भाजपा से किसानों को मिला धोखा

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भाजपा पर आक्रामक रुख अपनाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा राज में महंगाई आसमान छू रही है, किसानों को धोखा मिला, बेरोजगारी से नौजवान परेशान हैं। जनसामान्य उत्पीड़न का शिकार है। लोग भाजपा से मुक्ति चाहते हैं। उनका भरोसा समाजवादी पार्टी पर है। भाजपा सन् 2022 के चुनावों में कोई साजिश न कर सके इसलिए सबको सतर्क रहकर अपने-अपने काम को निष्ठा से अंजाम देना होगा। एक नज़र भाजपा पर और दूसरी नज़र बूथ पर रखना है।


भाजपा सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1940 रूपया तय किया है। पहली बात तो यह कि अभी धान क्रय केन्द्र खुले ही नहीं है। पिछली बार भी किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला था। मजबूरी में तय मूल्य के नीचे मंडी में उसे हजार रूपये और उससे भी कम रूपये में अपनी फसल बेचनी पड़ गई थी। खरीद की प्रक्रिया बहुत धीमी रही है और अधिकारी क्वालिटी के नाम पर खरीद को नज़रअंदाज करते रहे हैं।


किसानों को भाजपा राज में ही सर्वाधिक अपमानित और उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। खाद के दाम बढ़ा दिए गए है। 50 किलोग्राम एनपीके खाद जो 1175 रूपए में मिलती थी अब बढ़ी दरों पर 1440 रूपए में मिलेगी। एनपी उर्वरक खाद में भी 70 रूपए की बढ़ोत्तरी की गई है। डीजल और बिजली पहले से ही महंगी कर दी गई है।
किसानों की बात करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने 4 साल तक गन्ने के दाम नहीं बढ़ाए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ किसानों का भारी गुस्सा देखते हुए और चुनावी फसल काटने के लिए अंतिम चुनाव वर्ष में मुख्यमंत्री जी छद्म सहानुभूति दिखाने लगे हैं।


अभी असमय वर्षा और आंधी ने फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। खेद की बात है कि भाजपा सरकार किसानों को राहत पहुंचाने में रुचि नहीं लेती है। उसकी मानसिकता तो यह है कि जो किसान आवाज उठाए उसे कुचल दो। लखीमपुर काण्ड इसका जीता-जागता उदाहरण हैं इससे जाहिर है कि भाजपा पूंजी घरानों की ही हित चिंता करती है इसलिए उसने चीनी मिलों के मालिकों को तो कई रियायतें दी परन्तु किसानों को गन्ने का बकाया मूल्य मिले इसकी व्यवस्था नहीं की। एमएसपी की अनिवार्यता की मांग को भी उसने नहीं माना है।

आज प्रदेश की जनता के समक्ष न केवल संविधान अपितु किसान और देश को बचाने के लिए भाजपा को हटाना ही एक मात्र विकल्प रह गया है। किसानों को तभी न्याय मिलेगा जब भाजपा सत्ता से हटेगी। वैसे भी भाजपा से कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसमें जनहित में कोई काम करने की इच्छा शक्ति नहीं है। जागरूक मतदाता ही सन् 2022 में भाजपा की साजिशों का सामना कर उसे परास्त कर सकते हैं।