव है
आज हम हिंदू धर्म के कई महान ग्रंथों में से एक श्रीमद्भागवत गीता में दिए life lessons के बारे में बात करेंगे यह lessons हमें जीवन जीने का तरीका बताते हैं। क्योंकि जो प्रश्न उस समय अर्जुन ने पूछे थे वह सिर्फ उस समय के लिए ही मायने नहीं रखते हैं बल्कि यह प्रश्न और समस्याएं हमें आज के जमाने में भी सताते हैं। जिंदगी की जंग में भागवत गीता की बातें हमें यह समझा सकती है कि हमें हर मुश्किल समय में खुद को कैसे स्थिर रखना चाहिए और हर परिस्थिति में कैसे काम लेना चाहिए। भगवत गीता ने दुनिया के कई महान लोगों की भी सोच बदली है जैसे अल्बर्ट आइंस्टाइन, महात्मा गांधी, और राल्फ वाल्डो इमर्सन आदि। देशभर में लोगों का तो यह भी मानना है कि जो भी इंसान इस ग्रंथ को पढ़ता है उसे कभी भी पैसों की कमी नहीं होती और बड़ी से बड़ी चुनौती उसका बाल भी बांका नहीं कर पाती। और उस व्यक्ति का व्यक्तित्व इतना स्ट्रांग हो जाता है कि वह जहां पर भी जाता है वहां के लोगों को बेहतर इंसान बनने के लिए इंस्पायर करता है।
आप जानते हैं कि ऐसा क्या अच्छा लिखा है भागवत गीता में जिसे लोग हजारों सालों के बाद भी आज तक इसे पढ़ रहे हैं….?
भगवत गीता शुरू ही इस उद्देश्य के साथ होती है कि अगर आप कुछ हासिल करना चाहते हो लेकिन आप खुद कुछ करने के बजाए अपनी किस्मत को भगवान पर डाल देते हो कि वह आपका काम करें और आपकी लाइफ को बेहतर बनाएं तो ऐसे में आपको बुरा रिजल्ट ही मिलेगा। बिलकुल वैसे ही जैसे कि आपको गंदा होने के लिए कुछ नहीं करना होता बस बैठे रहो और आप गंदे हो जाओगे लेकिन साफ रहने के लिए आपको अपनी जगह से उठना पड़ेगा बाथरूम में जाना पड़ेगा और नहाना पड़ेगा ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी बॉडी दुनिया के डिसऑर्डर से फाइट कर रही होती है और जो इंसान इस फाइट में इन एक्टिव हो जाता है वह इंसान अपनी जिंदगी के हर पहलू में हारता रहता है।
अध्याय 2 के श्लोक 14 में श्री कृष्ण कहते हैं-
ओ कुंती पुत्र तुम्हारी इंद्रियां, आवाज, गंध, स्वाद या महसूस करे जाने वाली चीजों के संपर्क में आकर तुम्हारे अंदर ठंड, गर्मी सुख दुख या तनाव जैसी स्थिति पैदा करती हैं यह आस्थाई है यह जैसे आती हैं वैसे चले भी जाती हैं इसीलिए इन बदलावों को सहना सीखो।सफलता या महारत हासिल करने के लिए एक इंसान को परिस्थितियों के हिसाब से ढलना होगा। बेहतर समाधान ढूंढने होंगे और अपनी उपलब्धियों को पहचानना होगा इसीलिए बदलाव को स्वीकार करो और हर परिस्थितियों में खुद को मजबूती से स्वीकार करना सीखो।
यहां पर लक्ष्य बनाने की बात की जा रही है ज्यादातर लोग यह तो डिसाइड कर लेते हैं कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। लेकिन वह कभी भी अपने लक्ष्य के रास्ते में आने वाले मुसीबतों को पार नहीं कर पाते यहां तक कि महाभारत में भी जब द्रोणाचार्य अपने छात्रों को तीरंदाजी सिखा रहे होते हैं और उन्हें कहते हैं कि वह पेड़ पर रखी चिड़िया की आंख पर निशाना लगाना है और फिर वह अपने सभी शिष्यों से पूछते हैं कि उन्हें क्या दिख रहा है; तो किसी ने कहा की उन्हें डाली पर बैठी चिड़िया दिख रही है तो किसी ने बोला पूरा पेड़ और उस पर बैठी चिड़िया लेकिन जब अर्जुन से पूछा गया कि उन्हें क्या दिख रहा है तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है। ना ही वह डाली जिस पर वह बैठी है, ओर ना ही चिड़िया का शरीर और ना ही वह पेड़ सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख ही दिखाई दे रही है। और जब अर्जुन तीर चलाते हैं तो वह सीधा चिड़िया की आंख पर ही लगता है।
डर हमारे सबसे पुराने इमोशंस में से एक है जो हमें अपनी क्षमताओं पर शक करवाता है और यह तब बाहर आता है जब हम या तो किसी परिस्थिति को पूरी तरह से समझ नहीं पाते या फिर जब हम अपने इमोशंस को मैनेज नहीं कर पाते यह डर हमें कायर बनाता है और अपने लक्ष्य से भटकाता है। इसीलिए हमेशा बुद्धिमानी और नॉलेज का पीछा करो क्योंकि यही दो चीजें हैं जो हमें विपरीत परिस्थिति में बहुत ज्यादा सहायता करती हैं।
अध्याय 6 के श्लोक 5 में श्री कृष्ण कहते हैं-
हर इंसान को अपने आप को अपने मन से ऊपर उठाना चाहिए वरना वह आगे बढ़ने की बजाय पीछे गिरते जाएंगे यह सच है कि मन हमारा सबसे अच्छा दोस्त भी बन सकता है और सबसे बुरा दुश्मन भी। अगर आप अपने मन के मालिक नहीं हो तो आप उसके गुलाम हो और जो कि आपको धीरे-धीरे बर्बाद कर देगा इसी वजह से श्री कृष्णा हमें अपने अवचेतन मन को जागृत करने की बात कहते हैं।
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