नेशनल हाई-वे जाम के दौरान पता चलेगा किसान आंदोलन के देशव्यापी समर्थन का

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06 फरवरी को नेशनल हाई-वे जाम के दौरान पता चलेगा किसान आंदोलन के देशव्यापी समर्थन का।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार के लिए तो सोशल मीडिया के टूलों का इस्तेमाल हो रहा है।

एस0 पी0 मित्तल

दिल्ली – दिल्ली की सीमाओं पर पिछले ढाई माह से बैठे किसानों ने अब घोषणा की है कि 6 फरवरी को देशभर में नेशनल हाई-वे जाम किए जाएंगे। दोपहर 12 से 3 बजे तक का समय जाम का दिया गया है। यानि इन तीन घंटों पर देशभर में नेशनल हाईवे पर यातायात बंद रहेगा। ढाई माह की अवधि में यह पहला अवसर है जब तीन कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने दिल्ली से किसी प्रदर्शन का ऐलान किया है। 26 जनवरी को ट्रेक्टर मार्च दिल्ली में ही रखा गया था, लेकिन इस बार विरोध देशभर में रखा गया है। नेशनल हाइवे जाम वाले विरोध से ही पता चलेगा कि किसान आंदोलन को देशभर में कितना समर्थन प्राप्त है।

अभी 211 आंदोलन संस्था हैं, लेकिन हजारों लोग ढाई माह से लगातार बैठे हैं, इसीलिए आंदोलन का महत्व तो है ही। सरकार की ओर से भी बार बार कहा गया है कि दिल्ली की सीमाओं पर धरना देने वाले किसान पूरे देश के किसानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। सरकार का दावा है कि तीनों कृषि कानूनों को लेकर अधिकांश किसान खुश हैं। क्योंकि इससे किसानों की खुशहाली होगी। सरकार और आंदोलनकारियों के अपने अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन 6 फरवरी को पता चलेगा कि इस आंदोलन से देशभर में कितना समर्थन है। हालांकि अब राजनीतिक दल खुल कर किसान आंदोलन के समर्थन में आ गए हैं और आंदोलन को तेज करने में लगे हुए हैं।

06 फरवरी के चक्का जाम पर सरकार की भी नजर लगी हुई है। केन्द्र सरकार नहीं चाहती कि 26 जनवरी जैसी हिंसा हो। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने 6 फरवरी के चक्के जाम से दिल्ली महानगर को अलग रखा है। यानि 6 फरवरी को दिल्ली में जाम नहीं होगा। भले ही नेशनल हाईवे केन्द्र सरकार के अधीन आते हों, लेकिन कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। देखना होगा कि चक्का जाम से कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में कैसे निपटा जाता है।

टूलों का इस्तेमाल:- दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन का प्रचार अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होने लगा है। आरोप है कि किसान आंदोलन की आड़ में भारत को बदनाम करने की साजिश हो रही है। स्वीडन पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने सोशल मीडिया के विभिन्न टूलों का इस्तेमाल करते हुए लोगों को विदेशों में भारतीय दूतावासों पर प्रदर्शन करने के लिए उकसाया है। विरोध के फोटो भी ट्वीटर पर पोस्ट करने के लिए कहा है। सवाल उठता है कि जो आंदोलन भारत में हो रहा है, उसको लेकर विदेशों में प्रदर्शन की क्या जरुरत है..?

जाहिर है कि ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो भारत को मजबूत नहीं देखना चाहती है। जिस भारत ने चीन जैसे शक्तिशाली देश से सैन्य मुकाबला किया और आतंकी देश पाकिस्तान में घुस कर एयर स्ट्राइक की उसी भारत को कमजोर बतानें की कोशिश हो रही है। असल में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें जम्मू कश्मीर में शांति पसंद नहीं है और न ही अयोध्या में राम मंदिर बनने से खुश हैं। ऐसे लोग भारत को बदनाम करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं।